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वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश: विश्व स्वास्थ्य संगठन

  • 23 Sep 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

भारत में प्रदूषण की स्थिति और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी दिशा-निर्देश तथा उनका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने नए वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश (AQGs) जारी किये हैं। इन दिशा-निर्देशों के तहत ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ ने प्रदूषकों के अनुशंसित स्तर को और कम कर दिया है, जिन्हें मानव स्वास्थ्य के लिये सुरक्षित माना जा सकता है।

  • यह वर्ष 2005 के बाद से ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ का पहला अपडेट है। इन दिशा-निर्देशों का लक्ष्य सभी देशों के लिये अनुशंसित वायु गुणवत्ता स्तर प्राप्त करना है।

प्रमुख बिंदु

  • नए दिशा-निर्देश:
    • ये दिशा-निर्देश प्रमुख वायु प्रदूषकों के स्तर को कम करके विश्व आबादी के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये नए वायु गुणवत्ता स्तरों की सिफारिश करते हैं, जिनमें से कुछ जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।
    • इन दिशा-निर्देशों के तहत अनुशंसित स्तरों को प्राप्त करने का प्रयास कर सभी देशों को अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करने के साथ-साथ वैश्विक जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलेगी।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह कदम सरकार द्वारा नए सख्त मानकों को विकसित करने की दिशा में नीति में अंतिम बदलाव के लिये मंच तैयार करता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संस्ग्थान के नए दिशा-निर्देश उन 6 प्रदूषकों के लिये वायु गुणवत्ता के स्तर की अनुशंसा करते हैं, जिनके कारण स्वास्थ्य पर सबसे अधिक जोखिम उत्पन्न होता है।
      • इन 6 प्रदूषकों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और 10), ओज़ोन (O₃), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) शामिल हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए वैश्विक AQGs बनाम भारत का NAAQS:

Air-Quality-Standard

  • मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वायु प्रदूषण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़े पर्यावरणीय खतरों में से एक है।
    • एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक वर्ष वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से 7 मिलियन लोगों की मृत्यु समय से पूर्व हो जाती है और इसके परिणामस्वरूप लोगों के जीवन के लाखों स्वस्थ वर्षों का नुकसान होता है।
    • बच्चों में इसके अनेक प्रभाव दिखाई देते हैं, जैसे- फेफड़ों की वृद्धि और कार्य में कमी, श्वसन प्रणाली में संक्रमण, अस्थमा आदि।
    • वयस्कों में हृदय रोग और स्ट्रोक बाह्य वायु प्रदूषण के कारण समय से पूर्व मृत्यु के सबसे सामान्य कारण हैं तथा मधुमेह और तंत्रिका तंत्र का कमज़ोर होना या न्यूरोडीजेनेरेटिव (Neurodegenerative) स्थितियों जैसे अन्य प्रभावों के प्रमाण भी सामने आ रहे हैं।
    • वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों को अन्य प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य जोखिमों जैसे- अस्वास्थ्यकर आहार और तंबाकू धूम्रपान के कारण होने वाले रोगों के समान माना गया है।
    • वायु प्रदूषण के जोखिम के मामले में दुनिया भर में असमानताएँ बढ़ रही है, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में बड़े पैमाने पर शहरीकरण एवं आर्थिक विकास के चलते वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर का प्रभाव पड़ रहा है, जिसका कारण काफी हद तक जीवाश्म ईंधन का दहन है।
  • भारत में प्रदूषण की स्थिति: 
    • भारत विश्व के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक है, जिसमें प्रदूषक स्तरअनुशंसित स्तरों (Recommended Levels) से कई गुना अधिक है।
      • उदाहरण के लिये ग्रीनपीस के एक अध्ययन में वर्ष 2020 में नई दिल्ली में PM2.5 की औसत सांद्रता प्रदूषण के अनुशंसित स्तरों से लगभग 17 गुना अधिक पाई गई। 
      • मुंबई में प्रदूषण का स्तर आठ गुना अधिक, कोलकाता में नौ गुना और चेन्नई में पाँच गुना अधिक था।
    • ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ स्टडी (Global Burden of Disease study) के विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की 95% से अधिक आबादी पहले से ही उन क्षेत्रों में रहती है जहांँ प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ के वर्ष 2005 के मानदंडों से अधिक था।
    • WHO के वर्ष 2005 के मानदंडों की तुलना में भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक बहुत अधिक उदार हैं।
      • उदाहरण के लिये 24 घंटे की अवधि में अनुशंसित PM2.5 सांद्रता 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, जबकि WHO के वर्ष 2005 के दिशा-निर्देशों में 25 माइक्रोग्राम की सलाह दी गई है। 
      • लेकिन मानकों के इस निम्न स्तर को शायद ही पूरा किया जाता है।
  • नए दिशानिर्देशों का भारत पर प्रभाव: 
    • नए वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों का मतलब है कि लगभग पूरे भारत को वर्ष के अधिकांश समय के लिये प्रदूषित क्षेत्र माना जाएगा।
      • हालाँकि WHO ने स्वयं माना है कि विश्व की 90% से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जो वर्ष 2005 के प्रदूषण मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
    • WHO के नए मानदंडों के आधार पर भारत को अपनी हवा को साफ और सुरक्षित बनाने हेतु कड़ी मेहनत करनी चाहिये।
    • इसके अलावा विशेष रूप से भारत सहित दक्षिण एशिया जैसे चुनौतीपूर्ण भू-जलवायु क्षेत्रों में नए दिशा-निर्देशों को लागू करने की व्यवहार्यता संदिग्ध है।
      • विशेषज्ञों का कहना है कि इस क्षेत्र में मौसम और जलवायु परिस्थितियाँ चुनौतीपूर्ण हैं, जिसमें धुंध स्तंभ (Haze Columns), ऊष्मा द्वीप (Heat Island) का प्रभाव तथा बहुत अधिक आधार प्रदूषण की अतिरिक्त चुनौती है।
    • हालाँकि WHO के दिशा-निर्देश बाध्यकारी नहीं हैं, उसके इस कदम का भारत पर तुरंत प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS) WHO के मौजूदा मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
      • सरकार का अपना एक समर्पित राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम है जिसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक वर्ष 2017 के स्तर को आधार वर्ष मानते हुए 122 शहरों में कणों की सांद्रता में 20% से 30% तक की कमी लाना है।

आगे की राह

  • भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए स्वास्थ्य डेटा को मज़बूत करने और तद्नुसार राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को संशोधित करने की आवश्यकता है। 
  • इसके अलावा महामारी के दौरान कठिन लॉकडाउन चरणों की अवधि में प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई थी, इससे स्थानीय प्रदूषण और क्षेत्रीय प्रभावों को कम करना संभव प्रतीत होता है।

स्रोत: द हिंदू

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