लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

गेहूं की नवीन किस्म तथा फसल अवशिष्ट समस्या

  • 22 May 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

गेहूं की बौने जीन आधारित फसल

मेन्स के लिये:

फसल अवशेष तथा प्रदूषण की समस्या 

चर्चा में क्यों?

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science and Technology) के एक स्वायत्तशासी संस्थान ‘अगरकर अनुसंधान संस्थान’ (Agharkar Research Institute- ARI) पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा गेहूं में दो ‘वैकल्पिक बौने जीनों’ (Alternative Dwarfing Genes)- Rht14 एवं Rht18 की मैपिंग की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • जीन मैपिंग किसी जीन के स्थान तथा जीनों के बीच की दूरी की पहचान करने के तरीकों का वर्णन करता है।
  • नवीन मैपिंग किये गए जीन गेहूं के बीजों के बेहतर नवांकुर (Seedling Vigour) तथा लंबी अवधि तक कोलोप्टाइल (Coleoptiles) के रूप में अर्थात नवांकुरों की खरपतवारों से रक्षा करने के रूप में कार्य करते हैं। 

बौना जीन (Dwarfing Genes) :

  • बौने जीनों का उपयोग कई दशकों से पादप प्रजनन में किया जा रहा है। गेहूं और चावल की बौनी किस्मों के निर्माण से बौने जीन ने हरित क्रांति में बहुत योगदान दिया है। प्रारंभिक ‘बौने जीन आधारित’ बीज किस्मों को अर्द्ध-बौने जीन के रूप में भी जाना जाता है।  
  • यह DNA का एक भाग होता है जिसमें आवश्यक क्षारों का अनुक्रम DNA के समान ही होता है। जब इस प्रकार के जीनों को फसलों में अंतरण किया जाता है तो ये फसलें लंबाई में कम परंतु अधिक उत्पादन देने वाली होती हैं।

वैकल्पिक बौना जीन (Alternative Dwarfing Genes):

  • हरित क्रांति के बाद से एकल स्रोत आधारित बौने जीन की किस्मों के उपयोग से फसलों से कई महत्त्वपूर्ण जीनों का क्षरण हो गया है, अत: अर्द्ध बौने जीन आधारित फसलों के स्थान पर नवीन बौने जीन आधारित फसलों की किस्मों के निर्माण की दिशा में वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं।

जेनेटिक मार्कर (Genetic Marker):

  • जेनेटिक मार्कर एक गुणसूत्र पर स्थित निश्चित जीन अथवा DNAअनुक्रम को बताता है, जिसका उपयोग प्रजातियों की पहचान करने के लिये किया जा सकता है। 

शोध कार्य:

  • ARI के वैज्ञानिकों ने शुष्क क्षेत्रों में उगाए जाने वाले डुरम (Durum) गेहूं में गुणसूत्र 6A पर ‘बौने जीनों’ की मैपिंग की है। गेहूं की अच्छी गुणवत्ता की किस्म को बौने जीन का उपयोग करके ‘डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल’ आधारित मार्कर (DNA-based Markers) विधि के आधार पर विकसित किया गया।
  • DNA आधारित मार्कर तकनीक, गेहूं प्रजनकों (Breeders) को ‘वैकल्पिक बौने जीन’ के वाहक गेहूं किस्म का चयन करने में सहायता करेंगे।
  • वैज्ञानिकों द्वारा DNA आधारित मार्करों का उपयोग  कर इन जीनों को भारतीय गेहूं की किस्मों में अंतरण करने का प्रयास किया जा रहा है।

गेहूं की नवीन किस्म की विशेषताएँ:

  • जीनों के अंतरण के आधार पर बनाई जाने वाली गेहूं की किस्म चावल के अवशिष्टों युक्त एवं शुष्क मृदा में भी बुवाई के लिये उपयुक्त होगी।
  • इन वैकल्पिक बौने जीनों का प्रयोग कर विकसित गेहूं की किस्म के निर्माण से चावल के फसल अवशेष को जलाने को आवश्यकता नहीं होगी। 
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि गेहूं की फसल की बुवाई से पूर्व किसानों द्वारा चावल के अवशेषों को जलाया जाता है, जो दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है।
  • इन गेहूं के बीजों की  बुवाई अधिक गहराई तक की जा सकती है ताकि शुष्क मृदा में भी ये फसल अवशिष्ट नमी का उपयोग कर सके।

क्यों थी शोध की आवश्यकता:

  • वर्तमान में गेहूं की केवल अर्द्ध बौनी (Semi-Dwarf Wheat) किस्में उपलब्ध हैं। गेहूं की इन किस्मों का निर्माण हरित क्रांति के दौरान किया गया था।
  • इन अर्द्ध बौनी गेहूं की किस्मों में Rht1  युग्म विकल्पी (Allele) (किसी दिये गए जीन का भिन्न रूप) होते हैं, जो केवल उच्च उर्वरता वाली तथा सिंचित भूमि में ही अधिकतम उपज देती हैं। 
  • इन फसलों की कोलोप्टाइल क्षमता (नवांकुरों की खरपतवारों से रक्षा) कम होती है। इस कारण गेहूं की ये अर्द्ध बौनी किस्में शुष्क वातावरण में गहरी बुवाई स्थितियों के अधिक अनुकूल नहीं हैं।

शोध का महत्त्व:

  • नवीन गेहूं के उपयोग से बहुमूल्य जल संसाधनों की बचत होगी और किसानों के लिये खेती की लागत कम हो जाएगी। गेहूं की इन किस्मों को शुष्क-मृदा में भी उगाया जा सकता है। 

आगे की राह:

  • चावल फसल के अवशेषों को जलाना पर्यावरण, मृदा तथा मानव स्वास्थ्य सभी के लिये काफी नुकसानदायक है। इसलिये गेहूं सुधार कार्यक्रमों में विकल्पी बौना जीनों को शामिल किये जाने की आवश्यकता है।
  • भारतीय गेहूं किस्मों में Rht1  के केवल दो ड्वार्फिंग ऐलेल की ही प्रधानता है, इसलिये भारत में उगाए जाने वाले गेहूं में बौने जीनों के आनुवंशिक आधार को और अधिक विविधीकृत करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष: 

  • गेहूं की ‘बौने जीन’ आधारित किस्म के निर्माण से फसल अवशिष्ट जलाने की समस्या का समाधान संभव है यदि नवीन गेहूं की किस्मों को  किसानों को कम आर्थिक लागत के साथ उपलब्ध कराया जाए।  

स्रोत: पीआईबी

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2