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पारे के कारण प्रदूषित हुए जल को साफ करने का नया तरीका

  • 28 May 2018
  • 5 min read

संदर्भ

पारा (mercury) मानव के लिये ज़हरीले पदार्थों में से एक है। इसके उपभोग के कारण कई प्रकार की दिमागी, त्वचा संबंधी तथा हृदय रोग हो सकते हैं जो घातक भी हो सकते हैं। पिछले वर्ष राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी एक लेख में कहा गया था कि क्लीनिकल थर्मामीटर में पाए जाने वाले पारे की केवल 1 ग्राम मात्रा लगभग 20 एकड़ के क्षेत्रफल वाले जल निकाय को इस हद तक प्रदूषित करने के लिये काफ़ी थी कि इसमें रहने वाली मछलियों के भोजन के लिये असुरक्षित हो सके। 

पारा तथा इसके कारण जल प्रदूषण  

  • पारा प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है, उदाहरण के लिये ज्वालामुखी विस्फोटों से तथा कई प्रकार की औद्योगिक प्रक्रियाओं के माध्यम से। 
  • पारे के कारण होने वाला प्रदूषण भारत में बहुत अधिक व्यापक नहीं है लेकिन महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा तथा ओडिशा जैसे राज्यों में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ के जल में पारा खतरनाक सांद्रता के साथ पाया गया है। 
  • खदान क्षेत्रों तथा चमड़ा उद्योगों- जो पारा निर्गमन करते हैं, के आस-पास के जल-निकाय, प्रदूषण प्रवण हैं। 

शोध की शुरुआत

  • लगभग चार साल पहले, IIT-मद्रास के शोधकर्त्ताओं के एक समूह ने लोगों को यह जाँचने में मदद करने के लिये एक साधारण किट विकसित की कि क्या उनके पीने के पानी में पारे या इसी प्रकार के विषैले भारी संक्रमण धातु आयनों, जैसे- कैडमियम या लेड के संकेत मिले थे।
  • जब इस किट की सहायता से जल का परीक्षण किया गया तो प्रदूषित जल का रंग बदल गया।
  • यह शोध एक पत्रिका ACS सस्टेनेबल केमिस्ट्री एंड इंजीनियरिंग में प्रकाशित किया गया था। 
  • चूँकि यह किट बहुत ही उपयोगी थी फिर भी शोधकर्त्ताओं ने प्रदूषित जल को शुद्ध करने के लिये इससे एक कदम आगे बढ़ने की आवश्यकता महसूस की। इस प्रकार शुद्धिकरण की प्रक्रिया की ख़ोज प्रारंभ हुई। 

शोध

  • 4 सालों के प्रयास के बाद, एक नवीन प्रक्रिया विकसित हुई जो न केवल पानी से पारे की अशुद्धता को दूर करता है बल्कि एक उप-उत्पाद के रूप में स्वच्छ हाइड्रोजन का उत्पादन भी करता है, जिसे ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। 
  • IIT-मद्रास में टीम द्वारा विकसित की गई इस नई प्रक्रिया में पारे के एक नैनो-मिश्र धातु का निर्माण शामिल है, जो खुद को प्रदूषित जल से अलग करने के अलावा, जल के अणुओं को स्वच्छ हाइड्रोजन गैस का उत्पादन करने के लिये विभाजित करता है। 
  • इस शोध को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हाइड्रोजन एनर्जी में प्रकाशित के लिये स्वीकार कर लिया गया है।

क्या है इसकी प्रक्रिया?

  • इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिये अमोनियम के एक लवण जैसे कि नाइट्रेट या सल्फेट को प्रदूषित जल के नमूने में मिलाया जाता है।
  • यह लवण Al3+ions का स्रोत बनता है।
  • पारा इस नमूने में Hg2+ions के रूप में मौजूद होता है। 
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, इस प्रक्रिया की मुख्य विशेषता इन सकारात्मक आयनों को उनके तटस्थ मूल रूप से  Al और Hg में एक साथ अपचयन है। 
  • इसके लिये टीम ने सोडियम बोरोहायड्राइड जैसे एक शक्तिशाली अपचायक को विलयन में मिलाया। 
  • एक बार जब एल्युमिनियम तथा पारा अपचयित हो जाते हैं, तो वे एक दूसरे में मिश्रित होकर नैनो-सूक्ष्म धातु बनाते हैं।
  • यह नैनो-मिश्र धातु तत्काल पानी के साथ प्रतिक्रिया करता है।
  • इस अभिक्रिया में एल्युमिनियम पुनः Al3+ रूप में आ जाता है लेकिन यह मानव के लिये पूरी तरह से अनुकूल होता है।
  • दूसरी तरफ पारा जल के अणुओं को तेज़ी से विघटित करता है, जिसके कारण हाइड्रोजन गैस के निर्गमन की उच्च दर सुनिश्चित होती है। इस हाइड्रोजन गैस को एकत्र और संग्रहित किया जा सकता है।
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