मानसून के सटीक पूर्वानुमान की नई प्रणाली | 26 Oct 2017

चर्चा में क्यों

  • हाल ही अमेरिका की फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों द्वारा एक ऐसी प्रणाली विकसित की गई है जो भारत में मानसून का बेहतर पूर्वानुमान लगा सकती है।
  • यह नई पद्धति, ‘क्लाइमेट डायनामिक्स’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है। इस प्रणाली में भारत के ग्रीष्मकालीन मानसून (आईएसएम) की अवधि का आकलन करने के लिये उस इलाके में हुई कुल बारिश के आकलन का इस्तेमाल किया जाता है।
  • दरअसल, वैज्ञानिक लंबे समय से मानसून की अवधि की सटीक गणना करने वाला मॉडल तैयार करने के लिये संघर्ष करते रहे हैं।

कैसे सटीक अनुमान लगाने में मददगार होगी यह प्रणाली?

  • विदित हो कि मौजूदा समय में ऐसी कोई प्रणाली नहीं है जो ग्रीष्मकालीन मानसून का विश्वसनीय आकलन कर सके। वर्तमान समय में मानसून की भविष्यवाणी और मॉनिटरिंग प्रणाली किसी एक स्थान विशेष के आकलन पर ही निर्भर है। उदाहरण के लिये मानसून आने की भविष्यवाणी केरल को केंद्र में रखकर की जाती है और इसी के आधार पर अन्य हिस्सों के लिये मानसून तय किया जाता है।
  • जबकि इस पद्धति में शोधार्थियों द्वारा पूरे देश का भ्रमण किया गया और साथ ही मानसून के आने और जाने का सटीक तरीके से पता लगाया गया है। अभी तक क्षेत्रीय मौसम विभाग मानसून का आगमन तय करने के लिये अपने तदर्थ मानदंड पर निर्भर करते हैं, जो अक्सर विरोधाभासी दावे करते हैं, लेकिन अब उन्नत प्रणाली का इस्तेमाल कर अधिकारी और शोधकर्त्ता देश में मानसून का आकलन कर सकेंगे।

क्यों महत्त्वपूर्ण है यह प्रणाली?

  • भारतीय अर्थव्यवस्था महत्त्वपूर्ण ढंग से मानसून पर निर्भर करती है। ज़ाहिर है मानसून के सटीक पूर्वानुमान की आवश्यकता हमेशा से ही महसूस की जाती है और भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) को पूर्वानुमानों को लेकर गलत साबित होने के आरोपों का सामना करना पड़ता है।
  • गौरतलब है कि मानसून के आने और खत्म होने की तारीखों को लेकर स्पष्ट और ठोस जानकारी की कमी लंबे समय से खलती रही है, ऐसे में यह प्रणाली निश्चित ही उपयोगी साबित हो सकती है।