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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अपशिष्ट प्रबंधन में एक नई उपलब्धि

  • 29 Aug 2017
  • 4 min read

संदर्भ

उल्लेखनीय है कि तिरुवंतपुरम स्थित सी.एस.आई.आर के अंतःवैषयिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिये राष्ट्रीय संस्थान (CSIR-NIIST) ने कृषि अपशिष्ट को संपदा में परिवर्तित करने में सफलता प्राप्त कर ली है| 

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, वैज्ञानिकों ने रासायनिक और जैविक तकनीकों का उपयोग कर कपास के डंठलों (cotton-stalks) को हटाकर एथेनॉल का उत्पादन किया है|
  • डंठलों के जटिल कार्बनिक बहुलकों को तोड़ने के लिये इन डंठलों पर पहले अम्ल, क्षार और विभिन्न एंजाइमों का प्रयोग किया गया|
  • अम्ल ने हेमीसेल्यूलोस (hemicelluloses) और क्षार ने लिग्निन  (lignin) को हटाने में सहायता की|
  •  हेमीसेल्यूलोस कोशिका भित्ति का एक बहुलक (polymer) था जबकि लिग्निन कोशिका भित्ति में उपस्थित एक बाइंडिंग मैट्रिक्स (binding matrix) था, जोकि जटिल फेलोनिक्स (complex phenolics) का बना हुआ था|
  • इस उपचार के पश्चात् सेल्यूलोस की प्राप्ति हुई| यह एक बड़ा अवयव है| यह ग्लूकोस और एंजाइमों की क्रिया से बना होता है|
  • इसके पश्चात् सेल्यूलोस को ग्लूकोस में परिवर्तित करने के लिये इसकी एंजाइमों से क्रिया कराई गई| 
  • विदित हो कि कृषि अपशिष्टों को एथेनॉल में परिवर्तित करने से खाद्य बनाम ईंधन प्रतिस्पर्धा में कमी आएगी|

किण्वन

  • ग्लूकोस को एथेनॉल में बदलने के लिये नए खमीर (novel yeast) का उपयोग कर डंठलों का किण्वन कराया गया|
  • खमीर में ग्लूकोस रूपांतरण की क्षमता 76% थी और खमीर द्वारा मात्र 24 घंटे में ही पूरे ग्लूकोस का उपयोग कर उसे एल्कोहॉल में परिवर्तित कर दिया गया| 
  • कपास के डंठलों के लिये प्रयोग किये गए किसी अन्य प्रयोग की तुलना में यह प्रयोग कहीं अधिक बेहतर था| 
  • इसके पश्चात् आणविक चलनी (molecular sieves) का उपयोग कर अंतिम रूप से प्राप्त एल्कोहॉल का आसवन (distillation) और निर्जलीकरण (dehydration) कराया गया,जिसके परिणामस्वरूप ईंधन ग्रेड जैव इथेनॉल (fuel grade bioethanol,शुद्धता 99% से अधिक) बनाया जा सकता था| ध्यातव्य है कि इस मौजूदा तकनीक का उपयोग भट्टियों (distilleries) में किया जाता है|

जैव इथेनॉल 

  • परंपरागत ईंधनों की तुलना में जैव-ईंधनों के कई लाभ है क्योंकि इन्हें नवीकरणीय संसाधनों से प्राप्त किया जाता है| 
  • 10% एथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिश्रित करना अनिवार्य है| वर्तमान में उपयोग किया जाने वाला जैव एथेनॉल गन्ने के शीरे (sugar cane molasses) के किण्वन से बनाया जाता है जोकि गन्ने के उत्पादन का उपोत्पाद  है तथा इसका खाद्य महत्त्व भी है|
  • इस पहली पीढ़ी के अधिकांश एथेनॉल का उपयोग उपभोक्ता अनुप्रयोगों (मुख्यतः शराब बनाने) में किया जाता है|

निष्कर्ष 

  • भारत की लगभग 9.4 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की जाती है| इसके प्रत्येक हेक्टेयर क्षेत्र में 2 मिलियन टन कपास के डंठल अपशिष्ट के रूप में विद्यमान होते हैं|
  • अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि भारत में इस तकनीक को सही ढंग से संचालित किया जाता है तो यह भविष्य में ईंधन के संदर्भ में देश की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि साबित होगा|
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