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शासन व्यवस्था

सूचना का अधिकार संबंधी नए नियम

  • 26 Oct 2019
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये: 

कार्यकाल, वेतन,आदि में किये गए बदलाव, सरकार एवं आयोग कि शक्तिओं सम्बन्धी तथ्य 

मेन्स के लिये:

नए बदलावों के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने सूचना के अधिकार (Right to Information- RTI) कानून के तहत नए नियमों को अधिसूचित किया है।

मुख्य बिंदु:

  • सूचना के अधिकार के नए नियम अर्थात् सूचना का अधिकार (मुख्य सूचना आयुक्त, केंद्रीय सूचना आयोग में सूचना आयुक्त, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयोग में राज्य सूचना आयुक्त के कार्यकाल, वेतन, भत्ते तथा अन्य नियम व सेवा शर्तें) नियम, 2019 को भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया है।
  • नए नियम के तहत सूचना आयुक्तों का कार्यकाल तीन वर्ष निर्धारित किया गया है, जबकि 2005 के नियमों के अनुसार यह पाँच वर्ष था।
  • सरकार को सूचना आयुक्त की "सेवा की शर्तों" के संदर्भ में निर्णय लेने का विवेकाधिकार दिया गया है किंतु इसके लिये नए नियम में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं किया गया है।
  • मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन 2.5 लाख रुपए और सूचना आयुक्त का वेतन 2.25 लाख रुपए निर्धारित किया गया है।
  • नियम 22 के अनुसार, केंद्र सरकार किसी भी वर्ग या व्यक्तियों की श्रेणी के संबंध में किसी भी नियम के प्रावधानों को शिथिल करने की शक्ति रखती है।

नए नियमों के पक्ष में तर्क:

  • RTI संशोधन बिल 2019 के 'स्टेटमेंट ऑफ ऑब्जेक्ट्स एंड रीज़न्स' सेक्शन में इस संशोधन का कारण बताया गया है।
  • भारतीय चुनाव आयोग और केंद्रीय सूचना आयोग तथा राज्य सूचना आयोगों की कार्यप्रणालियाँ बिलकुल भिन्न हैं। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जो संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित है। यह केंद्र में संसद के लिये और राज्य में विधानसभाओं के लिये चुनाव संपन्न कराता है, यह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव कराता है जो कि संवैधानिक पद हैं, जबकि केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग एक कानूनी निकाय है जो कि आरटीआई एक्ट 2005 के द्वारा स्थापित है।
  • भारतीय चुनाव आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों के कार्यक्षेत्र अलग-अलग हैं, अत: उनके पद और सेवा शर्तों को तार्किक बनाए जाने की ज़रूरत है।

नए नियमों के विपक्ष में तर्क:

  • यह संशोधन सूचना आयोग को सरकार के अधीन ला देगा। ऐसे में सरकार के लोगों द्वारा सुचना प्रदाताओं पर उनके द्वारा दी जाने वाले सूचनाओं के सम्बन्ध में चयनात्मक दबाव बनाया जा सकता है।
  • सूचना अधिकार का पूरा क्रियान्वयन इसी बात पर टिका है कि सूचना आयोग इसे कैसे लागू करवाता है. RTI एक्ट की स्वतंत्र व्याख्या तभी संभव है जब यह सरकार के नियंत्रण से आज़ाद रहे।
  • केंद्रीय सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त और राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त आदि की हैसियत/पदवी फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर है, इसमें बदलाव किये जाने से सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोगों को निर्देश जारी करने का उनका अधिकार भी कम हो जाएगा।
  • कार्यकाल एवं पदावधि संबंधी सरकार की नई शक्तियाँ सुचना आयुक्तों की स्वायत्तता को प्रभावित करेगी।
  • नियम 22 में कहा गया है कि केंद्र सरकार किसी भी वर्ग या व्यक्तियों की श्रेणी के संबंध में किसी भी नियम के प्रावधानों को शिथिल करने की शक्ति रखती है। सरकार में शामिल राजनितिक दलों द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के फरवरी 2019 में अंजलि भारद्वाज व अन्य बनाम भारतीय संघ एवं अन्य मामले में दिए गए निर्णय के ​भी खिलाफ प्रतीत होता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस निर्णय में सूचना आयोग में खाली पदों के मामले में RTI अधिनियम के भाग 13(5) के तहत केंद्रीय सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की नियुक्ति हेतु केंद्रीय चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के समान नियम लागू किये जाने की बात कही थी।

स्रोत: द हिंदू

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