अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कोयला चालित विद्युत संयंत्रों में प्रदूषण कम करने का नया तरीका
- 24 Apr 2018
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चर्चा में क्यों ?
आईआईटी मद्रास स्थित शोधकर्त्ताओं के एक समूह ने कोयला चालित विद्युत संयंत्रों में बड़े पैमाने पर होने वाले प्रदूषण को कम करने का एक नया तरीका खोज निकाला है। इस तरीके से न केवल रिएक्टर बेड से राख (ash) के ढेर को हटाया जा सकता है और कार्बन-डाइऑक्साइड के निर्माण को भी कम किया जा सकता है, बल्कि उप-उत्पाद (by-product) के रूप में सिनगैस का उत्पादन भी किया जा सकता है। सिनगैस कार्बन-मोनो-ऑक्साइड और हाइड्रोजन जैसी गैसों का मिश्रण होती है जिसे विभिन्न प्रकार से उपयोग में लाया जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
- शोधकर्त्ताओं ने इस अध्ययन में कोल गैसीफिकेशन तकनीक का उपयोग किया जिसके अंतर्गत कोयले को सीमित ऑक्सीजन की आपूर्ति पर आंशिक रूप से जलाया जाता है।
- लगभग 100 डिग्री सेल्सियस पर कोयले की सारी नमी निकल जाती है।
- 300 से 400 डिग्री सेल्सियस के उच्च तापमान पर कोयले में फँसे नाइट्रोजन, मीथेन और कई अन्य ईंधन और हाइड्रोकार्बन्स के मिश्रण मुक्त हो जाते हैं।
- जब तापमान 800-900 डिग्री सेल्सियस के बीच पहुँचता है तो कोयले में उपस्थित कार्बन हवा में उपस्थित ऑक्सीजन एवं हवा के साथ सप्लाई की जाने वाली भाप के साथ रिएक्शन करना शुरू कर देता है तथा कार्बन-मोनो-ऑक्साइड, हाइड्रोजन और कार्बन-डाइऑक्साइड का निर्माण करता है।
- हवा और भाप की मात्रा को नियंत्रित करके कार्बन-मोनो-ऑक्साइड और हाइड्रोजन की समुचित मात्रा का उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकता है।
- इसके साथ ही कार्बन-डाइऑक्साइड जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है, का उत्पादन सीमित किया जा सकता है।
- अध्ययन में यह पाया गया है कि उच्च राख युक्त भारतीय कोयलों में अधिक भाप का प्रवाह लाभदायक होता है। इस तरीके द्वारा भारतीय कोयले के प्रयोग से संबंधित प्रकिया में बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित किया जा सकता है।
- यहाँ तक कि इस तकनीक से ऑक्सीडाइज़र में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाकर उच्च कैलोरिफिक मूल्य की सिनगैस का उत्पादन किया जा सकता है साथ ही उपयुक्त मात्रा में भाप की वृद्धि कर H2–CO अनुपात में सुधार लाया जा सकता है।
- शोधकर्त्ताओं ने यह भी दर्शाया कि भारतीय कोयले के साथ चावल भूसी जैसे बायोमास को मिलाने से उत्प्रेरण क्षमता में वृद्धि हो जाती है और गैसीफिकेशन प्रदर्शन में काफी सुधार आ जाता है।
- यह प्रक्रिया बिजली संयंत्रों में उपयोग के लिये भारतीय कोयले की आकर्षकता में सुधार करेगी।
- भारत में कोयला बड़ी मात्रा में उपलब्ध है लेकिन अधिक राख और न्यून ऊर्जा उत्पादन क्षमता के कारण इसे प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
- भारतीय कोयला खानों के समीप ऐसे गैसीफिकेशन रिएक्टरों की स्थापना द्वारा ग्रामीण बिजली की आवश्यकता की भी पूर्ति की जा सकती है।
वर्तमान परिदृश्य
- ऊर्जा के स्रोत के रूप में कोयला जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं के कारण फायदेमंद नहीं रह गया है।
- भारत सहित अधिकांश देश कोयले को अगले कुछ दशकों में चलन से बाहर करने की योजना बना रहे हैं।
- भारत ने भी आधिकारिक तौर पर यह घोषणा कर दी है कि वह 2022 के बाद कोई भी कोयला आधारित संयंत्र स्थापित नहीं करेगा।
- हालाँकि, हमें अभी भी कुछ समय तक कोयले पर निर्भर रहना होगा, क्योंकि वायु और सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय साधनों द्वारा ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि के बावजूद अब भी भारत की 60 प्रतिशत बिजली तापीय विद्युत सयंत्रों से उत्पन्न होती है।
- यह अनुमान लगाया गया है कि सबसे अच्छे परिदृश्य में भी कोयला कम-से-कम अगले तीन दशकों तक भारत की ऊर्जा उत्पादकता का मुख्य आधार बना रहेगा।
- फिर भी कोयले के प्रयोग से इन मध्यवर्ती वर्षों में कम-से-कम प्रदूषण हो इसके प्रयास चल रहे हैं। इस हेतु विभिन्न स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों का परीक्षण किया जा रहा है।