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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नई 'परमाणु निषेध संधि' और भारत का पक्ष

  • 22 Sep 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लगभग पचास देशों ने परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिये एक संधि पर हस्ताक्षर किये हैं। हालाँकि इस संधि को दुनिया की परमाणु शक्तियों ने ठुकरा दिया है, लेकिन समर्थकों ने एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में इसका स्वागत किया है।

पृष्ठभूमि

  • जुलाई 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने परमाणु हथियारों के निषेध से संबंधित इस संधि को अपनाया है, जो परमाणु हथियारों के उपयोग, उत्पादन, हस्तांतरण, अधिग्रहण, संग्रहण व तैनाती को अवैध करार देती है।
  • यह संधि कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा तैयार की गई 10 साल की तैयारी का परिणाम है।

परमाणु हथियार निषेध संधि से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इस संधि के तहत परमाणु हथियार या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरणों के विकास, परीक्षण, उत्पादन, निर्माण, अधिग्रहण, संग्रहण के  साथ-साथ परमाणु हथियारों से संबंधित गतिविधियों की पूरी श्रृंखला पर रोक लगाई गई है।
  • संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्यों में से दो-तिहाई का प्रतिनिधित्व कर रहे 122 वार्ताकार देशों ने इसी साल 7 जुलाई को इसके पक्ष में और एकमात्र देश नीदरलैंड ने इसके विपक्ष में मतदान किया, जबकि सिंगापुर जैसा देश मतदान प्रक्रिया से बाहर रहा।
  • उल्लेखनीय है कि दुनिया के परमाणु शक्ति संपन्न तकरीबन सभी 40 देश अपनी सुरक्षा के संदर्भ में परमाणु शस्त्र समर्थक हैं, जो कि इस नई 'परमाणु निषेध संधि' के पक्ष में नहीं हैं।

क्या है भारत का पक्ष?

  • विदित हो कि भारत ने पिछले साल ही अपने स्पष्टीकरण में कहा था कि वह इस बात से सहमत नहीं है कि प्रस्तावित सम्मलेन परमाणु निरस्तीकरण पर एक समग्र व्यवस्था कायम करने में सफल हो पाएगा।
  • दरअसल, भारत की ओर से जिनेवा निरस्तीकरण सम्मलेन की चर्चा के लिये एकमात्र बहुपक्षीय मंच बताया गया है।
  • वस्तुतः भारत अब भी परमाणु अप्रसार को लेकर वार्ताएँ शुरू करने का समर्थन करता है, लेकिन उसके लिये जिनेवा के निरस्तीकरण से संबंधित कॉन्फ्रेंस को ही एकमात्र बहुपक्षीय परमाणु अप्रसार वार्ता मंच स्वीकार करता है।
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