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भारतीय राजव्यवस्था

दंड परिहार के नए मानदंड

  • 15 Jun 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रपति की क्षमा शक्ति, अनुच्छेद 72, राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 161, राज्यपाल। 

मेन्स के लिये:

छूट और संबंधित संवैधानिक प्रावधान। 

चर्चा में क्यों? 

गृह मंत्रालय ने स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में कैदियों को विशेष छूट देने के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दिशा-निर्देश जारी किये हैं। 

दिशा-निर्देश: 

  • विशेष परिहार: 
    • आज़ादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में कैदियों की एक निश्चित श्रेणी को विशेष छूट दी जाएगी। इन कैदियों को तीन चरणों में रिहा किया जाएगा। 
  • पात्रता: 
    • 50 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाएँ और ट्रांसजेंडर कैदी तथा 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के पुरुष कैदी 
      • इन कैदियों को अर्जित सामान्य छूट की अवधि की गणना किये बिना अपनी कुल सज़ा अवधि का 50% पूरा करना होगा। 
    • 70% या अधिक की विकलांगता  के साथ शारीरिक रूप से अक्षम कैदी जिन्होंने अपनी कुल सज़ा की अवधि का 50% पूरा कर लिया है। 
    • गंभीर रूप से बीमार सज़ायाफ्ता कैदी जिन्होंने अपनी कुल सज़ा का दो-तिहाई (66%) पूरा कर लिया है। 
    • गरीब या निर्धन कैदी जिन्होंने अपनी सज़ा पूरी कर ली है लेकिन उन पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान न कर पाने के कारण वे अभी भी जेल में हैं। 
    • ऐसे व्यक्ति जिन्होंने कम उम्र (18-21) में अपराध किया हो और उनके खिलाफ कोई अन्य आपराधिक संलिप्तता या मामला नहीं है तथा अपनी सज़ा कीअवधि का 50% पूरा कर लिया है, वे भी पात्र होंगे। 
  • योजना से बाहर रखे गए कैदी: 
    • मौत की सज़ा के साथ दोषी ठहराए गए व्यक्ति या जहांँ मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया है या किसी ऐसे अपराध के लिये दोषी ठहराया गया है, जिसके लिये मौत की सज़ा को सज़ा में से एक के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। 
    • आजीवन कारावास की सज़ा के साथ दोषी ठहराए गए व्यक्ति। 
    • आतंकवादी गतिविधियों में शामिल अपराधी या दोषी व्यक्ति- आतंकवादी और विघटनकारी कार्यकलाप (निवारण) अधिनियम, 1985; आतंकवादी रोकथाम अधिनियम, 2002;  गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967; विस्फोटक अधिनियम, 1908; राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1982; आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 और अपहरण विरोधी अधिनियम, 2016। 
    • दहेज हत्या, जाली नोंट, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध संबंधी दंड को अधिक कठोर बनाने हेतु बाल यौन अपराध संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012; अनैतिक तस्करी अधिनियम, 1956; धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 आदि के अपराध के लिये दोषी व्यक्तियों के मामले में राज्य के खिलाफ (आईपीसी का अध्याय-VI) अपराध और कोई अन्य कानून जिसे राज्य सरकारें या केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन बाहर करना उचित समझते हैं, विशेष छूट के लिये योग्य नहीं होंगे। 

परिहार: 

  • परिहार के बारे में: 
    • परिहार (Remission) एक बिंदु पर किसी दंड या सज़ा की पूर्ण रूप से समाप्ति है। परिहार फर्लो (Furlough) और पैरोल (Parole) दोनों से इस मायने में अलग है कि यह जेल जीवन से विराम के विपरीत सज़ा में कमी है। 
    • परिहार में दंड की प्रकृति अछूती रहती है, जबकि अवधि कम हो जाती है, यानी शेष दंड को पारित करने की आवश्यकता नहीं होती है। 
    • परिहार का प्रभाव यह है कि कैदी को एक निश्चित तारीख दी जाती है जिस दिन उसे रिहा किया जाएगा और कानून की नज़र में वह एक स्वतंत्र व्यक्ति होगा। 
    • हालांँकि परिहार छूट की किसी भी शर्त के उल्लंघन के मामले में इसे रद्द कर दिया जाएगा और अपराधी को पूरी अवधि करनी होगी जिसके लिये उसे मूल रूप से सज़ा सुनाई गई थी। 
  • पृष्ठभूमि: 
    • परिहार प्रणाली को जेल अधिनियम, 1894 के तहत परिभाषित किया गया है, जो कुछ समय के लिये लागू नियमों का एक समूह है, जो जेल में कैदियों को उनके व्यवहार का आकलन करने और उसके परिणामस्वरूप सज़ा को कम करने के लिये विनियमित करता है। 
    • केहर सिंह बनाम भारत संघ (1989) मामले में यह देखा गया कि न्यायालय किसी कैदी को सज़ा से छूट हेतु विचार किये जाने से इनकार नहीं कर सकता है। 
      • न्यायालय द्वारा इनकार किये जाने से कैदी को अपनी आखिरी साँस तक जेल में ही रहना होगा, उसके मुक्त होने की आशा नहीं की जा सकती। 
      • यह न केवल सुधार के सिद्धांतों के खिलाफ होगा, बल्कि यह अपराधी को जीवन के अंत तक प्रकाश की एक झलक के बिना एक अंधेरे वातावरण में धकेल देगा। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा राज्य बनाम महेंद्र सिंह (2007) मामले में भी कहा कि भले ही किसी भी दोषी को परिहार देना उसका मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन राज्य को अपनी परिहार संबंधी कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करते समय प्रत्येक व्यक्तिगत मामले को ध्यान में रखते हुए एवं प्रासंगिक कारकों को देखते हुए विचार करना चाहिये।  
      • इसके अलावा न्यायालय का यह भी विचार था कि छूट के लिये विचार किये जाने के अधिकार को कानूनी माना जाना चाहिये। 
      • यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 के तहत आने वाले दोषी के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। 
  • संवैधानिक प्रावधान: 
    • राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों को संविधान द्वारा क्षमा की संप्रभु शक्ति प्रदान की गई है। 
    • अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति की सज़ा को क्षमा, लघुकरण, विराम या प्रविलंबन कर सकता है या निलंबित या कम कर सकता है। 
      • यह सभी मामलों में किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति हेतु किया जा सकता है, जहाँ: 
        • सज़ा कोर्ट-मार्शल द्वारा हो, उन सभी मामलों में जहाँ सज़ा केंद्र सरकार की कार्यकारी शक्ति से संबंधित किसी भी कानून के तहत अपराध के संदर्भ में है और मौत की सज़ा के सभी मामलों में। 
    • अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल सज़ा को क्षमा, प्रविलंबन, विराम या परिहार दे सकता है, या सज़ा को निलंबित, हटा या कम कर सकता है। 
      • यह राज्य की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत आने वाले मामले में किसी भी कानून के तहत दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति के लिये किया जा सकता है। 
    • अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से अधिक व्यापक है। 
  • परिहार की सांविधिक शक्ति: 
    • दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) जेल की सज़ा में छूट का प्रावधान करती है, जिसका अर्थ है कि पूरी सज़ा या उसका एक हिस्सा रद्द किया जा सकता है। 
    • धारा 432 के तहत 'उपयुक्त सरकार' किसी सज़ा को पूरी तरह या आंशिक रूप से, शर्तों के साथ या उसके बिना निलंबित या माफ कर सकती है। 
    • धारा 433 के तहत किसी भी सज़ा को उपयुक्त सरकार द्वारा कम किया जा सकता है। 
    • यह शक्ति राज्य सरकारों को उपलब्ध है ताकि वे जेल की अवधि पूरी करने से पहले कैदियों को रिहा करने का आदेश दे सकें। 

शब्दावली: 

  • क्षमा (Pardon)- इसमें दंड और बंदीकरण दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी को दंड, दंडादेशों एवं निर्हर्ताओं से पूर्णतः मुक्त कर दिया जाता है। 
  • लघुकरण (Commutation)- इसका अर्थ है सज़ा की प्रकृति को बदलना जैसे-मृत्युदंड को कठोर कारावास में बदलना। 
  • परिहार (Remission)- सज़ा की अवधि में बदलाव जैसे- 2 वर्ष के कठोर कारावास को 1 वर्ष के कठोर कारावास में बदलना। 
  • विराम (Respite)- विशेष परिस्थितियों की वजह से सज़ा को कम करना। जैसे- शारीरिक अपंगता या महिलाओं की गर्भावस्था के कारण। 
  • प्रविलंबन (Reprieve) - किसी दंड को कुछ समय के लिये टालने की प्रक्रिया। जैसे- फाँसी को कुछ समय के लिये टालना।      

स्रोत: द हिंदू 

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