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नए भारत का उदय और चीन का बदलता नज़रिया

  • 17 Apr 2017
  • 8 min read

संदर्भ
अप्रैल के प्रथम सप्ताह में दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा को लेकर चीन द्वारा तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। वैसे तो अरुणाचल प्रदेश पर अधिकार के दावे और दलाई लामा को प्रश्रय देने के मुद्दों को लेकर लंबे समय से चीन भारत की आलोचना करता रहा है, परन्तु यह आलोचना अमूमन नीतिगत विरोध तक ही सीमित रही है। लेकिन, हाल ही में जब 4 अप्रैल को दलाई लामा तवांग (अरुणाचल प्रदेश) यात्रा पर गए तो चीन के तेवर एकदम बदले हुए नज़र आए। चीनी दैनिक ‘ग्लोबल टाइम्स’ के हवाले से कहा गया- “क्या भारत, आर्थिक एवं सैन्य दृष्टि से अधिक मज़बूत चीन का भू-राजनीतिक टकराहट में मुकाबला करने में सक्षम है? स्पष्ट है कि इस बार चीनी विरोध सिर्फ नीतिगत निर्णय तक सीमित नहीं दिखता बल्कि यह भारत के लिये एक खुली भू-सामरिक चुनौती है।

चीन की चिंता की वजह

  • चीन की चिंता की एक मुख्य वजह नए दलाई लामा के चुनाव को लेकर भी है। दरअसल, वर्तमान दलाई लामा (जो 14वें दलाई लामा हैं) की बढ़ती उम्र को देखते हुए उनके उत्तराधिकारी के चयन की बात की जा रही है।
  • वैसे, चीन अपने ‘पंचेन लामा’ (Panchen Lama) का निर्धारण पहले ही कर चुका है, जिसका स्थान तिब्बती आध्यात्मिक पदसोपान में दलाई लामा के बाद आता है।  
  • हालाँकि, दलाई लामा द्वारा अभी तक अपने उत्तराधिकारी के बारे में कोई भी औपचारिक घोषणा नहीं की गई है। इस संदर्भ में उनका कहना है कि उनका उत्तराधिकारी कोई महिला भी हो सकती है, या फिर कोई ऐसा उम्मीदवार जिसे तिब्बती जनता अपनी मर्ज़ी से चुने। 
  • तिब्बती बौद्ध परम्परा के मुताबिक, अगला दलाई लामा कौन होगा, इसका संकेत खुद वर्तमान दलाई लामा दे देंगे। 
  • दरअसल, इस संबंध में चीन की चिंता इस बात को लेकर है कि शायद दलाई लामा अपना उत्तराधिकारी भारत से और संभवतः अरुणाचल प्रदेश से ही चुनें, फलस्वरूप तिब्बती स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व एक नए व्यक्ति के हाथ आ जाएगा। चीन को खतरा है कि इससे आंदोलन को नया नेतृत्व मिल जाएगा जो भविष्य में उसके समक्ष मुश्किलें पैदा करेगा।

भारत के लिये चिंता की वजह

  • गौरतलब है कि उत्तर में भारत, चीन के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है, और इस क्षेत्र में सीमा सुरक्षा भारत के लिये हमेशा से एक जटिल मुद्दा रहा है। कभी-कभी इस क्षेत्र में चीनी सेना द्वारा अतिक्रमण की खबरें भी आती रहती हैं।
  • साथ ही, जम्मू-कश्मीर के वर्तमान हालातों को देखते हुए एक चिंता यह भी उत्पन्न होती है कि अगर भारत, चीन के साथ किसी संभावित भू-सामरिक टकराहट में पड़ता है तो उसके भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं?

अरुणाचल प्रदेश में चीन का दावा 

  • ध्यातव्य है कि अरुणाचल प्रदेश में चीन का दावा बहुत पुराना नहीं है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय चीन ने तत्कालीन ‘नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी’ (NEFA) के लगभग आधे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था और चीनी सेना तेज़पुर तक पहुँच गई थी।  
  • लेकिन 21 नवंबर, 1962 को चीन ने एकतरफा युद्ध-विराम की घोषणा करके पूरे पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश से अपनी सेना हटा ली और इस क्षेत्र में युद्ध से पूर्व की स्थिति को बहाल कर दिया था।    
  • हालाँकि, उसने पश्चिम में लद्दाख के जिस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था, उसे अपने नियंत्रण में बनाए रखा, जो आज भी चीन के नियंत्रण में है। इसी क्षेत्र को अक्साई चिन (Aksai chin) कहते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि उस समय पूर्वी सीमा क्षेत्र (अरुणाचल प्रदेश) से सेना हटाने के निर्णय के लिये चीन की जनता ने माओ की आलोचना भी की थी।
  • वैसे, अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावे की शुरुआत तब से हुई जब 1975 में सिक्किम भारत संघ का 22वाँ राज्य बना। 1978 से चीन लगातार इस मुद्दे को उठाता रहा है।
  • चीन की तरफ से एक दावा यह भी किया जाता है कि अरुणाचल प्रदेश में चीनी लोगों के पूर्वजों की कब्रें हैं, इसलिये वे लोग इस क्षेत्र को अपनी मातृभूमि का हिस्सा बनाना चाहते हैं। 

फिनलैंडाइज़ेशन और भारत  
क्या है फिनलैंडाइज़ेशन?

  • यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में उस स्थिति के लिये किया जाता है जब एक शक्तिशाली देश अपने किसी छोटे पड़ोसी देश की नीतियों को ज़ोरदार ढंग से प्रभावित करता है। 
  • 1960 और 70 के दशकों में पश्चिमी जर्मनी में होने वाली राजनीतिक बहसों में यह शब्द अस्तित्व में आया।  सामान्यतः इसका प्रयोग अपमानजनक रूप में किया जाता है।
  • जिस रूप में जर्मनी तथा अन्य नाटो देश इस शब्द का प्रयोग करते थे, उसके अनुसार यह किसी देश के उस निर्णय को संदर्भित है जिसमें वह अपनी सम्प्रभुता को बरकरार रखते हुए अपने से ज़्यादा शक्तिशाली पड़ोसी देश को अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में चुनौती न दे।
  • वस्तुतः इस शब्द का प्रयोग द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत फिनलैंड पर सोवियत संघ की नीतियों के प्रभाव के संदर्भ में किया जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है- फिनलैंड की तरह बनना।

भारतीय स्थिति 

  • इस संदर्भ में भारत की स्थिति काफी भिन्न रही है। यहाँ भारतीय स्थिति को वर्ष 2009 की एक घटना से अच्छी तरह समझा जा सकता है, उस समय दलाई लामा की प्रस्तावित तवांग यात्रा को लेकर भारत और चीन के बीच तल्खी बहुत ज़्यादा बढ़ गई थी। यह विवाद उस समय जाकर टला जब तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री वेन जिआबाओ ने भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हुआ हिन् (वियतनाम) में होने वाली एपेक (APEC) की बैठक में आमंत्रित किया। जिआबाओ ने भारतीय प्रधानमंत्री से विदेशी मीडिया को तवांग से बाहर रखने और इस मुद्दे की तरफ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान न जाने देने का अनुरोध किया।
  • लेकिन जब से नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला है, चीन को लगता है कि भारत फिनलैंडाइज़ेशन की स्थिति से बाहर आ रहा है, और वर्तमान में दलाई लामा की तवांग यात्रा को लेकर आई तीखी प्रतिक्रिया को इसी की परिणति माना जा सकता है।
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