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नया डी.एन.ए. विधेयक

  • 01 Aug 2017
  • 10 min read

संदर्भ 
गौरतलब है कि तकरीबन दो वर्ष पहले डी.एन.ए. तकनीक को प्रभावशाली बनाने तथा विनियमित करने हेतु प्रस्तुत किये गए डी.एन.ए. फिंगरप्रिंटिंग विधेयक (DNA Fingerprinting Bill) को अंतिम रूप प्रदान किया जा रहा है| हाल ही में भारतीय विधि आयोग द्वारा इस विधेयक का प्रारूप प्रस्तुत किया गया, जिसे कुछ परिवर्तनों के पश्चात् अब डी.एन.ए. आधारित तकनीक (उपयोग एवं विनियमन) विधेयक (DNA Based Technology (Use and Regulation) Bil) के रूप में जाना जाएगा|

  • इस प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत डी.एन.ए. परीक्षण से संबंधित मानकों एवं विनियमों की स्थापना के साथ-साथ डी.एन.ए. परीक्षण से प्राप्त साक्ष्यों को संगृहीत एवं सुरक्षित रखने तथा इससे संबद्ध प्रयोगशालाओं में होने वाली सभी कार्यवाहियों का निरीक्षण करने संबंधी कार्यों को शामिल किया गया है|

डी.एन.ए. परीक्षण की उपयोगिता

  • जैसा की हम सभी जानते हैं कि किसी व्यक्ति की वास्तविक जैविक पहचान प्राप्त करने के लिये डी.एन.ए. विश्लेषण एक अत्यंत उपयोगी एवं सटीक तकनीक है| इसके अंतर्गत अपराध के स्थान से प्राप्त बाल के नमूने, खून के धब्बे की सहायता से उस अपराध से संबंधित व्यक्ति की पहचान की जा सकती हैं| 
  • इतना ही नहीं बल्कि डी.एन.ए. परीक्षण के माध्यम से किसी व्यक्ति की शारीरिक बनावट, उसकी आँखों के साथ-साथ त्वचा के रंग का भी पता लगाया जा सकता है| 
  • इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति की बीमारी आदि के संबंध में भी जानकारी पता की जा सकती है|
  • वस्तुतः ऐसा इसलिये क्योंकि डी.एन.ए. के अंदर बहुत अधिक मात्रा में सूचनाएँ संगृहीत करने की क्षमता विद्यमान होती है| 
  • यही कारण है कि डी.एन.ए. विश्लेषण से प्राप्त सूचनाओं के गलत रूप में इस्तेमाल की संभावना बहुत अधिक होती है| संभवतः यही पक्ष इस विधेयक के पारित होने के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर रहा है| 

विधेयक में निहित बातें

  • ध्यातव्य है कि इस विधेयक के अंतर्गत दो नए संस्थान स्थापित करने की पेशकश करने की संभावना है – पहला, डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग बोर्ड (DNA Profiling Board) तथा दूसरा, डी.एन.ए. डेटा बैंक (DNA Data Bank)| इस विधेयक के अंतर्गत गठित किये जाने वाले 11 सदस्यीय बोर्ड के द्वारा संभवतः विनियमन संबंधी कार्य किया जाएगा| 
  • यह केंद्र एवं राज्य सरकारों के लिये डी.एन.ए. प्रयोगशालाओं से संबंधित विषयों में सलाहकारी भूमिका का निर्वाह करेगा| इसके अतिरिक्त यह इस बात का भी ख्याल रखेगा की डी.एन.ए. परीक्षणों के द्वारा किसी व्यक्ति के नैतिक एवं मानवीय अधिकारों के साथ-साथ व्यक्ति की निजता का उल्लंघन न होने पाए| 
  • इसके अतिरिक्त विधेयक के अंतर्गत एक राष्ट्रीय डी.एन.ए. डेटा बैंक की स्थापना की बात भी निहित की गई है| राष्ट्रीय बैंक के साथ-साथ प्रत्येक राज्य में आवश्यकतानुसार क्षेत्रीय डेटा बैंक भी स्थापित किये जाएंगे|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2015 में प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत हैदराबाद में एक राष्ट्रीय डेटा बैंक स्थापित करने की बात की गई थी इसका कारण यह था कि हैदराबाद में प्रमुख डी.एन.ए. प्रयोगशाला (Centre for DNA Fingerprinting and Diagnostics, the premier DNA laboratory) अवस्थित है| हालाँकि नए विधेयक में ऐसी किसी विशेष स्थिति का वर्णन नहीं किया गया है|
  • ध्यातव्य है कि सभी क्षेत्रीय बैंकों को उनसे संबद्ध सूचनाओं को राष्ट्रीय डेटा बैंक के साथ साझा करना होगा| 
  • डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग बोर्ड से मान्यता प्राप्त कुछ प्रयोगशालाओं को ही डी.एन.ए. परीक्षण एवं विश्लेषण करने की अनुमति प्राप्त होगी| ये कुछ ऐसे क्षेत्र होंगे जहाँ किसी अपराध के स्थल से डी.एन.ए. साक्ष्यों को लाकर सुरक्षित रखा जाएगा तथा आवश्यकतानुसार विश्लेषण के लिये भेजा जाएगा|
  • तत्पश्चात् विश्लेषण से प्राप्त डेटा को नज़दीक के क्षेत्रीय डी.एन.ए. डेटा बैंक को भेज दिया जाएगा| क्षेत्रीय डेटा बैंक को इस डेटा की एक प्रति को अपने पास सुरक्षित रखके उस डेटा को राष्ट्रीय बैंक के पास भेजना होगा|
  • ध्यातव्य है कि डी.एन.ए. डेटा बैंकों को निम्नलिखित पाँच प्रतियों - अपराध स्थल से एकत्रित किये गए डी.एन.ए. साक्ष्यों, संदिग्ध अथवा कथित मामलों, अपराधियों एवं गुमशुदा लोगों तथा अज्ञात मृत शरीरों के संदर्भ में इस डेटा को संगृहीत करना होगा|    

विधेयक से संबद्ध विवाद

  • इस विधेयक के संदर्भ में बहुत से विवाद उभरकर सामने आ रहे हैं| वस्तुतः इसमें मुख्य मुद्दा यह है कि क्या डी.एन.ए. तकनीक की वैधता पर अंधविश्वास किया जा सकता है? क्या इस तकनीक के द्वारा किसी भी प्रकार के गलत विश्लेषण प्राप्त होने की संभावना को पूर्ण रूप से नकार दिया जाना चाहिये अथवा नहीं?
  • हालाँकि इसमें संदेह नहीं है कि वर्तमान में मौजूद सभी तकनीकों की अपेक्षा डी.एन.ए. तकनीक कहीं अधिक सटीक एवं बेहतर परिणाम प्रदान करती है तथापि अभी तक इसकी मूल प्रकृति में संभाव्यता बनी हुई है| 
  • इनमें सबसे अधिक गंभीर मुद्दा निजता के अधिकार से संबंधित है| कुछ ऐसे प्रश्न जैसे- किसका डी.एन.ए. एकत्रित किया जा सकता है? तथा किन परिस्थितियों में डी.एन.ए. को एकत्रित किया जाना चाहिये और किन में नहीं इसका निर्णय कौन करेगा? 
  • किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत सूचनाओं के अतिरिक्त डी.एन.ए. और किस प्रकार की सूचनाएँ प्रदान करने में सहायता कर सकता है? साथ ही किन परिस्थितियों में इस डेटाबेस को नष्ट किया जा सकता है?
  • इन सभी प्रश्नों के संदर्भ में इसलिये विचार किया जाना चाहिये क्योंकि किसी भी व्यक्ति से जुड़ी निजी सूचनाओं, उसकी चिकित्सकीय सूचनाओं, शारीरिक खामियों अथवा खूबियों का किसी भी प्रकार से ग़लत इस्तेमाल किया जा सकता है| स्पष्ट रूप से इन सभी समस्याओं के संदर्भ में गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये|

इस विधेयक का औचित्य

  • हालाँकि इस विधेयक के अंतर्गत उपरोक्त चिंताओं के संदर्भ में समाधान निकालने की कोशिश की गई है| तथापि इसमें डी.एन.ए. तकनीक की विश्वसनीयता पर पूर्ण विश्वास व्यक्त किया गया है| 
  • इस विधेयक के मसौदे में एक नया प्रावधान शामिल किया गया है जिसमें गिरफ्तार किये गए किसी व्यक्ति के “शारीरिक पदार्थ” के संग्रहण के विषय में उस व्यक्ति की अनुमति लेने के प्रावधान को अनिवार्य बनाया गया है| 
  • हालाँकि यदि किसी व्यक्ति को किसी गंभीर अपराध के तहत गिरफ्तार किया गया है तो व्यक्ति की अनुमति के बिना भी उसके डी.एन.ए. की जाँच की जा सकती है| किन्तु यदि डी.एन.ए. जाँच को बिना किसी कारण के मना किया जा रहा है और मामले से संबंधित मजिस्ट्रेट जाँच हेतु अपनी सहमती प्रदान कर देता है तो गिरफ्तार व्यक्ति को जाँच हेतु डी.एन.ए. साक्ष्य उपलब्ध कराने होंगे|  
  • ध्यातव्य है कि डी.एन.ए. डेटा का गलत रूप में इस्तेमाल करने पर सज़ा का भी प्रावधान किया गया है| इसके अंतर्गत अधिकतम तीन साल के कारावास एवं एक लाख से अधिक के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है|
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