ट्राई द्वारा आँकड़ों को सुरक्षित रखने की नई व्यवस्था | 19 Apr 2017
संदर्भ
हाल ही में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय की एक संवैधानिक खंडपीठ को यह सूचना दी है कि ऑनलाइन माध्यम में उपलब्ध आँकड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये ट्राई (TRAI) एक नई नियामकीय व्यवस्था पर कार्य कर रहा है| ऐसी अपेक्षा है कि यह व्यवस्था दीपावली तक तैयार हो जाएगी|
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में गठित एक पाँच न्यायधीशों की पीठ के समक्ष यह कहा है कि प्रतिदिन होने वाले ऑनलाइन लेन-देनों के कारण ऑनलाइन उपलब्ध आँकड़ों की सुरक्षा अनिवार्य हो गई है|
- वर्तमान समय में आँकड़ों की सुरक्षा और गोपनीयता अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कम साक्षर लोग नकद लेन-देन के लिये ‘भीम’ और ‘पेटीएम’ जैसे एप्स का उपयोग कर रहे हैं| अतः सरकार आँकड़ों की सुरक्षा की नई व्यवस्था के लिये सक्रियता पूर्वक कार्य कर रही है| ट्राई इस व्यवस्था पर कार्य शुरू कर चुका है|
- महान्यायवादी ने स्पष्ट किया कि इंटरनेट में प्रत्येक ऑनलाइन सर्च को स्मरण रखने की क्षमता होती है| उदाहरण के लिये, यदि आप भुवनेश्वर के ताज होटल को सर्च करते हैं तो गूगल आपको ताज के समान ही अन्य होटलों के विकल्प भी उपलब्ध कराएगा|
- इस पीठ में न्यायाधीश ए.के. सीकरी, अमित्वा रॉय, ए.एम. खान्विकर और एम.एम. शांतिनगौड़र भी शामिल थे|
‘भूल जाने का अधिकार’ (Right to be forgotten)
- महान्यायवादी ने किसी व्यक्ति के भूलने के अधिकार के परिप्रेक्ष्य में ऑनलाइन गोपनीयता की आवश्यकता पर बल दिया| इस अधिकार को “मिटाए जाने का अधिकार” (Right to be erased) कहते हैं, इसका तात्पर्य है कि अगर एक व्यक्ति को किसी अपराध के लिये पहले सज़ा हो चुकी है तो उस व्यक्ति के पास उस अपराध को भूलने का अधिकार होता है|
- भूलने के अधिकार को ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ में व्यवहार में लाया गया था| उदाहरण के लिये, एक व्यक्ति ने मामूली गलती की और उसे 20 वर्ष की आयु में दंड दिया गया, लेकिन अगर इसके संबंध में इंटरनेट पर खोजा जाए तो उसकी सूचना में उन अपराधों की सूचना नहीं होगी जिन्हें उसने किया था|
- यह वाद-विवाद उस संवैधानिक खंडपीठ का हिस्सा है जिसमें इस घोषणा के लिये सुनवाई हो रही थी कि व्हाट्सएप और फेसबुक से किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत वितरण और सूचना इनके लाखों उपयोगकर्ताओं के पास पहुँच जाती है| यह किसी भी व्यक्ति की गोपनीयता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है|
- महान्यायवादी रोहतगी ने कहा कि इस सुनवाई को ऑनलाइन गोपनीयता से संबंधित नए कानूनों के बनने तक दो माह के लिये स्थगित कर दिया गया है|
खंडपीठ के तर्क
- ध्यातव्य है कि ऑनलाइन आँकड़ों की गोपनीयता से संबंधित याचिका दायर करने वाले दो विद्यार्थी हैं| वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने यह तर्क दिया कि वर्ष 2016 में बनाई गई व्हाट्सएप की नीति अनुचित और अस्वीकार्य है|
- साल्वे के अनुसार, यह नीति व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करती है जो कि संविधान के तहत प्रत्येक व्यक्ति का मूल अधिकार है|
- हालाँकि, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने साल्वे के तर्कों को नकारते हुए कहा है कि व्हाट्सएप से आँकड़ों, आवाज़ और मेसेज साझा नहीं होते हैं| अतः दो व्यक्तियों के बीच हुई वार्ता की सूचना तीसरे व्यक्ति को नहीं मिल सकती है| सिब्बल के अनुसार,साल्वे के तर्कों का कोई औचित्य नहीं है|
- वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा द्वारा फेसबुक के संबंध में दिये गए तर्कों के अनुसार, उनके गतिविधियाँ वर्ष 2000 के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम तथा सूचना प्रौद्योगिकी (उचित सुरक्षा अभ्यास और प्रक्रियाएँ और संवेदनशील व्यक्तिगत आँकड़े या सूचना) नियम,2011 के अनुरूप हैं|
- फलतः खंडपीठ ने साल्वे से अपनी स्थिति को तर्कों के आधार पर स्पष्ट करने और अगली सुनवाई पर उसे न्यायलय में पेश करने का आदेश दिया है|
निष्कर्ष
ट्राई द्वारा आँकड़ों की सुरक्षा के लिये उठाया गया यह कदम सराहनीय प्रतीत होता है| निश्चित ही इससे व्यक्तियों की गोपनीयता और स्वतंत्रता को संरक्षण प्राप्त होगा| उल्लेखनीय है कि ट्राई भारत के संचार क्षेत्र का एक नियामक है| इसका उद्देश्य भारत की संचार व्यवस्था का विकास कर वैश्विक स्तर पर इसकी पहुँच को सुनिश्चित कराना है|