भारतीय परिवारों की शुद्ध वित्तीय संपत्ति | 18 Jun 2020
प्रीलिम्स के लिये:शुद्ध वित्तीय संपत्ति, सकल घरेलू उत्पाद मेन्स के लिये:शुद्ध वित्तीय संपत्ति का लोगों की बचत पर पड़ने वाला प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, भारतीय परिवारों/लोगों की शुद्ध वित्तीय संपत्ति (Net Financial Assets) वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी की 7.7% हो गई।
प्रमुख बिंदु:
- शुद्ध वित्तीय संपत्ति में यह वृद्धि एक सकारात्मक परिवर्तन की तरफ इशारा मात्र है वास्तविक नहीं।
- आँकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो यह स्थिति लोगों द्वारा बैंक से कम कर्ज लेने के कारण उत्पन्न हुई है, जो अर्थव्यवस्था में मंदी एवं कमज़ोरी स्थिति को दर्शाती है न कि अर्थव्यस्था में किसी सकारात्मक बदलाव को।
शुद्ध वित्तीय संपत्ति क्या हैं?
- शुद्ध वित्तीय संपत्ति (Net Financial Asset-NFA), सकल वित्तीय परिसंपत्तियों (जमा और निवेश) कम वित्तीय देनदारियों (उधार) के बीच का अंतर है।
- RBI के आँकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2020 में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में शुद्ध वित्तीय संपत्ति 13.73 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 15.62 लाख करोड़ रुपए हो गई है अर्थात जीडीपी के स्तर पर यह वृद्धि 7.2% से बढ़कर 7.7% तक देखी गई है।
- यह एक वर्ष में एक राष्ट्र की सीमा के भीतर सभी अंतिम माल और सेवाओं का बाज़ार मूल्य है।
- वित्त वर्ष 2019-20 में सकल वित्तीय संपत्ति (Gross Financial Assets-GFA) 21.23 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 21.63 लाख करोड़ रुपए पर पहुँच गई थी, जबकि वित्तीय देनदारियों (Financial Liabilities- FL) में 7.5 लाख करोड़ रुपए से 6.01 लाख करोड़ रुपए की तीव्र गिरावट दर्ज की गई, जिसके परिणामस्वरूप शुद्ध वित्तीय परिसंपत्तियों में वृद्धि देखने की मिली है।
- जीडीपी के प्रतिशत के संदर्भ में, GFA 11.1 प्रतिशत से घटकर 10.6 प्रतिशत रहा तथा वर्ष 2020 में वित्तीय देनदारियों सकल घरेलू उत्पाद की 3.9 प्रतिशत से घटकर 2.9 प्रतिशत ही रही
वित्तीय देनदारियों में गिरावट/कमी का मतलब है?
- RBI के अनुसार वित्त वर्ष 2019-20 की कुल देनदारियों में बैंकिंग क्षेत्र द्वारा लोन देने में भारी गिरावट आर्थिक मंदी एवं बैंकों के जोखिम से बचने को भी दर्शाता है।
- विशेषज्ञों का मानना है वर्तमान में आर्थिक मंदी की स्थिति विद्यमान है जिसमे लोगों की आय या तो बढ़ नहीं रही या फिर घट रही है, ऐसे में वित्तीय क्षेत्र (Financial Sector) लोन देने में अधिक सतर्कता बरतेगा तथा यही कारण है कि आय स्तर या तो नीचे जा रहा है या बढ़ नहीं रहा है।
- इस सब कारणों से वित्तीय क्षेत्र द्वारा ऋण देने में अधिक सावधानी बरती जाएगी यही वज़ह है कि परिवारों की वित्तीय देनदारियों में गिरावट आई है जो अर्थव्यवस्था में मंदी का सूचक है।
क्या भारतीय परिवार अधिक बचत कर रहे हैं?
- GDP के प्रतिशत के संदर्भ में GFA 11.1 प्रतिशत से घटकर 10.6 प्रतिशत हो गया है पर डेटा पर करीबी नज़र डालें तो से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में लोगों के पैसे जमा करने के उपकरणों में भी बदलाव आया है।
- जैसे- वर्ष 2019 में मार्च समाप्ति पर जीडीपी के प्रतिशत के रूप में बैंकों में घरेलू बचत 3.8 प्रतिशत रही, जो मार्च 2020 में घटकर 3.4 प्रतिशत पर आ गई।
- घरेलू बचत में आई इस कमी की बड़ी वजह पिछले 18 महीनों में RBI द्वारा रेपो दर में कटौती के साथ बैंकों द्वारा भी अपनी तरफ से ब्याज दरों में कटौती करना है।
- दूसरी तरफ छोटी बचत योजनाओं में अधिक ब्याज का मिलना जिसके चलते परिवारों की जमा पूंजी जीडीपी के 1.1 फीसदी से बढ़ कर 1.3 फीसदी तक गई है।
- मुद्रा (currency) के रूप में लोगों की संपत्ति इसी अवधि में 1.5 प्रतिशत से घटकर 1.4 प्रतिशत रह गई परंतु लॉकडाउन की घोषणा के बाद से लोगों के पास मुद्रा की मात्रा बढ़ी है।
- 27 मार्च, 2020 के अंतिम सप्ताह में लोगों के पास 23.41 लाख करोड़ रूपए की नकदी थी, जो 22 मई 2020 में बढ़कर 25.12 लाख करोड़ रूपए हो गई।
क्या घरेलू बचत बढ़ने की उम्मीद है?
- RBI की एक रिपोर्ट ‘परिवारों की वित्तीय परिसंपत्तियों और देयताओं का त्रैमासिक अनुमान’ (Quarterly Estimates of Households) के अनुसार लोग मंदी और आय की अनिश्चितता के दौरान अधिक बचत कर रहे हैं।
- RBI द्वारा उम्मीद जताई जा रही है कि मंदी एवं आय की अनिश्चितता के चलते लोगों की बचत में बढ़ोतरी होगी।
- आगे भी लॉकडाउन के कारण खपत में तेज़ी से गिरावट के कारण वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में परिवारों की शुद्ध वित्तीय संपत्ति में बढ़ोतरी की संभावना है।
- रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये घरेलू क्षेत्र सबसे स्थायी और आत्मनिर्भर स्रोत है, इसके लिये नीतिगत प्रयास के संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना है।