कार्बन करों को कम करने की आवश्यकता : नीति आयोग | 26 Jul 2018
संदर्भ
हाल ही में नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये भारत के कार्बन करों का उपयोग समुचित ढंग से नहीं हो पा रहा है और ऊर्जा-गहन उद्योगों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये कार्बन करों को कम करने की आवश्यकता है| आयोग का कहना है कि उच्च कार्बन कर लगाकर ऊर्जा-केंद्रित क्षेत्रों को दंडित किया जा रहा है| आयोग ने सुझाव दिया है कि ऊर्जा-केंद्रित क्षेत्रों के लिये एक अलग नीति बनाकर प्रतिस्पर्द्धी दरों पर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिये|
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- नीति आयोग के मुताबिक, कोयले के उपयोग को हतोत्साहित करने तथा सौर एवं पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रयासों ने वास्तव में उच्च ऊर्जा लागत के माध्यम से डाउनस्ट्रीम उद्योगों को एक तरह से दंडित किया है और वह भी ऐसे समय में जब भारत जलवायु परिवर्तन नीतियों में वैश्विक नेतृत्व कर रहा है| जबकि अमेरिका ने अत्यधिक बोझिल पर्यावरण संरक्षण नियमों को आसान बनाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया है।
- कार्बन करों को तर्कसंगत बनाने के लिये नीति आयोग का आह्वान पिछले वर्ष अगस्त में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम की चेतावनी का अनुकरण है| उन्होंने कहा था कि देश के ऊर्जा भविष्य के लिये यथार्थवादी और तर्कसंगत योजना को आगे बढ़ाने के लिये भारत "कार्बन साम्राज्यवाद" की अनुमति नहीं दे सकता है।
भारत को एल्युमीनियम नीति की आवश्यकता
- नीति आयोग ने “भारत में एल्युमीनियम नीति की आवश्यकता” नामक रिपोर्ट में एल्युमीनियम के प्रयोग के संदर्भ में (जो कि ऑटोमोबाइल और रक्षा उद्योगों के लिये महत्त्वपूर्ण रणनीतिक धातु है, जैसे-बिजली-केंद्रित उद्योगों, बुनियादी ढाँचे के लिये) एक अलग ऊर्जा नीति का प्रस्ताव भी दिया है|
- रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च बिजली लागत के अलावा, बिजली वितरण फर्मों पर 400 रुपए प्रति टन अक्षय ऊर्जा और कोयला उपकर का अतिरिक्त बोझ है|
- रिपोर्ट के अनुसार कार्बन ट्रेडिंग सिस्टम और बिजली उत्पादन पर शुल्क (राज्यों द्वारा लगाए गए) ने इस दूसरी सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली धातु की समग्र उत्पादन लागत में वृद्धि की है। रिपोर्ट के अनुसार, यह कुल मिलाकर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पर प्रति टन 9.71 डॉलर है।
- एक विकासशील देश के परिप्रेक्ष्य में बिजली की प्रति व्यक्ति खपत पर यह कार्बन कर अत्यधिक प्रतीत होता है|
उच्च ऊर्जा-गहन क्षेत्रों को दंडित करने का प्रयास
- रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न करों और उपकरों के माध्यम से उच्च कार्बन कर के भुगतान के लिये मजबूर कर उच्च ऊर्जा-गहन क्षेत्रों को दंडित किया जा रहा है| वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी दरों पर बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु इन क्षेत्रों के लिये एक अलग ऊर्जा नीति की ज़रूरत है ताकि ये उद्योग भी वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा कर सकें।
- रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि इन क्षेत्रों को प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये नवीकरणीय खरीद दायित्वों, कोयला सेस और विद्युत कर पर विचार किया जाना चाहिये और इन्हें तर्कसंगत बनाया जाना चाहिये।
- विद्युत वितरण कंपनियों को सौर एवं अन्य स्वच्छ ऊर्जा आपूर्तिकर्त्ताओं से उनकी कुल बिजली खरीद का एक निर्धारित हिस्सा खरीदना होगा। चालू वित्त वर्ष के लिये यह लक्ष्य 17% है।
कोयला आधारित विद्युत उत्पादन में भारत सबसे महँगा
- रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयले में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्राप्त होने के बावजूद भारत कोयला आधारित बिजली का उत्पादन करने वाले सबसे महंगे देशों में से एक है।
- निर्यात-उन्मुख विकास के साथ एक मज़बूत धातु उद्योग को जोड़कर, रिपोर्ट में उदाहरण दिया गया है कि कैसे चीन ने कोयला सब्सिडी और सस्ता ग्रिड टैरिफ देकर वैश्विक एल्युमीनियम बाज़ार पर कब्जा कर लिया है, जबकि वैश्विक एल्युमीनियम उत्पादन में अमेरिका का हिस्सा 2001 में 11% से घटकर 2017 में 1% हो गया है।
- स्थानीय उत्पादकों को संरक्षण प्रदान करने के लिये 23 मार्च को डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा एल्युमीनियम आयात पर 10% टैरिफ लगाए जाने के बाद से एल्युमीनियम को अमेरिका और चीन के बीच एक व्यापार युद्ध के रूप में देखा जा रहा है।
- स्वच्छ ऊर्जा की कीमतों में हालिया गिरावट पर विचार करते हुए ऊर्जा विशेषज्ञों ने कहा है कि बिजली वितरण फर्मों के लिये नवीकरणीय खरीद दायित्व को पूरा करना मुश्किल नहीं होगा।
- वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से संबंधित चिंताओं के कारण कोयला के बारे में नकारात्मकता की भावना बढ़ी है साथ ही भारत को छोड़कर अधिकांश प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में इसकी खपत में गिरावट आई है। इसलिये भारत के लिये कार्बन करों के उपयोग सहित स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा की नीतियों का पालन करना मुश्किल हो सकता है|