क्लाइमेट गवर्नेंस में प्रयासों के समेकन की आवश्यकता | 10 Jan 2018

चर्चा में क्यों?
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के तहत इस महीने शुरू होने वाले ‘तलानोआ संवाद’ (Talanoa Dialouge) के तहत संबंधित पार्टियों द्वारा पेरिस समझौते के बाद हुई प्रगति का आकलन किया जाएगा।

क्या है तलानोआ संवाद (Talanoa Dialouge)?

  • संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change-UNFCCC) की पार्टीज़ के 23वें सम्मेलन (COP-23) में इस शब्द का प्रयोग किया गया था।
  • तलानोआ फिज़ी और प्रशांत महासागरीय द्वीपों में होने वाली एक प्रकार की कबीलाई पंचायत है। यह गंभीर समस्याओं को समावेशी, सहभागी एवं पारदर्शी वार्ता के माध्यम से सुलझाने का एक तरीका है। इसमें बातचीत करने का तरीका भी एक कहानी सुनाने के समान होता है। इसमें लोग एक-दूसरे का विरोध नहीं करते बल्कि शांति से दूसरे पक्ष को सुनते हैं।
  • जर्मनी के शहर बॉन में आयोजित हुई COP-23 की अध्यक्षता फिज़ी सरकार द्वारा की गई थी जिसके द्वारा जलवायु परिवर्तन संबंधी वार्ताओं में तलानोआ को अपनाने की बात कही गई थी। 3-14 दिसंबर, 2018 को पोलैंड में आयोजित होने वाली COP-24 में भी इस संवाद प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा।
  • तलानोआ संवाद में इस बात पर विचार किया जाएगा कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के समझौते में हम अभी कहाँ हैं, हमें कहाँ जाना है और हम लक्ष्य तक कैसे पहुँचेंगे? 

तलानोआ संवाद क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • यूनाइटेड नेशन्स एनवायरनमेंट प्रोग्राम (UNEP) द्वारा ज़ारी की जाने वाली वैश्विक उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट, 2017 के अनुसार पेरिस समझौते के तहत कार्बन उत्सर्जन में कटौती के निर्धारित लक्ष्य ग्लोबल वार्मिंग को 2⁰C  से नीचे रखने के लिये अपर्याप्त है।
  • इससे सदी के अंत तक तापमान को डेढ़ से दो डिग्री तक रखने का सिर्फ एक तिहाई लक्ष्य ही पूरा होगा। 
  • तलानोआ के ज़रिये यह प्रयास किया जाएगा कि पेरिस समझौते के 2020 में लागू होने से पहले की अवधि के लिये सभी देश मिलकर कुछ नए कदम उठाएँ ताकि ग्लोबल वार्मिंग पर अंकुश लगाया जा सके।

क्लाइमेट गवर्नेंस में क्या हो राज्यों की भूमिका?

  • भारत जैसे एक संघीय लोकतंत्र में केंद्र, नागरिक समाज, व्यवसायियों और प्रमुख जलवायु हितधारकों के बीच के गठबंधन में राज्य भी इस गठबंधन का महत्त्वपूर्ण अंग है। इसलिये जलवायु परिवर्तन का समाधान करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रक्रियाओं में राज्यों की नियमित भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • जलवायु परिवर्तन पर भारत के राज्यों की कार्य योजनाएँ, राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को राज्यों की नीतियों के साथ एकीकृत करने में सहायक हो सकती हैं।
  • भारत ने कुल बिजली उत्पादन के 40% भाग को गैर-जीवाश्म ईंधन से उत्पादित कर, 2030 तक 2005 के स्तर की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता में 33% की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में राज्यों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हैं।
  • 2050 तक नेट-ज़ीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये राज्य सरकारों की अंडर2 गठबंधन (Under2 Coalition) नामक अन्तर्राष्ट्रीय पहल दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन के समाधान में राज्यों की भूमिका अपरिहार्य है। इसके सदस्य राज्यों और क्षेत्रों की संख्या 200 से भी ज्यादा है।
  • वर्तमान में, भारत से तेलंगाना और छत्तीसगढ़ इस गठबंधन में शामिल प्रमुख राज्य हैं। अन्य शीर्ष उत्सर्जक देशों की राज्य सरकारों, जैसे- चीन की 26 और अमेरिका की 24 की तुलना में यह संख्या कम है। ऐसे में भारतीय राज्यों का प्रतिनिधित्व बढ़ाना महत्त्वपूर्ण हैं।
  • राज्यों की शमन (Mitigation) सम्बन्धी संभावनाओं का दोहन करने के लिये भारत को राष्ट्रीय और राज्य कार्य योजनाओं के तहत नॉलेज एक्शन नेटवर्क और सहभागिता विकसित करने की आवश्यकता है। उदाहरणस्वरुप- केरल ने जलवायु परिवर्तन के लिये सामरिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन द्वारा वित्त पोषित ऐसे ज्ञान नेटवर्क के निर्माण करने की पहल पर काम शुरू किया है।
  • चूँकि प्रत्येक राज्य की क्षमता अलग-अलग होती हैं इसलिये शमन लक्ष्यों को निर्धारित करने में समानता के सिद्धांत पर आधारित ‘साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियाँ’ (Common But Differentiated Responsibilities-CBDR) का सिद्धांत लागू किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष 
राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तर की योजनाओं का नियतकालिक पुनर्मूल्यांकन और समीक्षा की जानी चाहिये ताकि राज्यों के कार्यों की प्रगति का आकलन किया जा सके। इसके लिये विभिन्न प्रदूषकों के उत्सर्जन की समीक्षा, ऑडिटिंग और निगरानी के लिये एक पारदर्शी ढाँचे को विकसित करने की जरूरत है। इंटरनेशनल क्लाइमेट गवर्नेंस में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में, भारत क्रिया-उन्मुख, समावेशी और बॉटम–अप दृष्टिकोण के माध्यम से इस संवाद प्रक्रिया को प्रोत्साहित कर और अपने राज्यों की  व्यापक भागीदारी और सहयोग को शामिल कर, वैश्विक स्तर पर एक उदाहरण स्थापित कर सकता है।