लद्दाख को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने की सिफारिश | 12 Sep 2019
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ( National Commission for Scheduled Tribes- NCST) ने गृह मंत्रालय से लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक आदिवासी क्षेत्र घोषित करने की सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु:
- जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत कारगिल और लेह ज़िलों को मिलाकर एक केन्द्रशासित प्रदेश लद्दाख का सृजन किया गया।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का मानना है कि इस प्रकार के कदम से लद्दाख क्षेत्र में प्रशासन को और विकेंद्रीकृत करने के साथ ही जनजातीय लोगों की सभ्यता तथा संस्कृति को अधिक स्थायित्व प्रदान किया जा सकेगा।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि नव-सृजित केन्द्रशासित प्रदेश लद्दाख पहले से ही देश में जनजातियों की अधिकता वाला एक क्षेत्र है।
- अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या लेह में 66.8 प्रतिशत, नुब्रा में 73.35 प्रतिशत, खलस्ती में 97.05 प्रतिशत, कारगिल में 83.49 प्रतिशत, सांकू में 89.96 प्रतिशत और ज़ांस्कर क्षेत्रों में 99.16 प्रतिशत है।
- लद्दाख क्षेत्र में निम्नलिखित अनुसूचित जनजातियांँ हैं-
- बलती (Balti)
- बेडा (Beda)
- बॉट (Bot), बोटो (Boto)
- ब्रोकपा (Brokpa), ड्रोकपा (Drokpa), डार्ड (Dard), शिन (Shin)
- चांगपा (Changpa)
- गर्रा (Garra)
- मोन (Mon)
- पुरीगपा (Purigpa)
- हालांँकि इस क्षेत्र के सुन्नी मुसलमानों सहित कई समुदायों को अधिकारिक आँकड़ो में शामिल नहीं किया गया है, जो कि अनुसूचित जनजाति के दर्जे के लिये दावा कर रहे हैं।
- केन्द्रशासित प्रदेश लद्दाख के सृजन से पहले लद्दाख क्षेत्र के लोगों को कुछ अधिकार प्राप्त थे, जिनमें भूमि का अधिकार शामिल था।
- जिसके तहत देश के अन्य हिस्सों के लोगों के लिये लद्दाख में जमीन खरीदना अथवा अधिग्रहित करना प्रतिबंधित था।
- इसी प्रकार लद्दाख क्षेत्र में ड्रोकपा (Drokpa), बलती (Balti) और चांगपा (Changpa) आदि समुदायों की कई विशिष्ट सांस्कृतिक विरासतें विद्यमान है, जिन्हें संरक्षित करने तथा बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद निम्नलिखित फायदें होंगे:
- शक्तियों का लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
- क्षेत्र की विशिष्ट संस्कृति का संरक्षण और प्रोत्साहन
- भूमि अधिकारों सहित कृषि अधिकारों का संरक्षण
- लद्दाख क्षेत्र के तीव्र विकास के लिये धन की उपलब्धतता
छठी अनुसूची (Sixth Schedule): संविधान की छठी अनुसूची (भाग 10 और अनुच्छेद 244) में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों के लिये विशेष प्रावधानों का वर्णन किया गया है।
संविधान की छठी अनुसूची की विशेषताएँ:
- असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के जनजातीय क्षेत्रों में संबंधित राज्य के कार्यकारी प्राधिकार के तहत ही स्वशासी ज़िलों का गठन किया जाएगा।
- राज्यपाल स्वशासी ज़िलों को स्थापित या पुनर्स्थापित और उनके नाम में परिवर्तन कर सकता है।
- प्रत्येक स्वशासी ज़िले के लिये एक 30 सदस्यीय ज़िला परिषद होगी जिसके 4 सदस्य राज्यपाल द्वारा नामित किये जाएंगे जबकि 26 सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा।
- निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा।
- ज़िला परिषद अपने अधीन क्षेत्रों के लिये भूमि, वन, नहर, कृषि, ग्राम प्रशासन, विवाह, तलाक और सामाजिक रुढ़ियों से संबंधित विधि बना सकती है।
- ज़िला परिषदें अपने अधीन क्षेत्रों में जनजातियों के आपसी मामलों के निपटारे हेतु ग्राम परिषद या न्यायालयों का गठन कर सकती हैं।
- ज़िला परिषदों को भू-राजस्व का आकलन व संग्रहण करने का अधिकार है।
- सामान्यतः संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम इन स्वशासी ज़िलों पर लागू नहीं होते हैं।
- अगर ये अधिनियम लागू होते हैं तो इसमें विशेष अपवाद और उन क्षेत्रों के लिये प्रथमिकताएँ जुड़ी होती हैं।