किसानों की आत्महत्या पर NCRB की रिपोर्ट | 06 Jan 2020
प्रीलिम्स के लिये:
NCRB, कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं से संबंधित आँकड़े
मेन्स के लिये:
कृषि क्षेत्र और भारतीय अर्थव्यवस्था, भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषकों का योगदान, कृषि क्षेत्र में आत्महत्याएँ और सरकारी रणनीतियाँ, आत्महत्याओं को रोकने से संबंधित उपाय
चर्चा में क्यों?
2 जनवरी, 2020 को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau- NCRB) ने वर्ष 2017 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या से संबंधित आँकड़ो को प्रकाशित किया है जिसमें कृषि क्षेत्र से संबंधित आत्महत्याओं में कमी देखी गई है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- NCRB के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में कृषि में शामिल 10,655 लोगों ने आत्महत्या की है। हालाँकि यह आँकड़ा वर्ष 2013 के बाद सबसे कम है।
- आत्महत्या करने वालों में 5,955 किसान/कृषक और 4,700 खेतिहर मज़दूर थे, ध्यातव्य है कि इनकी संख्या वर्ष 2016 की तुलना में कम है। वर्ष 2017 में देश में आत्महत्या के सभी मामलों में कृषि से संबंधित लोगों द्वारा आत्महत्या का प्रतिशत 8.2% है।
- NCRB ने अक्तूबर 2019 में 2017 के अपराध संबंधी आँकड़े जारी किये थे, लेकिन आत्महत्याओं से संबंधित आँकड़े जारी नहीं किये थे। वर्ष 2016 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या के आँकड़ो को जारी करते हुए भी NCRB ने किसान आत्महत्या में गिरावट का दावा किया था।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2016 में 6270 किसानों ने, जबकि वर्ष 2015 में लगभग 8,007 किसानों ने आत्महत्या की एवं वर्ष 2016 में 5,109 कृषि मज़दूरों ने तथा वर्ष 2015 में 4,595 कृषि मज़दूरों ने आत्महत्या की।
- हालाँकि आत्महत्या करने वाली महिला किसानों की संख्या 2016 के 275 से बढ़कर 2017 में 480 हो गई है।
- वर्ष 2017 में कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक आत्महत्याएँ महाराष्ट्र में (34.7 प्रतिशत) हुई हैं, उसके बाद कर्नाटक (20.3 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (9 प्रतिशत), तेलंगाना (8 प्रतिशत) और आंध्र प्रदेश (7.7 प्रतिशत) में आत्महत्याएँ हुई हैं।
- पश्चिम बंगाल, ओडिशा, नगालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, उत्तराखंड, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, दिल्ली, लक्षद्वीप तथा पुद्दूचेरी में किसानों या कृषि श्रमिकों द्वारा आत्महत्या किये जाने की नगण्य सूचनाएँ प्राप्त हुईं।
- वर्ष 2016 के कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं से संबंधित आँकड़े वर्ष 2017 के आँकड़ो से मिलते-जुलते हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं का प्रतिशत क्रमशः महाराष्ट्र में 32.2 प्रतिशत, कर्नाटक में 18.3 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 11.6 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 7.1 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 6 प्रतिशत था तथा वर्ष 2015 में भी कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं में महाराष्ट्र शीर्ष पर था एवं कर्नाटक और मध्य प्रदेश वर्ष 2016 की भाँति दूसरे और तीसरे स्थान पर थे।
- NCRB देश भर से प्रतिवर्ष विभिन्न प्रकार के अपराधों से संबंधित आँकड़ो को इकठ्ठा करता है।
कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं का कारण
कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं से संबंधित कारणों में निम्नलिखित कारण शामिल हैं-
- दिवालियापन या ऋणग्रस्तता: कृषकों द्वारा कृषि संबंधी कार्यों हेतु बैंकों और महाजनों से ऋण लिया जाता है किंतु प्राकृतिक आपदाओं या मानवजनित आपदाओं के कारण जब उनके फसल की पैदावार अनुमान के अनुरूप नहीं होती है तो वे ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं और इसी ग्लानि में आत्महत्या कर लेते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2015 में 3000 किसानों ने ऋणग्रस्तता से तंग आकर आत्महत्या किया था।
- परिवार की समस्याएँ: पारिवारिक समस्याएँ जैसे- ज़मीनी विवाद, आपसी लड़ाइयाँ इत्यादि भी कृषकों में आत्महत्या करने का कारण हो सकते हैं।
- फसल की विफलता: जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाओं की बारंबारता में वृद्धि से फसल बर्बाद हो जाती है। फसल की पैदावार अनुमान के अनुरूप न होने से किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है जिससे कुछ किसान इस बोझ को नहीं संभाल पाते और आत्महत्या का रास्ता चुनते हैं।
- बीमारी और मादक द्रव्यों/शराब का सेवन: कृषकों की आय अत्यंत कम होती है जिससे ऐसी बीमारियाँ जिनका इलाज़ कराना अत्यधिक महँगा होता है उन बीमारियों के इलाज के स्थान पर किसान आत्महत्या करना ज़्यादा सही मानते हैं। इसके अतिरिक्त कई किसान मादक पदार्थों के सेवन से भावावेश में आत्महत्या कर लेते हैं।
- दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों के कारण कृषि धीरे-धीरे घाटे का सौदा बन गई है।
- भू-जोत के आकार का दिन-प्रतिदिन छोटा होने से कृषकों की आय में लगातार कमी हो रही है| गौरतलब है कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार, आत्महत्या करने वाले किसानों में 72 प्रतिशत छोटे एवं सीमांत किसान हैं।
लगभग डेढ़ दशक के दौरान कृषि क्षेत्र में आत्महत्या
वर्ष | कृषि क्षेत्र में कुल आत्महत्या | आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या | आत्महत्या करने वाले खेतिहर मज़दूरों की संख्या |
2017 | 10,655 | 5,955 | 4700 |
2016 | 11,379 | 6270 | 5109 |
2015 | 12,602 | 8007 | 4595 |
2014 | 12,360 | 5650 | 6710 |
2013 | 11,772 | 5650 | 6122 |
आगे की राह
किसानों की आत्महत्याओं को रोकने के लिये निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिये-
- किसानों को कम कीमत पर बीमा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान की जाएँ।
- राज्य स्तर पर किसान आयोग का गठन किया जाए ताकि किसी भी प्रकार की समस्या का जल्द हल निकाला जा सके।
- कृषि शोध एवं अनुसंधान के माध्यम से ऐसे बीजों को विकसित किया जाए जो प्रतिकूल मौसम में भी उपज दे सकें।
- किसानों को तकनीकी, प्रबंधन एवं विपणन संबंधी सहायता प्रदान की जाए।
- इस संबंध में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए।
- कृषि क्षेत्र के लिये संस्थागत ऋण में वृद्धि की जाए।