गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों में तरलता की कमी का संकट | 13 Apr 2020

प्रीलिम्स के लिये:

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ

मेन्स के लिये:

गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों में तरलता की कमी का संकट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश में COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने देश की सभी बैंकों और ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (Non-Banking Finance Companies- NBFC) द्वारा अपने ग्राहकों को दिये गए ऋण के भुगतान हेतु तीन महीने की अतिरिक्त छूट देने के निर्देश दिये हैं। 

मुख्य बिंदु:

  • RBI द्वारा बैंकों और NBFCs के द्वारा दिये गए ऋण पर तीन महीने का अतिरिक्त समय देने के निर्देश के बाद अधिकांश NBFCs पर तरलता की कमी का संकट बढ़ गया है।
  • वर्तमान में बैंकों द्वारा NBFCs को दिया गया कुल बकाया ऋण 32.2% की वार्षिक वृद्धि के साथ 7,37,198 करोड़ रुपए (31 जनवरी, 2020) तक पहुँच गया है।
  • वर्तमान में लॉकडाउन के दौरान उद्योगों के बंद होने और बेरोज़गारी के कारण ऋण के भुगतान में कमी आई है, एक अनुमान के अनुसार, जून 2020 तक NBFCs के लगभग 1.75 लाख के अतिरिक्त ऋण की अवधि पूरी हो जाएगी, ऐसे में इन कंपनियों पर दबाव और भी बढ़ जाएगा।

NBFCs के वर्तमान संकट का कारण:

  • वर्तमान में NBFCs द्वारा बाज़ार में वितरित अधिकांश धन वह है जो इन कंपनियों ने बैंकों से ऋण के रूप में लिया था।  
  • RBI के ऋण भुगतान पर राहत के आदेश के बाद NBFCs को दोहरी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि NBFCs को अपने ग्राहकों को दिये गए ऋण पर तीन महीने की छूट देनी पड़ रही है परंतु बैंकों ने इन कंपनियों इस छूट का लाभ देने से इनकार कर दिया है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, बैंकों द्वारा NBFCs को दिये गए ऋण पर छूट न देने से ऐसी कंपनियों की समस्याएँ और अधिक बढ़ सकती हैं, हालाँकि RBI के आदेश में NBFCs को छूट न दिये जाने की बात नहीं कही गई थी।
  • पहले से ही IL&FS और DHFL संकट से जूझ रही NBFCs को इस मुद्दे पर बैंकों, RBI और वित्त मंत्रालय से भी कोई राहत नहीं मिली है। 
  • भारतीय वाणिज्य एंव उद्योग मंडल (ASSOCHAM) द्वारा NBFCs के लिये एक ‘स्पेशल लिक्विडिटी विंडो’ (Special Liquidity Window) स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया था परंतु RBI ने अभी तक इस संदर्भ में कोई रुचि नहीं दिखाई।  
  • हालाँकि RBI ने ‘टार्गेटेड लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन’ (Targeted Long-Term Repo Operations- TLTRO) विंडो के माध्यम से 1 लाख करोड़ रुपए उपलब्ध कराए हैं, परंतु इसमें से केवल आधी राशि को प्राइमरी इंश्योरेंस के रूप में जारी करने के लिये रखा गया है।  

प्रभाव:

  • क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (CRISIL) के अनुसार, NBFCs के पास बैंकों की तरह वित्तीय तरलता के प्रणालीगत स्रोत नहीं होते हैं, वे इनके लिये बड़े निवेशों या होलसेल फंडिंग पर निर्भर करते हैं। 
  • वर्तमान में ऋण वसूली में कमी और बैंकों से किसी सहयोग के अभाव में NBFCs की समस्या बढ़ सकती है, CRISIL के अनुमान के अनुसार, जून 2020 तक इन कंपनियों पर तरलता की कमी का दबाव 25% तक बढ़ जाएगा।   

  • बाज़ार में फंड की कमी के कारण RBI द्वारा प्रस्तावित फंड का लाभ भी उच्च रेटिंग वाली कंपनियों को ही मिल सकेगा, ऐसे में कम रेटिंग वाली NBFCs जो मुख्य रूप से बैंकों पर आश्रित हैं उनके लिये यह समस्या और भी गंभीर हो जाएगी।  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस