राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन | 12 Mar 2020
प्रीलिम्स के लिये: राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन, प्रगत संगणन विकास केंद्र, सुपरकंप्यूटर मेन्स के लिये: सुपर कंप्यूटर के अनुप्रयोग |
चर्चा में क्यों?
इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) से RTI द्वारा प्राप्त सूचना के अनुसार, राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (National Supercomputing Mission-NSM) के तहत भारत ने वर्ष 2015 से अब तक मात्र 3 सुपरकंप्यूटर विकसित किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि पुणे स्थित प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बंगलूरू को इस मिशन के लिये नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया था।
- RTI द्वारा प्राप्त सूचना के अनुसार, बीते 5 वर्षों में दोनों एजेंसियों को 750.97 करोड़ रुपए प्रदान किये जा चुके हैं, जो कि मिशन के कुल बजट (4,500 करोड़ रुपए) का 16.67 प्रतिशत है।
- ज्ञात सूचना के अनुसार, बीते वर्षों में इस मिशन के तहत वितरित होने वाले बजट में काफी असमानता देखी गई है।
प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC)प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC) इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक प्रधान अनुसंधान एवं विकास संस्था है, जो सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स तथा संबद्ध क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य करती है। |
राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन
(National Supercomputing Mission-NSM)
- 25 मार्च, 2015 को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन को मंज़ूरी दी थी।
- संचार और सूचना प्रौद्योगिकी में अग्रणी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास, वैश्विक प्रौद्योगिकी के रुझानों और बढ़ती हुई आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन को मंज़ूरी दी थी।
- इस मिशन को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग कार्यान्वित कर रहे हैं तथा इसके लिये प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बंगलूरू को नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है।
- मिशन के तहत 70 से अधिक उच्च प्रदर्शन वाले सुपरकंप्यूटरों के माध्यम से एक विशाल सुपरकंप्यूटिंग ग्रिड स्थापित कर देश भर के राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों को सशक्त बनाने की परिकल्पना की गई है।
उद्देश्य
- भारत को सुपरकंप्यूटिंग के क्षेत्र में अग्रणी बनाना और राष्ट्रीय तथा वैश्विक प्रासंगिकता की चुनौतियों को हल करने में भारत की क्षमता बढ़ाना।
- भारतीय वैज्ञानिकों और शोधकर्त्ताओं को अत्याधुनिक सुपरकंप्यूटिंग सुविधाओं से सुसज्जित करना और उन्हें संबंधित ज्ञानक्षेत्र में अत्याधुनिक अनुसंधान हेतु सक्षम बनाना।
- सुपरकंप्यूटिंग में निवेश को प्रोत्साहन देना।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में शामिल होने के लिये सुपरकंप्यूटिंग तकनीक के रणनीतिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना।
- अनुसंधान और विकास संस्थानों को सुपर कंप्यूटिंग ग्रिड से जोड़ना।
मिशन में देरी के कारण
- विशेषज्ञों के अनुसार, शुरुआती वर्षों के दौरान राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (NSM) के लिये असमान वित्तपोषण ने सुपरकंप्यूटर के निर्माण की समग्र गति को धीमा कर दिया था।
- मिशन के शुरुआती चरण में अतिरिक्त समय लगने का एक मुख्य कारण यह भी है कि उस अवधि में वैज्ञानिकों को सुपरकंप्यूटर से संबंधित समग्र तकनीक शुरू से विकसित करनी थी, जो कि अपेक्षाकृत काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था।
वैश्विक स्तर पर सुपरकंप्यूटर
- वैश्विक स्तर पर चीन सुपरकंप्यूटर के विकास को लेकर चल रही प्रतियोगिता में सबसे आगे है। चीन ने बीते 6 महीनों में 8 और सुपरकंप्यूटरों को अपनी सूची में शामिल कर लिया है और चीन में सुपरकंप्यूटरों की मौजूदा संख्या 227 तक पहुँच गई है।
- इस सूची में चीन के पश्चात् अमेरिका का स्थान है, जिसके पास कुल 119 सुपरकंप्यूटर हैं। इसी श्रेणी में अन्य देशों जैसे- जापान (29), फ्रांँस (18), जर्मनी (16), नीदरलैंड (15), आयरलैंड (14) और यूनाइटेड किंगडम (11) का भी स्थान है।
सुपरकंप्यूटर की उपयोगिता
- विदित हो कि मानसून से संबंधित सटीक जानकारी उपलब्ध कराने के लिये वैज्ञानिकों को तेज़ गणना वाली मशीन की ज़रुरत होती है और सुपरकंप्यूटर इस ज़रूरत को पूरा कर सकते हैं।
- अंतरिक्ष विज्ञान में भी सुपरकंप्यूटर्स का अत्यधिक महत्त्व है, खासकर ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुड़े राज खोलने के लिये वैज्ञानिक ऐसी मशीनों का इस्तेमाल करते हैं।
- गौरतलब है कि सुपरकंप्यूटर्स की मदद से ही DNA रिसर्च और प्रोटीन रिसर्च नए आयाम तक पहुँची हैं। वैज्ञानिक मौसम में बदलाव और भूकंपों की प्रक्रिया को समझने के लिये भी सुपरकंप्यूटर्स का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही परमाणु शोध में भी सुपरकंप्यूटर्स का प्रयोग किया जाता है।
आगे की राह
- आधिकारिक सूचना के अनुसार, वर्ष 2020 तक देश में 11 और नए सुपरकंप्यूटर स्थापित कर दिये जाएंगे और ये सभी स्वदेशी रूप से निर्मित होंगे।
- मिशन का प्रारंभिक चरण समाप्त हो चुका है और इस संबंध में समग्र तकनीक विकसित की जा चुकी है, जिसके कारण अनुमानतः वैज्ञानिकों को आगामी चरणों में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा।