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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

राष्‍ट्रीय पोषण सप्‍ताह

  • 02 Sep 2017
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा 1 सितंबर से 7 सितंबर, 2017 तक ‘राष्‍ट्रीय पोषण सप्‍ताह’ (National Nutrition Week) मनाया जा रहा है।

विषय

इस वर्ष राष्‍ट्रीय पोषण सप्‍ताह का विषय है - “नवजात शिशु एवं बाल आहार प्रथाएँ : बेहतर बाल स्‍वास्‍थ्‍य” (Optimal Infant & Young Child feeding Practices - IYCF : Better Child Health)।

उद्देश्य

इस अभियान का मुख्य उद्देश्य बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा हेतु उचित पोषण के महत्त्व के विषय में जन जागरूकता पैदा करना है। आज के स्वस्थ बच्चे कल का स्वस्थ भारत है। इनके बेहतर स्वास्थ्य का देश के विकास, उत्पादकता तथा आर्थिक उन्नति पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।

प्रमुख बिंदु

  • इस सप्ताह के दौरान, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के खाद्य और पोषण बोर्ड (Food and Nutrition Board of Ministry of Women & Child Development) द्वारा राज्य/संघ-शासित प्रदेशों के संबंधित विभागों, राष्ट्रीय संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों के साथ समन्वय करके राज्य/संघ-शासित स्तर पर कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा।
  • इसके अतिरिक्त जागरूकता का प्रसार करने हेतु शिविरों का आयोजन तथा निर्दिष्ट विषय पर पूरे सप्ताह सामुदायिक बैठकों का आयोजन भी किया जाएगा।
  • इस सप्ताह के दौरान राज्य, ज़िला एवं गांव स्तर पर भी बहुत सी कार्यशालाओं एवं अन्य बड़ी गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा।
  • बेहतर स्वास्थ्य के लिये पोषण के महत्त्व पर राज्य/ज़िला स्तर के अधिकारियों को संवेदनशील और सक्षम बनाने के लिये एक दिन की कार्यशाला का भी आयोजन किया जाएगा।

पोषक आहार की महत्ता

  • पोषणयुक्त आहार प्राप्त करना न केवल वर्तमान पीढ़ी का अधिकार है, बल्कि यह भावी पीढ़ियों के अस्तित्व, स्वास्थ्य और विकास का भी मुद्दा है।
  • पोषणयुक्त आहार न मिल पाने के कारण न केवल कम उम्र के बच्चों में मधुमेह एवं हृदय रोग जैसी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं बल्कि उनमें रोगों से प्रतिरक्षा करने की क्षमता का भी ह्रास होता है।
  • परिणामतः कुपोषित बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है, जिसका प्रभाव इनके साथ-साथ देश के भविष्य पर भी पड़ता है।

 ‘‘माँ’’ कार्यक्रम 

  • मंत्रालय द्वारा नवजात शिशुओं के लिये माँ के दूध की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए स्तनपान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से “माँ” (MAA- Mothers’ Absolute Affection) कार्यक्रम शुरू किया गया है। 
  • “माँ” कार्यक्रम के अंतर्गत स्‍तनपान को बढ़ावा देने के लिये ज़िला और ब्‍लॉक स्‍तर पर कार्यक्रम प्रबंधकों सहित डॉक्‍टरों, नर्सों और ए.एन.एम. के साथ करीब 3.7 लाख आशा कार्यकर्त्ताओं तथा तकरीबन 82,000 स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्त्ताओं को संवेदनशील बनाया गया है।
  • इसके अतिरिक्त 23,000 से ज़्यादा स्‍वास्‍थ्‍य कर्मचारियों को आई.वाई.सी.एफ. प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया है।
  • साथ ही उपयुक्‍त स्‍तनपान परंपराओं के महत्त्व के संबंध में माताओं को संवेदनशील बनाने के लिये ग्रामीण स्‍तरों पर आशा कार्यकर्त्ताओं द्वारा 1.49 लाख से अधिक माताओं की बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं।
  • उल्लेखनीय है कि जन्‍म के एक घंटे के भीतर स्‍तनपान कराए जाने से नवजात शिशुओं की मृत्‍यु में 20 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है।
  • ऐसे नवजात शिशु जिन्‍हें माँ का दूध नहीं मिल पाता है, उनमें स्तनपान करने वाले बच्चों की तुलना में निमोनिया एवं पेचिश होने की संभावना क्रमशः 15 गुना और 11 गुना अधिक होती है।
  • इसके अतिरिक्त स्‍तनपान नहीं करने वाले बच्‍चों में मधुमेह, मोटापा, एलर्जी, दमा, ल्‍यूकेमिया आदि होने का भी खतरा रहता है। 

चुनौतियाँ

  • भारत में युवा बच्चों में कुपोषण एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। 
  • एन.एफ.एच.एस.-4 (National Family Health Survey 2015-16) में भी महिलाओं और बच्चों की पोषण संबंधी स्थिति के संबंध में कोई उत्साहजनक सुधार नहीं दर्शाए गए हैं।
  • भारत में नवजात शिशुओं की मृत्यु में जहाँ व्यवस्थात्मक कमज़ोरियाँ उत्तरदायी होती हैं, वहीं दूसरी ओर जन-सामान्य में सामान्य स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों का अभाव भी प्रमुख कारण होता है। उदाहरण के तौर पर, नवजात शिशु के स्वास्थ्य में माँ के दूध की महत्ता; माँ के शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी होना, जिसके परिणामस्वरूप स्तनपान करने वाले शिशु को भी पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्वों की आपूर्ति नहीं हो पाती है इत्यादि।

आगे की राह

आमजन में कुपोषण की समस्या केवल स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं पर उनके खर्च न कर सकने की क्षमता का परिणाम भर नहीं है, बल्कि यह देश के वास्तविक आर्थिक पिछड़ेपन एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के असमान वितरण का द्योतक है। यदि इस संबंध में अभी कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो इसका परिणाम देश की भावी पीढ़ी को भुगतना होगा। अत: गर्भवती माताओं के भोजन में आवश्यक पोषक तत्त्वों की मौजूदगी सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है। साथ ही माँओं द्वारा स्तनपान कराए जाने के संबंध में जागरूकता बढ़ाए जाने पर भी बल देना होगा, ताकि स्तनपान न करने वाले बच्चों में होने वाली बीमारियों के दुष्परिणामों से बचा जा सके।

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