प्रतिस्पर्द्धा कानून के अर्थशास्त्र पर राष्ट्रीय सम्मेलन | 07 Mar 2020
प्रीलिम्स ले लिये:प्रतिस्पर्द्धा कानून के अर्थशास्त्र पर राष्ट्रीय सम्मेलन, प्रतिस्पर्द्धा कानून, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग मेन्स के लिये:प्रतिस्पर्द्धा कानून और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India-CCI) ने 06 मार्च, 2020 को नई दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर में प्रतिस्पर्द्धा कानून के अर्थशास्त्र पर पाँचवें राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।
प्रमुख बिंदु
- प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद (PMEAC) के अध्यक्ष डॉ. बिबेक देबरॉय इस राष्ट्रीय सम्मेलन के प्रमुख वक्ता थे।
- सम्मेलन के दौरान उद्घाटन सत्र के अलावा दो तकनीकी सत्र भी आयोजित किये गए जिनमें शोधकर्त्ताओं ने प्रतिस्पर्द्धात्मक प्रवर्तन और आर्थिक बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मुद्दों पर अपने अकादमिक पेपर प्रस्तुत किये।
- सम्मेलन में अर्थशास्त्रियों, चिकित्सकों और नीति निर्माताओं सहित प्रतिस्पर्द्धा कानून और नीति संबंधी अर्थशास्त्र में गहरी रुचि रखने वाले लोगों को लक्षित किया गया था।
उद्देश्य
- प्रतिस्पर्द्धा कानून के अर्थशास्त्र पर क्षेत्र में समकालीन मुद्दों पर अनुसंधान और वार्ता को बढ़ावा देना।
- भारतीय संदर्भ में प्रासंगिक प्रतिस्पर्द्धा के मुद्दों की बेहतर समझ विकसित करना।
- भारत में प्रतिस्पर्द्धा कानून के कार्यान्वयन हेतु ढाँचा विकसित करना।
प्रतिस्पर्द्धा कानून
- बाज़ार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर वस्तुओं एवं सेवाओं की विस्तृत श्रृंखला तक सुगम पहुँच प्रदान करती है। व्यावसायिक उद्यम अपने हितों की रक्षा के लिये विभिन्न प्रकार की रणनीतियों और युक्तियों को अपनाते हैं।
- वे अधिक शक्ति और प्रभाव के लिये एक साथ मिल जाते हैं जो उपभोक्ताओं के हितों के लिये हानिकारक हो सकता है और कई बार उनके द्वारा गलत तरीके से मूल्य निर्धारण, कीमत बढ़ाने के लिये जानबूझकर उत्पाद आगत में कटौती, प्रवेश क बाधित करना, बाज़ारों का आवंटन, बिक्री में गठजोड़, अधिक मूल्य निर्धारण और भेदभावपूर्ण मूल्य निर्धारण जैसी पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं जिसका विभिन्न समूहों के समाजिक और आर्थिक हित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- इसलिये न केवल एकाधिकार अथवा व्यापारिक संयोजनों के गठन को रोकना आवश्यक है बल्कि एक निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना भी आवश्यक है ताकि उपभोक्ताओं को अपनी खरीद का बेहतर मूल्य प्राप्त हो सके।
- प्रतिस्पर्द्धा कानून का प्रमुख उद्देश्य उपभोक्ता की प्राथमिकता के अनुकूल बाज़ार के सृजन में प्रतिस्पर्द्धा को सहायक साधन के रुप में प्रयोग करते हुए आर्थिक दक्षता का संवर्द्धन करना है।
भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग
Competition Commission of India-CCI
- किसी भी अर्थव्यवस्था में ‘बेहतर प्रतिस्पर्द्धा’ का अर्थ है- आम आदमी तक किसी भी गुणात्मक वस्तु या सेवा की बेहतर कीमत पर उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- ‘प्रतिस्पर्द्धा’ के इसी वृहद् अर्थ को आत्मसात करते हुए वर्ष 2002 में संसद द्वारा ‘प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002’ (The Competition Act, 2002) पारित किया गया, जिसके बाद केंद्र सरकार द्वारा 14 अक्तूबर, 2003 को भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का गठन किया गया।
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, इस आयोग में एक अध्यक्ष एवं छः सदस्य होते हैं, सदस्यों की संख्या 2 से कम तथा 6 से अधिक नहीं हो सकती किंतु अप्रैल 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का आकार एक अध्यक्ष और छह सदस्य (कुल सात) से घटाकर एक अध्यक्ष और तीन सदस्य (कुल चार) करने को मंज़ूरी दे दी। उल्लेखनीय है कि सभी सदस्यों को सरकार द्वारा ‘नियुक्त’ (Appoint) किया जाता है।
- आयोग के कार्य
- प्रतिस्पर्द्धा को दुष्प्रभावित करने वाले अभ्यासों (Practices) को समाप्त करना एवं टिकाऊ प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना।
- उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करना।
- भारतीय बाज़ार में ‘व्यापार की स्वतंत्रता’ सुनिश्चित करना।
- किसी प्राधिकरण द्वारा संदर्भित मुद्दों पर प्रतियोगिता से संबंधित राय प्रदान करना।
- जन जागरूकता का प्रसार करना।
- प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मामलों में प्रशिक्षण प्रदान करना।