राष्ट्रीय केला मेला, 2018 | 19 Feb 2018
चर्चा में क्यों?
उष्णकटिबंधीय विकसित देशों में केला एवं प्लैंटेंस (Banana and plantains) फाइबर युक्त एक मुख्य खाद्य फसल है। लगभग चार हज़ार वर्ष से इसकी खेती की जा रही है। केले का मूल उत्पादन स्थल भारत है तथा भारत के उष्णकटिबंधीय उप-कटिबंधीय तथा तटीय क्षेत्रों में व्यापक पैमाने में इसकी खेती की जाती है।
वैश्विक संदर्भ में
- वैश्विक संदर्भ में केला उत्पादन मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया, कैरिबियन और लैटिन अमेरिकी देशों में केंद्रित है, ऐसा वहाँ की जलवायु की स्थितियों के कारण है।
- हाल के वर्षों में घरेलू खाद्य पदार्थ, पौष्टिक खाद्य पदार्थ एवं विश्व के कई भागों में सामाजिक सुरक्षा के रूप में केले एवं प्लैंटेंस (Banana and plantains) का महत्त्व निरंतर बढ़ रहा है।
- आज विश्व के लगभग 130 देशों में 5.00 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में केले का उत्पादन किया जाता है जिसमें केले एवं प्लैंटेंस का 103.63 मिलियन टन उत्पादन होता है।
भारतीय संदर्भ में
- भारत, विश्व में केले का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला देश है। भारत में 0.88 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में 29.7 मिलियन टन केले का उत्पादन होता है। भारत में केले की उत्पादकता 37 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है।
- यद्यपि भारत में केले की खेती विश्व की तुलना में 15.5 प्रतिशत क्षेत्र में की जाती है, परन्तु भारत में केले का उत्पादन विश्व की तुलना में 25.58 प्रतिशत होता है।
- भारत में गत 2 दशकों में बुआई क्षेत्र, उत्पादन एवं उत्पादकता की दृष्टि से केले की खेती में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
- इस प्रकार केला एक महत्त्वपूर्ण फसल के रूप में उभर रहा है। उल्लेखनीय है कि केले की मांग में लगातार वृद्धि देखी गई है। यही कारण है कि मंत्रालय द्वारा केले की घरेलू मांग वर्ष 2050 तक बढ़कर 60 मिलियन टन होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
- केले एवं इसके उत्पादों के निर्यात में भी पर्याप्त संवृद्धि की गुंजाइश है जिससे केले की मांग में और अधिक वृद्धि की जा सकती है।
- केला और प्लैंटेंस लगातार विश्व स्तर पर आश्चर्यजनक वृद्धि दर्ज कर रहे हैं। वर्ष भर केले की उपलब्धता, वहनीयता, विभिन्न किस्में, स्वाद, पोषकता एवं औषधीय गुणों के कारण केला सभी वर्ग के लोगों के बीच रुचिकर फल बनता जा रहा है तथा इसी कारण केले के निर्यात की बेहतर संभावना भी है।
सरकार की पहल
- हमारे एकीकृत बागवानी विकास मिशन (जिसमें उच्च सघनता वाले पौधों को अपनाने, टिश्यू कल्चर प्लान्टस उपयोग और पीएचएम अवसंरचना में अन्य गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है) के तहत विभिन्न गतिविधियों के संचालन के कारण न केवल केले की खेती के क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ है बल्कि केले के उत्पादन व उत्पादकता में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- पिछले तीन वर्षों के दौरान 11809 पैक हाउसेज़, 34.92 लाख मीट्रिक टन शीतगृह भंडारण क्षमता का निर्माण किया गया है।
- केले की पौष्टिकता, काफी अधिक लाभ तथा इसकी निर्यात क्षमता के संबंध में बढ़ती जागरूकता के कारण केले की खेती के क्षेत्र में निरंतर वृद्धि हो रही है।
- पूरे देश में केले की खेती करने वाले किसानों को साढ़े 3 वर्षों के दौरान वर्तमान सरकार द्वारा एकीकृत बागवानी विकास मिशन स्कीम शुरू किये जाने के कारण काफी लाभ प्राप्त हुआ है।
- शहरीकरण एवं प्राकृतिक स्थलों पर जंगली केले की खेती में कमी के कारण केले की उपलब्ध आनुवंशिक विविध किस्मों को संरक्षित करने की आवश्यकता है।
इस संदर्भ में आने वाली समस्याएँ एवं समाधान
- मूसा नामक जंगली प्रजाति और उसकी सहायक किस्में जैविक एवं अजैविक दबावों के विपरीत प्रतिरोधात्मक क्षमता सृजित करने के लिये महत्त्वपूर्ण स्रोतों का निर्माण करती है।
- जैविक एवं अजैविक दबाव ऐसी मुख्य समस्याएँ हैं जिनसे बड़े पैमाने पर उत्पादकता में कमी आती है। यद्यपि केले के उत्पादन संबंधी समस्याएँ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में अलग-अलग होती हैं फिर भी अधिकांश समस्याओं की प्रकृति एक समान होती है।
- समस्याओं की इस प्रकार की जटिलता को देखते हुए केले की उत्पादकता को बढ़ाने के लिये मौलिक तथा अनुकूलन अनुसंधान की आवश्यकता प्रतीत होती है।
- केले तथा प्लैंटेंस के प्रजनन में उनकी अपनी अंतःनिर्मित समस्याएँ हैं तथा अनुमानित परिणामों को प्राप्त करने के लिये वर्तमान जैव प्रौद्योगिकी उपकरण/कार्यनीतियाँ इस समस्या के समाधान में सहायक हो सकती हैं तथा इसका वास्तविक प्रभाव भविष्य में देखने को मिलेगा।
- वर्ष 2050 में 60 मिलियन टन उत्पादन के लक्ष्य के साथ उर्वरक, सिंचाई, कीटनाशी प्रबंधन एवं टीआर4 जैसी बीमारियों के उपचार और आदान लागतों में वृद्धि जैसी बृहत् उत्पादन समस्याओं का समाधान केले के उत्पादन को बढ़ाने के लिये किया जा रहा है।
- आनुवंशिक अभियांत्रिकी, केंद्रक प्रजनन, सबस्ट्रेट डायनामिक्स, जैविक खेती, समेकित कीट और रोग प्रबंधन, फीजियोलॉजिकल, जैविक व अजैविक दबाव प्रबंधन के लिये जैव रसायन एवं जेनेटिक आधार, फसलोपरान्त प्रौद्योगिकी को अपनाना, कटाई पश्चात् प्रौद्योगिकी को अपनाना तथा अपशिष्ट से धनार्जन तक मूल्य संवर्द्धन जैसे क्षेत्रों में प्रोत्साहन देने के लिये नए कार्यकलापों को शुरू किया जा रहा है।