नासा का वोएजर-2 | 12 Dec 2018
चर्चा में क्यों?
नासा का वोएजर-2 (Voyager 2) सौरमंडल के आखिरी छोर तक पहुँचने वाला इतिहास में दूसरा मानव निर्मित उपकरण बन गया है।
- Voyager 2 को 20 अगस्त, 1977 को लॉन्च किया गया था, जबकि Voyager 1 को 5 सितंबर, 1977 को लॉन्च किया गया था। Voyager 2 NASA का सबसे लंबा चलने वाला मिशन है।
- Voyager 1 ने 2012 में ही इस सीमा को पार किया था।
- लेकिन 41 साल पहले लॉन्च किये गए Voyager 2 में एक क्रियाशील उपकरण लगाया गया है जो अंतरिक्ष में तारों के बीच की दुनिया के बारे में अपनी तरह के पहले प्राकृतिक अवलोकन उपलब्ध कराएगा।
- नासा के अनुसार, इस समय Voyager 2 पृथ्वी से 18 बिलियन किमी. दूर है।
- Voyager 1 और Voyager 2 दोनों अभी सौरमंडल के अंदर ही हैं फिलहाल निकट भविष्य में भी ये इससे बाहर नहीं जाएंगे।
- Voyager 2 एकमात्र अंतरिक्ष यान है जो सभी चार गैस विशाल ग्रहों - बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून की यात्रा कर चुका है।
हेलीओस्फीयर (heliosphere)
- अंतरिक्ष यान पर लगे विभिन्न उपकरणों से प्राप्त डेटा का आकलन कर मिशन के वैज्ञानिकों ने यह निर्धारित किया कि इस प्रोब ने 5 नवंबर को हेलीओस्फीयर (heliosphere) के आखिरी छोर को पार किया।
- हैलियोपाउज़ (heliopause) नामक यह सीमा ऐसा स्थान है जहाँ कमज़ोर, गर्म सौर हवा तारों के बीच के ठंडे और घने माध्यम से मिलती है।
- इस यान द्वारा अपनी यात्रा के नए चरण में प्रवेश करने के बावजूद मिशन के ऑपरेटर Voyager 2 के साथ संवाद कर सकते हैं। लेकिन इस यान से आने वाली सूचना, जो प्रकाश की गति से आगे बढती है, को अंतरिक्ष यान से पृथ्वी तक पहुँचने में लगभग 16.5 घंटे का समय लगता है।
- हेलीओस्फीयर से Voyager 2 के बाहर निकलने का सबसे मजबूर साक्ष्य प्लाज़्मा साइंस एक्सपर्टमेंट (Plasma Science Experiment- PLS) से प्राप्त हुआ। उल्लेखनीय है कि यह उपकरण पर Voyager 1 पर भी लगाया था लेकिन इस यान द्वारा हेलीओपोज़ की सीमा को पार करने से काफी पहले वर्ष, 1980 में ही इस उपकरण ने काम करना बंद कर दिया था।
- प्लाज्मा डेटा के अतिरिक्त, Voyager 2 द्वारा हेलीओपॉज़ की सीमा को पार करने के साक्ष्य इस पर लगे अन्य तीन उपकरणों- ब्रह्मांडीय किरण उपप्रणाली (cosmic ray subsystem), कम ऊर्जा वाले कण उपकरण (low energy charged particle instrument) और मैग्नेटोमीटर (magnetometer) से प्राप्त हुए हैं।
महत्त्व और चुनौतियाँ
- हेलिओस्फीयर बाहरी अंतरिक्ष से बहने वाली स्थिर इंटरसेलर हवाओं के साथ कैसे इंटरैक्ट करता है, इस संबंध में दोनों Voyagers विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। इनके अवलोकनों का उपयोग नासा के IBEX (NASA’s Interstellar Boundary Explorer-IBEX) से डेटा प्राप्त करने के लिये किया जाएगा, यह सौर मंडल की सीमा की रिमोट सेंसिंग संबंधी एक मिशन है।
- इस मिशन में सबसे बड़ी चुनौती गर्मी और बिजली के क्रमिक नुकसान से निपटना है। वर्तमान में Voyager 2 का परिचालन केवल 38.5 डिग्री फ़ारेनहाइट (3.6 डिग्री सेल्सियस) के तापमान पर किया जा रहा है और इससे प्रत्येक वर्ष अंतरिक्ष यान के विद्युत उत्पादन में 4 वाट की कमी आती है।
महत्त्वपूर्ण शब्दावलियाँ
टर्मिनेशन शॉक (Termination Shock):
- सूर्य से बाहर की ओर अरबों किलोमीटर की दूरी पर बहने वाली सौर हवा।
- यह विद्युत आवेशित गैसों की एक धारा है।
- जब तक कि यह टर्मिनेशन शॉक तक न पहुँच जाए, तब तक यह औसतन 300 से 700 किमी. प्रति सेकेंड (700,000-1,500,000 मील प्रति घंटा) की गति से बहती है। इस बिंदु पर सौर हवा की गति तेज़ी से कम हो जाती है क्योंकि यह इंटरसेलर हवाओं (interstellar wind) के संपर्क में आ जाती है।
हेलिओस्फीयर (Heliosphere):
- सूर्य से निकलने वाली सौर हवा, एक ऐसे बुलबुले का निर्माण करती है जो ग्रहों की कक्षाओं से बहुत दूर तक फैली हुई हो। यह बुलबुला (bubble) ही हेलिओस्फीयर है जो एक लंबे वात शंकु (windsock) के आकार का होता है तथा तारों के बीच अंतरिक्ष में सूर्य के साथ-साथ गति करता है।
हेलिओशीएथ (Heliosheath):
- हेलीओशिएथ, हेलीओस्फीयर का बाहरी क्षेत्र है, जो टर्मिनेशन शॉक (वह बिंदु जहाँ सौर हवा की गति अचानक कम हो जाती है तथा वह पहले की तुलना में अधिक सघन और गर्म हो जाती है ) से परे होता है।
हेलियोपॉज़ (Heliopause):
- सौर हवा और इंटरसेलर हवा के बीच की सीमा, जहाँ दोनों हवाओं का दबाव संतुलन में होता है, को हेलियोपॉज़ कहते है।
बो शॉक (Bow shock)
- जब हेलीओस्फीयर इंटरस्टेलर स्पेस के माध्यम से बहता है, तो बो शॉक का निर्माण होता है ठीक वैसे ही जैसे समुद्र में जहाज़ के चलने के दौरान होता है।
ऊर्ट क्लाउड (Oort Cloud)
- यह उन छोटे पिंडो का संग्रह है जो अभी भी सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में हैं। सौर मंडल की सीमा को ऊर्ट क्लाउड के अंतिम किनारे से बाहर माना जाता है।
- हालाँकि, अभी तक ऊर्ट क्लाउड की चौड़ाई ठीक से ज्ञात नहीं है, लेकिन यह अनुमान है कि यह सूर्य से लगभग 1000 खगोलीय इकाइयों (astronomical units- AU) से शुरू होता है और लगभग 100,000 AU तक इसका विस्तार होता है (1 AU सूर्य से पृथ्वी के बीच दूरी है)।
द गोल्डन रिकॉर्ड (The Golden Record)
- गोल्डन रिकॉर्ड 12 इंच की तांबे की डिस्क है जिस पर सोने की परत चढ़ाई गई है, Voyager 1 और 2 दोनों पर पर ध्वनि संकेतों रिकॉर्ड को लगाया गया है। इसमें धरती पर जीवन और संस्कृति की विविधता को चित्रित करने के लियेए चुने गए ध्वनियों और छवियों वाले डेटा होते हैं।
डीप स्पेस नेटवर्क (Deep Space Network- DSN)
- डीप स्पेस नेटवर्क (DSN) हमारे सौर मंडल के सबसे दूरदराज के बिंदुओं का पता लगाने वाले नासा और गैर-नासा मिशन का समर्थन करता है।
- DSN में तीन ग्राउंड स्टेशन हैं जो पृथ्वी पर एक-दूसरे से लगभग 120 डिग्री की दूरी ((120 + 120 + 120 = 360) पर स्थित हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि गहरे अंतरिक्ष में कोई भी उपग्रह हर समय कम-से-कम एक स्टेशन के साथ संवाद करने में सक्षम हो।
DSN की स्थिति
- कैनबरा, ऑस्ट्रेलिया
- मैड्रिड, स्पेन
- गोल्डस्टोन, कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका
इंटरस्टेलर मैपिंग एंड एक्शलरेशन प्रोब (Interstellar Mapping and Acceleration Probe)
- यह नासा का एक और मिशन है, जिसे Voyager के अवलोकनों का अनुसरण करने के लिये 2024 में लॉन्च किया जाना है।
इंटरस्टेलर बाउंड्री एक्सप्लोरर (Interstellar Boundary Explorer -IBEX)
- नासा के इस मिशन का उद्देश्य सौर हवा और इंटरस्टेलर माध्यम के बीच हमारे सौर मंडल के किनारे पर होने वाली पारस्परिक क्रिया की प्रकृति के बारे में खोज करना है।
- इसे 19 अक्तूबर, 2008 को लॉन्च किया गया था।