नासा ने डॉ. कलाम के नाम पर किया नई प्रजाति का नामकरण | 22 May 2017

संदर्भ
नासा के वैज्ञानिकों ने अपने द्वारा खोजे गए एक नए सूक्ष्म जीव का नामकरण भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम के नाम पर किया है| गौरतलब है कि अभी तक यह नया सूक्ष्मजीव (जीवाणु का एक प्रकार) केवल अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में ही पाया गया है| 

प्रमुख बिंदु

  • नासा की प्रमुख प्रयोगशाला ‘जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी’ (Jet Propulsion Laboratory - JPL) के शोधकर्ताओं ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के फिल्टर पर एक नए जीवाणु की खोज की है तथा भारत के स्वर्गीय राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम के सम्मान में इसका नाम सोलीबेसिलस कलामी (Solibacillus kalamii) रखा गया है|
  • ध्यातव्य है कि डॉ. कलाम एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे| कलाम ने अपना आरंभिक प्रशिक्षण वर्ष 1963 में केरल के थुम्बा (मछलीपालन वाला गाँव) नामक स्थान पर भारत की प्रथम प्रक्षेपास्त्र प्रक्षेपण सुविधा (rocket-launching facility) स्थापित करने से पूर्व किया था|
  • विदित हो कि इस जीवाणु की प्रजाति का नाम ‘सोलीबेसिलस’ है| जिस फिल्टर पर शोधकर्ताओं ने इस नए जीवाणु को पाया था, वह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के बोर्ड पर 40 महीने से था| इसे हाई इफीशिएंसी पार्टिकुलेट अरेसटेंस (high-efficiency particulate arrestance) फिल्टर अथवा एचईपीए (HEPA) फिल्टर कहा जाता है| यह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में रोज़ाना की सफाई व्यवस्था का एक भाग है|
  • इसके बाद इस फिल्टर का परीक्षण जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में किया गया और इस वर्ष ही वेंकटेस्वरण ने अंतर्राष्ट्रीय जर्नल ऑफ सिस्टेमैटिक एंड इवोल्यूशनरी माईक्रोबायोलॉजी (International Journal of Systematic and Evolutionary Microbiology) में अपनी खोज को भी प्रकाशित किया था|
  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की कक्षा पृथ्वी से 400 किलोमीटर दूर स्थित है, परन्तु फिर भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में कई प्रकार के जीवाणु और कवक पाए जाते हैं जो स्टेशन में रहने तथा कार्य करने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के सहयोगी बनकर रहते हैं|
  • यद्यपि आज तक सोलीबेसिलस कलामी को पृथ्वी पर नहीं पाया गया है परन्तु वास्तव में यह जीवन की अलौकिक अवस्था नहीं है| 
  • उल्लेखनीय है कि किसी भी नए जीवाणु का नाम प्रायः प्रसिद्ध वैज्ञानिक के नाम पर रखा जाता है| वेंकटेस्वरण के अनुसार, उनका कार्य अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में कीड़ों के स्तर की निगरानी करना है और उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होता है कि वे सभी अंतरिक्ष यान जो अन्य गृहों में उड़ान भरते हैं, स्थलीय कीड़ों से मुक्त हैं अथवा नहीं|
  • जब नासा के मंगल क्यूरोसिटी रोवर (1000 किलोग्राम)  ने पृथ्वी से उड़ान भरी थी तो वह पूर्णतः बंजर था| अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अंतरिक्ष यान में अत्यधिक स्वच्छता की आवश्यकता इसलिये होती है ताकि कोई भी अन्य गृह कीड़ों से प्रभावित न हो| 

क्या है अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन?

  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का आकार फुटबॉल के मैदान के समान है तथा इसका निर्माण कार्य वर्ष 1998 में एक प्रक्षेपण के साथ ही प्रारंभ हुआ था और आज यह पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली सबसे बड़ी मानव निर्मित वस्तु बन चुका है|
  • इसका भार लगभग 419 टन है| इसके भीतर अधिकतम छह अंतरिक्ष विज्ञानी रह सकते हैं और इसका मूल्य लगभग 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर है| वर्तमान समय तक  227 अंतरिक्ष विज्ञानी अंतरिक्ष स्टेशन में रह चुके हैं| इस प्रकार यह स्टेशन बहुत ही गन्दा स्थान बन चुका है, अतः यहाँ सफाई की जाती है ताकि मानव इसमें आराम से रह सकें|  
  • अंतरिक्ष स्टेशन में सम्पूर्ण वायु और जल का पुनर्चक्रण किया जाता है क्योंकि यह पूर्णतः बंद है अतः इसमें शीघ्र ही जीवाणु पनप सकते हैं|
  • इसे केवल साफ नहीं किया जाता है परन्तु इसकी निगरानी यह सुनिश्चित करने के लिये की जाती है कि कीड़े अंतरिक्ष स्टेशन की दीवारों को न खाएँ और अंतरिक्ष यात्रियों को कोई नुकसान भी न पहुँचे|

निष्कर्ष
 ये कीड़े उच्च विकिरण में रह सकते हैं और कुछ उपयोगी यौगिक जैसे प्रोटीन को उत्पन्न करते हैं| यह प्रोटीन जैव प्रौद्योगिकीय अध्ययनों में सहायक होगा| हालाँकि, वैज्ञानिकों की टीम ने इस जीवाणु की विशेषताओं का भली-भाँति वर्णन नहीं किया है परन्तु उन्होंने यह संकेत दिया है कि यह नया जीवाणु उन रसायनों का एक मुख्य स्रोत बन सकता है जो विकिरण से रक्षा करने में सहायक होंगे|