हिमनदों के अध्ययन के लिये नारव्हेल्स की सहायता | 26 Aug 2017

चर्चा में क्यों ?

पृथ्वी के मीठे जल का लगभग 10 प्रतिशत भाग ग्रीनलैंड के बर्फ के नीचे दबा हुआ है। हालाँकि इसमें कोई संदेह नहीं कि यह पिघल रहा है और इसके पिघलने से पूरे विश्व के समुद्री जल स्तर में 20 फिट की वृद्धि हो सकती है।

अतः वैज्ञानिक इस बात का अध्ययन करना चाहते हैं कि इसके नीचे (1800 फिट) किस तरह के बदलाव हो रहे हैं। इस कार्य के लिये वे एक समुद्री जीव की मदद ले रहे हैं जिसका नाम नारव्हेल्स  है। 

नारव्हेल्स

  • यह व्हेल मछली जैसा एक प्रकार का स्तनधारी समुद्री जीव है, जो ग्रीनलैंड और आर्कटिक क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी गैंड जैसी एक सींग होती है, जिसकी लंबाई नौ फुट होती है।   
  • इन्हें यदि महासागरीय वैज्ञानिक कहा जाए तो गलत नहीं होगा। ये काफी गहराई तक जा सकते हैं। ये एकमात्र ऐसे स्तनधारी हैं जिन्हें हिमनदों के पिघलने से लाभ होता है।   

इस अध्ययन की आवश्यकता

  • यह नासा (NASA) का $10 मिलियन की लागत से पाँच वर्षों तक हिमनदों के पिघलन को मापने के लिये किया जाने वाला एक सर्वेक्षण है।
  • चूँकि आर्कटिक क्षेत्र के हिमनदों की गहराई नापना एक जटिल, चुनौतीपूर्ण एवं खर्चीला कार्य है इसलिये इसमें व्हेलों, उपग्रहों, तापमान और लवणता की जाँच के साथ-साथ वायुयान और जहाज़-आधारित निरीक्षणों के संयोजन का प्रयोग किया जाएगा।
  • इसका मुख्य उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि ग्रीनलैंड की बर्फ कितनी जल्दी पिघल जाएगी।

जीवों की उपयोगिता 

  • समुद्री जीवों से हम कई जानकारियाँ प्राप्त करते हैं। जैसे- अंटार्कटिका के समुद्र तल का नक्शा तैयार करने के लिये सील (एक समुद्री जीव) का इस्तेमाल किया गया है। प्रशांत महासागर क्षेत्र में इसी तरह के कार्य के लिये शार्क का इस्तेमाल किया गया है। 
  • जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ने आईकैरस (Icarus) नामक एक छोटा-सा सेंसर विकसित किया है जो मौसम और प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी करने के लिये पक्षियों से लेकर मधुमक्खियों तक सबका इस्तेमाल करता है।