भारतीय इतिहास
भारत के प्रति नेपोलियन की महत्त्वाकांक्षा और उसका शासन
- 14 Oct 2024
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प्रारंभिक परीक्षा के लिये:नेपोलियन बोनापार्ट, फारस और रूस, ओरिएंटल वर्ल्ड, सिकंदर महान, टीपू सुल्तान, रूसी ज़ार पॉल I, नेपोलियन सहिंता, महाद्वीपीय व्यवस्था, प्रायद्वीपीय युद्ध, राष्ट्रवाद और प्रतिरोध, मिस्र अभियान, लुइज़ियाना, ऑटोमन साम्राज्य, वाटरलू का युद्ध, सेंट हेलेना, मुख्य परीक्षा के लिये:नेपोलियन बोनापार्ट के बारे में मुख्य तथ्य, महाद्वीपीय व्यवस्था, पुनर्जागरण और उपनिवेशीकरण। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत में नेपोलियन बोनापार्ट की गहरी रुचि से उपमहाद्वीप में ब्रिटिश प्रभुत्व को कमज़ोर करने की उसकी महत्त्वाकांक्षा को बल मिला। यूरोपीय, अमेरिकी और अफ्रीकी राजनीति पर उसका काफी प्रभाव था।
भारत (ओरिएंट) के प्रति नेपोलियन की महत्त्वाकांक्षा क्या थी?
- ओरिएंटल वर्ल्ड:
- यूरोपीय दृष्टिकोण से "ओरिएंटल" शब्द का आशय पूर्वी देशों (जिसमें यूरोप के पूर्व में स्थित क्षेत्र और संस्कृतियाँ शामिल हैं) से था।
- सामान्य तौर पर यह एशिया महाद्वीप को दर्शाता है जिसमें चीन, जापान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम और अन्य पूर्वी एशियाई देश शामिल हैं।
- नेपोलियन की ओरिएंट के प्रति महत्त्वाकांक्षा:
- बचपन से ही नेपोलियन बोनापार्ट पूर्वी देशों के प्रति अत्यधिक आकर्षित होने के साथ एशिया में सिकंदर महान की विजयों से उसने प्रेरणा प्राप्त की, जिससे इस क्षेत्र में उसकी महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ावा मिला।
- भारत में उसकी विशेष रुचि वर्ष 1798 के आसपास उसके मिस्र अभियान के दौरान विकसित हुई, जिसका उद्देश्य फ्राँस के मुख्य प्रतिद्वंद्वी ब्रिटेन को धमकाना तथा भारत के साथ बढ़ते ब्रिटिश व्यापार को बाधित करना था।
- नेपोलियन को मिस्र में ब्रिटेन के हाथों हार का सामना करना पड़ा और वर्ष 1799 में टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई, फिर भी भारत में ब्रिटिश नियंत्रण को चुनौती देने की उसकी महत्त्वाकांक्षा आगे भी बनी रही। इस क्रम में ब्रिटेन, रूस और फ्राँस सहित प्रमुख यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों के बीच क्षेत्रीय संघर्ष की पृष्ठभूमि में विभिन्न रणनीतियाँ विकसित हुईं।
भारत पर आक्रमण में नेपोलियन के साझेदार:
- रूस:
- मिस्र में हार के बाद नेपोलियन को रूसी ज़ार पॉल I ने "ग्रेट गेम" के चरम पर पहुँचने पर संपर्क किया, जो एशियाई क्षेत्रों पर नियंत्रण के लिये ब्रिटेन और रूस के बीच एक भू-राजनीतिक संघर्ष था।
- वर्ष 1801 में ज़ार ने गुप्त रूप से भारत में ब्रिटिश और ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त करने के लिये एक संयुक्त फ्रेंको-रूसी आक्रमण का प्रस्ताव रखा, जिसमें रूस और फ्राँस के बीच विजित भूमि को विभाजित करने की योजना थी।
- यद्यपि नेपोलियन ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, लेकिन ज़ार पॉल प्रथम ने उनकी हत्या के बाद मिशन को छोड़ने से पहले कुछ समय तक अकेले ही आगे बढ़ने का प्रयास किया।
- फारस (ईरान):
- यूरोप और भारत के बीच रणनीतिक रूप से स्थित फारस साम्राज्यवादी शक्तियों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण था। वर्ष 1800 तक नेपोलियन ने फारस को भारत के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण मार्ग के रूप में देखा तथा फ्राँसीसी एजेंटों से फारसी शाह फतह अली के साथ जुड़ने का आग्रह किया।
- इसकी प्रतिक्रिया में ब्रिटेन ने कैप्टन जॉन मैल्कम को बातचीत के लिये भेजा, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1801 में फारस के साथ एक वाणिज्यिक एवं राजनीतिक संधि हुई।
- इस संधि से फारस में फ्राँसीसी प्रभाव को समाप्त किया गया तथा फारस को यह अनुमति दी गई कि यदि अफगानिस्तान से भारत को खतरा हो तो वह उस पर युद्ध कर सकता है।
- ब्रिटेन ने इस संधि से रूस को बाहर रखा, भले ही उस दौरान रूस फारस के लिये सबसे बड़ा खतरा था।
- वर्ष 1801 में रूस ने जॉर्जिया (फारस द्वारा दावा किये गए क्षेत्र पर) पर कब्जा कर लिया तथा वर्ष 1804 तक एरिवान (आधुनिक आर्मेनिया) पर कब्जा करके इसने आगे की और रुख किया।
- इसके बदले में फारस ने ब्रिटेन के साथ संबंध तोड़ने और भविष्य में फ्राँस को युद्ध सहायता देने पर सहमति व्यक्त की।
- जब फारसी शाह ने रूसी हमले के भय से इस संधि के तहत ब्रिटिश सहायता मांगी तो उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया।
- इसके बाद नेपोलियन ने शाह फतह अली के साथ फिंकेस्टीन की संधि को औपचारिक रूप दिया, जिसमें फारस की क्षेत्रीय संप्रभुत्ता की गारंटी देने के साथ रूस के खिलाफ फ्राँसीसी सैन्य समर्थन का आश्वासन दिया गया।
- फारस के साथ फ्राँसीसी गठबंधन के बावजूद, नेपोलियन ने वर्ष 1807 में रूस के साथ गुप्त समझौते (तिलसिट की संधि पर हस्ताक्षर) किए, जिससे इसके वैश्विक प्रभाव पर असर पड़ा।
- यूरोप में फ्राँस प्रभावी था जबकि रूस का नियंत्रण एशिया पर था। इस गठबंधन से फारस कमज़ोर हुआ और उसने रूसी आक्रमण का मुकाबला करने के लिये फ्राँसीसी मदद मांगी थी।
- गुप्त समझौते के बाद फारसी शाह ने ब्रिटिशों के साथ एक नई संधि की मांग की, जिसके तहत ब्रिटेन ने फारस को सैन्य सहायता और वार्षिक सब्सिडी देने का वादा किया।
टीपू सुल्तान के फ्राँसीसियों से संबंध
- टीपू सुल्तान और उनके पिता हैदर अली ने भारत में अंग्रेज़ों से लड़ने के लिये फ्राँसीसियों के साथ संधि की थी।
- उन्होंने अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने के लिये फ्राँसीसी अधिकारियों का इस्तेमाल किया, लेकिन उन्हें दबाव समूह के निर्माण की अनुमति नहीं दी।
- टीपू सुल्तान फ्राँसीसी क्रांति के आदर्शों से प्रेरित थे। उन्होंने "नागरिक टीपू (Citizen Tipu)" नाम अपनाया और जैकोबिन नामक फ्राँसीसी क्लब के सदस्य बन गए, जो स्वतंत्रता और समान अधिकारों की वकालत करता था।
- उन्होंने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में स्वतंत्रता का वृक्ष भी लगाया।
भारत में फ्राँसीसी
- भारत में प्रथम फ्राँसीसी कारखाना वर्ष 1667 में फ्रेंकोइस कैरन द्वारा सूरत में स्थापित किया गया था, जिसके पश्चात् वर्ष 1669 में मारकारा द्वारा मसूलीपट्टम में कारखाना स्थापित किया गया था।
- उन्होंने मालाबार में माहे, कोरोमंडल में यनम (दोनों वर्ष 1725 में) और तमिलनाडु में करिकल (1739) पर कब्ज़ा कर लिया।
- वर्ष 1742 में भारत में फ्राँसीसी गवर्नर के रूप में डूप्ले के आगमन के साथ ही एंग्लो-फ्रेंच संघर्ष (कर्नाटक युद्ध) की शुरुआत हुई, जिसके परिणामस्वरूप भारत में उनकी अंतिम हार हुई।
- जनवरी 1760 में तमिलनाडु के वांडिवाश (या वंदावसी) में तृतीय कर्नाटक युद्ध का निर्णायक संघर्ष अंग्रेज़ों ने जीत लिया। इसके बाद भारत में साम्राज्य निर्माण की फ्राँसीसी महत्त्वाकांक्षा समाप्त हो गई।
- 1 नवंबर 1954 को भारत में फ्राँसीसी क्षेत्रों को आधिकारिक तौर पर भारतीय संघ में शामिल कर लिया गया और पुदुचेरी एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया। इसके साथ ही 280 वर्ष के फ्राँसीसी शासन का अंत हो गया।
- लेकिन वर्ष 1963 में पेरिस में फ्राँसीसी संसद द्वारा भारत के साथ संधि की पुष्टि के बाद ही पुदुचेरी आधिकारिक रूप से भारत का अभिन्न अंग बन पाया।
नेपोलियन बोनापार्ट से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- व्यक्तिगत जीवन:
- नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म वर्ष 1769 में भूमध्यसागरीय द्वीप कोर्सिका में हुआ था।
- वर्ष 1785 में 16 वर्ष की आयु में, वह तोपखाने में लेफ्टिनेंट बन गए।
- फ्राँसीसी क्रांति के आरंभ होने के बाद नेपोलियन नव स्थापित सरकार की सेना में शामिल हो गया।
- वर्ष 1804 में उन्होंने स्वयं को फ्राँस का सम्राट घोषित कर दिया।
नेपोलियन की भूमिका:
- फ्राँस:
- क्रांतिकारी युद्ध: नेपोलियन आरंभ में फ्राँसीसी क्रांतिकारी संघर्ष के दौरान एक सैन्य कमांडर के रूप में प्रमुखता से उभरे।
- उन्होंने विभिन्न यूरोपीय गठबंधनों के विरुद्ध अभियानों का नेतृत्व किया, विशेष रूप से इटली (वर्ष 1796) और मिस्र (वर्ष 1798) में, और स्वयं को फ्राँस के सबसे महान सैन्य रणनीतिकारों में से एक के रूप में स्थापित किया।
- क्रांतिकारी युद्ध: नेपोलियन आरंभ में फ्राँसीसी क्रांतिकारी संघर्ष के दौरान एक सैन्य कमांडर के रूप में प्रमुखता से उभरे।
- डायरेक्टरी का उन्मूलन: वर्ष 1799 में नेपोलियन ने तख्तापलट में एक केंद्रीय भूमिका निभाई, जिसने अप्रभावी डायरेक्टरी गवर्नमेंट को उखाड़ फेंका, जिससे फ्राँसीसी क्रांति का अंत हुआ और वाणिज्य दूतावास की शुरुआत हुई, जहाँ उन्होंने प्रथम वाणिज्यदूत के रूप में सत्ता संभाली।
- नेपोलियन के द्वारा किये गए युद्ध (वर्ष 1803-1815): सम्राट बनने के बाद (वर्ष 1804), नेपोलियन ने नेपोलियन संघर्ष के रूप में ज्ञात सैन्य अभियानों की एक शृंखला के माध्यम से यूरोप के अधिकांश भागों में फ्राँसीसी क्षेत्रीय नियंत्रण का विस्तार किया।
- उन्होंने सत्ता का केंद्रीकरण किया, प्रशासन का आधुनिकीकरण किया तथा शिक्षा, कराधान और बुनियादी ढाँचे में सुधार लागू किये।
- नेपोलियन संहिता की स्थापना: एक शासक के रूप में नेपोलियन ने वर्ष 1804 में नेपोलियन संहिता की शुरुआत की, जो एक विधिक ढाँचा था जिसने फ्राँसीसी विधिक प्रणाली में सुधार किया।
- इस संहिता में विधि के समक्ष समता, व्यक्तिगत अधिकार और धर्मनिरपेक्ष सरकार पर ज़ोर दिया गया। इससे विभिन्न देशों में विधिक प्रणालियों की बुनियाद रखी गई।
- महाद्वीपीय व्यवस्था: ब्रिटेन को आर्थिक रूप से कमज़ोर करने के लिये नेपोलियन ने महाद्वीपीय व्यवस्था लागू की, जो एक व्यापार नाकाबंदी थी, जिसका उद्देश्य मुख्य भूमि यूरोप के साथ ब्रिटिश वाणिज्य का उन्मूलन करना था। हालाँकि, इस नीति के मिश्रित परिणाम हुए और फ्राँस की अपनी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा।
- फ्राँस का आधुनिकीकरण: नेपोलियन ने शिक्षा प्रणाली, बैंकिंग और बुनियादी ढाँचे समेत फ्राँसीसी समाज के विभिन्न पहलुओं का आधुनिकीकरण किया।
- उनके द्वारा किये गए सुधारों ने फ्राँस और व्यापक यूरोपीय महाद्वीप पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।
- यूरोप:
- महाद्वीपीय व्यवस्था की स्थापना (1806): नवंबर 1806 में नेपोलियन ने महाद्वीपीय व्यवस्था की स्थापना की, जो एक रणनीतिक नाकाबंदी थी जिसका उद्देश्य महाद्वीपीय यूरोप के साथ उसके व्यापार और संचार को काटकर ग्रेट ब्रिटेन को पृथक करना था।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य यूरोप को आत्मनिर्भर बनाना, जिसमें ब्रिटेन के वाणिज्यिक और औद्योगिक सामर्थ्य को कमज़ोर करना था।
- यद्यपि उनके सहयोगी और परिवार के सदस्य महाद्वीपीय व्यवस्था का पालन नहीं करते थे।
- प्रायद्वीपीय युद्ध (वर्ष 1808): उन्होंने पुर्तगाल को महाद्वीपीय व्यवस्था का अनुपालन करने के लिये मज़बूर करने हेतु युद्ध छेड़ा।
- स्पेन में नेपोलियन ने स्पेन के राजा को पदच्युत करके अपने भाई जोसेफ को गद्दी पर बिठाया। स्पेन की जनता ने आक्रोश के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिससे राष्ट्रवादी भावनाएँ भड़क उठीं।
- राष्ट्रवाद और विरोध का विकास: नेपोलियन के कार्यों ने, विशेष रूप से स्पेन में, संपूर्ण यूरोप में राष्ट्रवादी उत्साह को बढ़ावा दिया।
- विदेशी शासकों को थोपने और चर्च समेत स्थानीय संस्थाओं को कमज़ोर करने से व्यापक विरोध को बढ़ावा मिला, जिससे अंततः उनके साम्राज्य का पतन हो गया।
- महाद्वीपीय व्यवस्था की स्थापना (1806): नवंबर 1806 में नेपोलियन ने महाद्वीपीय व्यवस्था की स्थापना की, जो एक रणनीतिक नाकाबंदी थी जिसका उद्देश्य महाद्वीपीय यूरोप के साथ उसके व्यापार और संचार को काटकर ग्रेट ब्रिटेन को पृथक करना था।
- यूरोप से बाहर:
- मिस्र अभियान (वर्ष 1798-1801):
- रणनीतिक उद्देश्य: नेपोलियन के मिस्र अभियान का उद्देश्य मिस्र पर नियंत्रण प्राप्त करके मध्य पूर्व और भारत में ब्रिटिश प्रभाव को कमज़ोर करना था।
- मिस्र ब्रिटेन के उपनिवेशों, विशेषकर भारत, के लिये व्यापार मार्ग का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम था, जिससे यह नेपोलियन के उद्देश्यों के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण बन गया।
- हार और पीछे हटना: पिरामिडों के संघर्ष जैसी प्रारंभिक जीत के बावजूद, अभियान अंततः विफल हो गया।
- नेपोलियन के बेड़े को नील नदी के युद्ध (1798) में अंग्रेज़ों द्वारा नष्ट कर दिया गया, उसे वर्ष 1799 में अपनी सेना छोड़कर फ्राँस लौटने के लिये मज़बूर होना पड़ा।
- मिस्र अभियान (वर्ष 1798-1801):
- अमेरिका में भूमिका:
- लुइसियाना परचेज (1803): एक प्रमुख भू-राजनीतिक निर्णय में, नेपोलियन ने 1803 में लुइसियाना क्षेत्र को 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर में संयुक्त राज्य अमेरिका को बेच दिया ।
- लुइसियाना परचेज के नाम से प्रसिद्ध इस बिक्री से अमेरिका का भौगोलिक आकार दोगुना हो गया और यूरोप में नेपोलियन के सैन्य अभियानों के लिये धन एकत्रित करने में मदद मिली।
- इस बिक्री का प्राथमिक लक्ष्य इंग्लैंड के विरुद्ध अमेरिका को सुदृढ़ करना था, क्योंकि वह ब्रिटेन अमेरिका और फ्राँस दोनों का विरोधी था।
- हैती और कैरीबियाई: नेपोलियन ने कैरीबियाई उपनिवेशों, विशेष रूप से सेंट-डोमिंगु (हैती) पर फ्राँसीसी नियंत्रण पुनः स्थापित करने का प्रयास किया, जो अपने चीनी बागानों के कारण सबसे धनी फ्राँसीसी उपनिवेश था।
- हालाँकि टूसेंट लौवरचर के नेतृत्व में दास विद्रोह के बाद, हैती ने वर्ष 1804 में स्वतंत्रता की घोषणा की। नियंत्रण हासिल करने के नेपोलियन के प्रयास विफल हो गए, और हैती पहला स्वतंत्र अश्वेत गणराज्य बन गया।
नेपोलियन की नीतियाँ उसके पतन का कारण कैसे बनीं?
- साम्राज्य का पतन:
- असफल रूसी आक्रमण (1812): वर्ष 1812 में नेपोलियन ने रूस पर आक्रमण किया, झुलसती धरती और कठोर सर्दियों की परिस्थितियों की रूसी रणनीति ने नेपोलियन की ग्रैंड आर्मी को तबाह कर दिया, जिससे भारी क्षति हुई।
- छठवीं युद्ध संधि (1813-1814): असफल रूसी अभियान के बाद, यूरोपीय शक्तियों - ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रिया और प्रशिया - ने छठवीं युद्ध संधि की और नेपोलियन पर नए आक्रमण किये।
- लीपज़िग का निर्णायक युद्ध (1813) में नेपोलियन को बड़ी हार का सामना करना पड़ा, जिससे मध्य यूरोप में फ्राँसीसी नियंत्रण समाप्त हो गया।
- प्रथम त्यागपत्र और एल्बा निर्वासन (1814):
- भारी पराजय का सामना करते हुए, उन्होंने अप्रैल 1814 में अपने बेटे के पक्ष में गद्दी छोड़ दी।
- पदत्याग के बाद नेपोलियन को इटली के तट से दूर एल्बा द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया, जहाँ उसे संप्रभुता प्रदान की गई तथा उसने प्रशासन में सुधार का प्रयास किया।
- भारी पराजय का सामना करते हुए, उन्होंने अप्रैल 1814 में अपने बेटे के पक्ष में गद्दी छोड़ दी।
- वाटरलू के युद्ध में हार (1815):
- नेपोलियन की अपने साम्राज्य को बहाल करने की अंतिम कोशिश जून 1815 में वाटरलू के युद्ध में पराकाष्ठा पर पहुँची, जहाँ उसका सामना ब्रिटिश और प्रशिया की सेनाओं से हुआ। उसकी नवगठित सेना निर्णायक रूप से पराजित हुई, जिसने उसके शासन और नेपोलियन युद्ध के अंत को चिह्नित किया।
- दूसरा त्यागपत्र और सेंट हेलेना में निर्वासन:
- नेपोलियन को सत्ता में वापसी से रोकने के लिये यूरोप से दूर सेंट हेलेना के सुदूर द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया था। नेपोलियन ब्रिटिश निगरानी में रहते थे, जिसे उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा है और बिगड़ते स्वास्थ्य का सामना करते हुए अपनी विरासत पर विचार करते थे।
- इतिहासकारों का मानना है कि पेट के कैंसर के कारण ही उनकी मृत्यु हुई होगी।
- अपने पतन के बावज़ूद, नेपोलियन की विरासत उसके सुधारों, विशेष रूप से नेपोलियन संहिता के माध्यम से कायम है, जिसने वैश्विक विधिक प्रणालियों को प्रभावित किया।
- उनकी सैन्य रणनीतियाँ अध्ययन का विषय बनी हुई हैं, तथा यूरोपीय राजनीति और शासन पर उनके प्रभाव ने 19वीं शताब्दी को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।
- नेपोलियन को सत्ता में वापसी से रोकने के लिये यूरोप से दूर सेंट हेलेना के सुदूर द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया था। नेपोलियन ब्रिटिश निगरानी में रहते थे, जिसे उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा है और बिगड़ते स्वास्थ्य का सामना करते हुए अपनी विरासत पर विचार करते थे।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: 19वीं शताब्दी की नेपोलियन बोनापार्ट की नीतियों और सुधारों ने आधुनिक राष्ट्र-राज्यों को आकार दिया। चर्चा कीजिये? |
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