NAM संपर्क समूह शिखर सम्मेलन | 05 May 2020

प्रीलिम्स के लिये:

गुटनिरपेक्ष आंदोलन

मेन्स के लिये:

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की वर्तमान में प्रासंगिकता 

चर्चा में क्यों?

हाल में COVID-19 महामारी के प्रबंधन में सहयोग की दिशा में ‘गुट निरपेक्ष आंदोलन’ (Non-Aligned Movement- NAM) समूह द्वारा 'NAM संपर्क समूह शिखर सम्मेलन' (NAM Contact Group Summit- NAM CGS) का आयोजन किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • इस ‘आभासी सम्मेलन’ की मेज़बानी अज़रबैजान द्वारा की गई तथा सम्मेलन में 30 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों और अन्य नेताओं ने शिखर सम्मेलन में भाग लिया।
  • भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष 2014 में सत्ता संभालने के बाद पहली बार ‘गुट निरपेक्ष आंदोलन’ को संबोधित किया गया।
  • वर्ष 2016 और वर्ष 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने NAM के शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लिया था। वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री है जिन्होंने NAM के शिखर सम्मेलनों में भाग नहीं लिया था।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में 'आतंकवाद' और 'फेक न्यूज' के मुद्दों को उठाया तथा इन दोनों मुद्दों को 'घातक वायरस' कहा।

सम्मेलन में लिये गए महत्त्वपूर्ण निर्णय:

  • शिखर सम्मेलन में COVID-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए एक घोषणा को अपनाया। सदस्य देशों की आवश्यकताओं की पहचान करने के लिये एक 'टास्क फोर्स' बनाने की घोषणा की गई। 
    • यह टास्क फोर्स COVID-19 महामारी के प्रबंधन की दिशा में एक ‘कॉमन डेटाबेस’ को स्थापित करेगा ताकि सदस्य देशों द्वारा महामारी से निपटने में महसूस की जाने वाली आवश्यकताओं की पहचान की जा सके।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन:

पृष्ठभूमि:

  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत यूगोस्लाविया के जोसेफ ब्राॅश टीटो, भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर की दोस्ती से मानी जाती है। इन तीनों देशों द्वारा वर्ष 1956 में एक सफल बैठक आयोजित की गई। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति  सुकर्णों और घाना के प्रधानमंत्री वामे एनक्रूमा द्वारा इस बैठक को ज़ोरदार समर्थन दिया गया। ये पाँच नेता गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक नेता थे। 
  • पहला गटुनिरपेक्ष सम्मेलन सन् 1961 में बेलग्रेड में आयोजित किया गया था। पहले गुटनिरपेक्ष-सम्मेलन में 25 सदस्य-देश शामिल हुए। समय गुजरने के साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सदस्य संख्या बढ़ती गई। जिसमें वर्तमान में 120 सदस्य देश, 17 पर्यवेक्षक देश तथा 10 पर्यवेक्षक संगठन शामिल हैं। 

स्थापना के उद्देश्य:

  • पाँचों संस्थापक देशों के बीच सहयोग स्थापित करना;
  • शीत युद्ध का प्रसार और इसके बढ़ते हुए दायरे से अलग रहना;
  • अंतर्राष्ट्रीय फलक पर बहुत से नव-स्वतंत्र अफ्रीकी देशों का नाटकीय उदय तथा 1960 तक संयुक्त राष्ट्र संघ में 16 नवीन अफ्रीकी देशों का बतौर सदस्य शामिल होना।

 शीतयुद्ध काल में गुटनिरपेक्ष की नीति और भारत के हित:

  • गुटनिरपेक्षता के कारण भारत ऐसे अंतर्राष्ट्रीय फैसले ले सका जिससे उसका हित सधता हो न कि महाशक्तियों और उनके खेमे के देशों का।
  • अगर भारत को महससू हो कि महाशक्तियों का कोई भी खेमा उसकी अनदेखी कर रहा है या अनुचित दबाव डाल रहा है तो वह दूसरी महाशक्ति की तरफ जा सकता था।

NAM नीति की आलोचना:

  • भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति 'सिद्धांतविहीन’ है क्योंकि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के नाम पर प्राय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर कोई सुनिश्चित पक्ष लेने से बचता रहा है।
  • भारत के व्यवहार में स्थिरता नहीं है और कई बार भारत की स्थिति विरोधाभासी रही है। भारत ने स्वयं वर्ष 1971 में सोवियत संघ के साथ आपसी मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किये। जिसे कई देशों ने भारत का सोवियत खेमे में शामिल होना माना।

NAM 2.0:

  • NAM 2.0, 21 वीं सदी में भारत की विदेशी नीति के उन मूल सिद्धांतों की पहचान करती है जो देश को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और मूल्य प्रणाली को संरक्षित करते हुए विश्व मंच पर अग्रणी खिलाड़ी बनाती है।

NAM की वर्तमान में प्रासंगिकता:

  • गुटनिरपेक्षता का आशय है कि गरीब और विकासशील देशों को किसी महाशक्ति का पिछलग्गू बनने की ज़रूरत नहीं है। ये देश अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपना सकते हैं। अपने आप में ये विचार बुनियादी महत्त्व के हैं और शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद भी प्रासंगिक हैं। 

स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस