माइक्रोबायोम अनुसंधान के संबंध में मिथक | 07 Oct 2023

प्रिलिम्स के लिये:

माइक्रोबायोम अनुसंधान, सूक्ष्मजीव, फर्मिक्यूट्स और बैक्टेरोइडेट्स, फ़ाइलम के संबंध में मिथक

मेन्स के लिये:

माइक्रोबायोम अनुसंधान के संबंध में मिथक, शारीरिक कार्यों के साथ माइक्रोबायोम का संबंध, विज्ञान और प्रौद्योगिकी- विकास और रोज़मर्रा की जिंदगी में उनके अनुप्रयोग और प्रभाव नैनो-प्रौद्योगिकी, जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जागरूकता

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

विगत दो दशकों में, माइक्रोबायोम रिसर्च एक 'स्थानीय विषय' से 'पूरे विज्ञान में सबसे चर्चित विषयों में से एक' बन गया है।

  • मानव आंत के भीतर माइक्रोबियल इंटरैक्शन और उसकी गतिविधियाँ व्यापक शोध और चर्चा का विषय रही हैं।
  • प्रचलित मिथक धारणाओं के विपरीत, हाल के आकलन ने मानव माइक्रोबायोम की जटिलता पर प्रकाश डाला है, जो कुछ व्यापक रूप से माने जाने वाले दावों को चुनौती देता है।

नोट

  • केंद्रीय बजट 2021-22 के तहत, सरकार ने जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास के लिये 1,660 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।

माइक्रोबायोम 

  • परिचय:
    • माइक्रोबायोम सूक्ष्मजीवों (जैसे कवक, बैक्टीरिया और विषाणु) का समुदाय है जो एक विशेष वातावरण में मौज़ूद होता है।
    • मनुष्यों में, इस शब्द का प्रयोग अक्सर उन सूक्ष्मजीवों का वर्णन करने के लिये किया जाता है, जो शरीर के किसी विशेष भाग, जैसे त्वचा या जठरांत्र संबंधी मार्ग, में रहते हैं।
    • सूक्ष्मजीवों के ये समूह गतिशील होते हैं और व्यायाम, आहार, दवा एवं अन्य जोखिम जैसे कई पर्यावरणीय कारकों की प्रतिक्रिया द्वारा इनमें बदलाव होता है।
  • मानव शरीर में माइक्रोबायोम के संबंध में मिथक:
    • क्षेत्र की आयु: 
      • एक भ्रम यह है कि माइक्रोबायोम अनुसंधान एक अपेक्षाकृत नया विषय है। वैज्ञानिकों ने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में ही आंत में मौज़ूद एस्केरिचिया कोली तथा बिफीडोबैक्टीरिया जैसे बैक्टीरिया के लाभों का वर्णन एवं अनुमान लगाया था।
    • उत्पत्ति:
      • आधुनिक रूप में "माइक्रोबायोम" शब्द का उपयोग वर्ष 2001 में इसके लोकप्रिय होने से पहले किया गया था
        • जोशुआ लेडरबर्ग चिकित्सा क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, इस क्षेत्र का नामकरण वर्ष 2001 में किया गया था।
      • इस शब्द का प्रयोग वर्ष 1988 में रोगाणुओं के एक समुदाय का वर्णन करने के लिये किया गया था।
    • सूक्ष्मजीवों की संख्या और द्रव्यमान:
      • कुछ अधिक प्रचलित और अधिक हानिकारक मिथक माइक्रोबायोम के आकार से संबंधित हैं।
        • मानव अपशिष्ट में माइक्रोबियल कोशिकाओं की वास्तविक संख्या लगभग 1010 से 1012 प्रति ग्राम है और मानव माइक्रोबायोटा का वज़न लगभग 200 ग्राम है
    • माँ से शिशु तक प्रसार:
      • कुछ विचारों के विपरीत, जन्म के समय माताएँ अपने माइक्रोबायोम अपने बच्चों को नहीं देती हैं।
      •  कुछ सूक्ष्मजीव जन्म के दौरान माँ से सीधे शिशु में स्थानांतरित हो जाते हैं लेकिन वे मानव माइक्रोबायोटा का एक छोटे से अंश का निर्माण करते हैं और इन रोगाणुओं का केवल एक छोटा सा अंश ही जीवित रहता है तथा बच्चे के जीवनकाल तक बना रहता है।
      • प्रत्येक वयस्क में एक विशिष्ट माइक्रोबायोटा विन्यास होता है, यहाँ तक कि एक जैसे जुड़वाँ बच्चों में भी, जो एक ही घर में पले-बढ़े होते हैं।
    • सूक्ष्मजीव खतरनाक होते हैं:
      • कुछ शोधकर्त्ताओं ने सुझाव दिया है कि बीमारियाँ सूक्ष्मजीवों और हमारी कोशिकाओं के बीच अवांछनीय अंतःक्रिया के कारण होती हैं।
      • लेकिन कोई सूक्ष्म जीव और उसका मेटाबोलाइट 'अच्छा' है या 'बुरा', यह उसके संदर्भ पर निर्भर करता है।
        • उदाहरण के लिये, क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल नामक बैक्टीरिया की एक प्रजाति अधिकांश मनुष्यों में आजीवन उनके शरीर में बिना किसी रोग संक्रमण के विद्यमान रहती है। यह बैक्टीरिया केवल बुजुर्गों या दुर्बल प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में समस्या उत्पन्न करता है।
    • फर्मिक्यूट्स-बैक्टेरोइडेट्स अनुपात:
      • एक मिथक यह भी है कि मोटापा बैक्टीरिया के दो फाइला- फर्मिक्यूट्स और बैक्टेरोइडेट्स के अनुपात के कारण होता है। 
      • इस मिथक के साथ समस्या यह है कि इसके प्रभावों पर विश्वास के साथ टिप्पणी करना जटिल है क्योंकि फाइला का स्तर बहुत व्यापक है।
        • फाइलम किसी सजीव में पाया जाने वाला एक समूह है। जीवों को वर्गीकृत करने के अवरोही क्रम में, जीव जगत में विभिन्न संघ शामिल होते हैं; एक फाइलम में कई वर्ग होते हैं, फिर क्रम, परिवार, वंश और अंततः प्रजातियाँ आती हैं।
        • यहाँ तक कि एक जीवाणु की प्रजाति में भी कई उपभेद अलग-अलग व्यवहार करते हैं, जिससे मेज़बान जीव में अलग-अलग नैदानिक लक्षण प्रकट होते हैं।
    • सूक्ष्मजीवों की कार्यक्षमता और अतिरेक: 
      • सभी रोगाणु कार्यात्मक रूप से अनावश्यक नहीं हैं; माइक्रोबायोम के भीतर कई कार्य कुछ प्रजातियों के लिये विशिष्ट होते हैं।
      • कुछ शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि विभिन्न रोगाणु वास्तव में कार्यात्मक रूप से अनावश्यक होते हैं।
      • हालाँकि मानव माइक्रोबायोम में विभिन्न बैक्टीरिया कुछ सामान्य किन्तु महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं, कई कार्य कुछ प्रजातियों के संरक्षण हैं।
    • अनुक्रमण में पूर्वाग्रह:
      • माइक्रोबायोम अनुसंधान में अनुक्रमण पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं है; पूर्वाग्रहों को विभिन्न चरणों में प्रस्तुत किया जा सकता है, जो परिणामों और निष्कर्षों को प्रभावित करते हैं।
      • माइक्रोबायोम अनुसंधान में मानकीकृत तरीके:
      • जबकि सभी अध्ययनों में निष्कर्षों की तुलना करने के लिये मानकीकृत विधियाँ महत्त्वपूर्ण हैं, किंतु कोई भी पद्धति परिपूर्ण नहीं है और चुनी गई विधि की सीमाओं को स्वीकार करना आवश्यक है।
    • माइक्रोबायोम का संवर्धन:
      • हालाँकि प्रयोगशाला में मानव माइक्रोबायोम से रोगाणुओं को विकसित करना चुनौतीपूर्ण है, अतीत में ऐसे सफल प्रयास हुए हैं, जो दर्शाता है कि संस्कृति संग्रह में वर्तमान अंतराल पूर्व प्रयासों की कमी के कारण है।

मानव माइक्रोबायोम का शारीरिक कार्यों से जुड़ाव: 

  • पाचन स्वास्थ्य और पोषक तत्त्वों का अवशोषण:
    • आँत माइक्रोबायोम मुख्य रूप से आँतों में, जटिल कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और अन्य अपचनीय यौगिकों को तोड़ने में सहायता करता है जिन्हें मानव शरीर अपने आप संसाधित नहीं कर सकता है।
    • सूक्ष्मजीव किण्वन प्रक्रिया में सहायता करते हैं, विटामिन (जैसे, विटामिन बी. और के.) जैसे आवश्यक पोषक तत्त्व उत्पन्न करते हैं जिन्हें शरीर अवशोषित और उपयोग कर सकता है।
  • प्रतिरक्षा प्रणाली विनियमन:
    • माइक्रोबायोम प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ निकटता से संपर्क करता है, इसके विकास, प्रशिक्षण और प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करता है।
    • एक अच्छी तरह से संतुलित माइक्रोबायोम प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को विनियमित करने, अनुचित प्रतिक्रियाओं को रोकने तथा संक्रमण से लड़ने की क्षमता को बढ़ाने में सहायता प्रदान करता है।
  • चयापचय स्वास्थ्य एवं वज़न विनियमन:
    • आँत माइक्रोबायोम की संरचना मोटापे के साथ टाइप 2 मधुमेह जैसे चयापचय संबंधी विकारों से जुड़ी हुई है।
    • कुछ रोगाणु भोजन के चयापचय के द्वारा ऊर्जा निष्कर्षण तथा वसा के भंडारण को प्रभावित कर सकते हैं, अंततः इससे शरीर का वज़न और स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य और मस्तिष्क कार्य:
    • आँत मस्तिष्क अक्ष तंत्रिका, हार्मोनल तथा रोग प्रतिरक्षण मार्गों के माध्यम से आँत और मस्तिष्क के बीच द्विदिशिक संचार का प्रतिनिधित्व करती है।
    • आँत माइक्रोबायोम तंत्रिका संचारक का उत्पादन करके तथा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के साथ संपर्क स्थापित करके मस्तिष्क के कार्य, व्यवहार एवं चिंता, अवसाद और तनाव जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को प्रभावित कर सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स: 

प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकासात्मक उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के गरीब वर्गों के उत्थान में किस प्रकार मदद करेंगी? (2021)

प्रश्न. जैव-प्रौद्योगिकी किसानों के जीवन स्तर को सुधारने में किस प्रकार मदद कर सकती है? (2019)