मुकुंदपुरा CM2 | 11 Jan 2021
चर्चा में क्यों?
एक हालिया अध्ययन ने वर्ष 2017 में जयपुर के मुकुंदपुरा गाँव में गिरे मुकुंदपुरा सीएम 2 (Mukundpura CM2) नामक एक उल्कापिंड की खनिज विशेषताओं (Mineralogy) पर प्रकाश डाला है।
- उल्कापिंड, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह जैसे अंतरिक्ष पिंडों के मलबे का एक ठोस टुकड़ा है, जिसकी उत्पत्ति बाह्य अंतरिक्ष में होती है।
प्रमुख बिंदु:
मुकुंदपुरा CM 2 के संबंध में:
- मुकुंदपुरा CM2 नामक उल्कापिंड को एक कार्बनसियस कोन्ड्राइट (carbonaceous chondrite- CC) के रूप में वर्गीकृत किया गया था। कार्बनसियस कोन्ड्राइट की संरचना भी सूर्य के समान है।
- कोन्ड्राइट सिलिकेट ड्रिप बेयरिंग उल्कापिंड है और मुकुंदपुरा कोन्ड्राइट को भारत में गिरने वाला 5वाँ सबसे बड़ा कार्बनसियस उल्कापिंड माना जाता है।
उल्कापिंड का वर्गीकरण:
- उल्कापिंडों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया है: स्टोनी (सिलिका), आयरन (Fe-Ni मिश्र धातु) और स्टोनी आयरन (मिश्रित सिलिकेट लौह मिश्र धातु)।
- मुकुंदपुरा CM2 एक प्रकार का स्टोनी उल्कापिंड है, जिसे सबसे प्राचीन उल्कापिंड माना जाता है और यह सौरमंडल में निर्मित पहले ठोस पिंडों का अवशेष है।
उल्कापिंड के घटक:
- विस्तृत स्पेक्ट्रोस्कोपिक (Spectroscopic) अध्ययनों के अनुसार, उल्कापिंड में अत्यधिक मात्रा में (लगभग 90%) फाइटोसिलिकेट (Phyllosilicate) खनिज पाए गए जिसमें मैग्नीशियम और लोहा दोनों की उपस्थिति है।
- फोर्स्टराइट (Forsterite) और FeO ओलिविन, कैल्शियम एल्युमीनियम समृद्ध समावेशित (CAI) खनिज।
- कुछ मैग्नेटाइट्स (Magnetites), सल्फाइड्स, एल्युमीनियम कॉम्प्लेक्स और कैल्साइट्स (Calcites) भी पाए गए।
उल्कापिंड के अध्ययन का महत्त्व:
- सौरमंडल के इतिहास को समझना।
- वर्तमान में सौरमंडल में सूर्य और ग्रहों के विकास को समझना।
- उल्कापिंडों के प्रभाव को समझना।
- ये अक्सर वाष्पशील और अन्य खनिजों से समृद्ध होते हैं और भविष्य में ग्रहों की खोज में सहायक हो सकते है।
उल्का और उल्कापिंड में अंतर:
- जब उल्कापिंड तेज गति से पृथ्वी के वायुमंडल (या किसी अन्य ग्रह, जैसे मंगल) में जलते हुए प्रवेश करते हैं, तो ये आग के गोले या "शूटिंग सितारे" (Shooting Stars) उल्का कहलाते हैं।
- उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बच जाता है और पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड कहते हैं।