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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उपेक्षित खाद्य सुरक्षा का समाधान ज़रूरी

  • 10 Aug 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ?

  • कई राज्य सरकारें खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रही हैं। फलस्वरूप, सर्वोच्च न्यायालय ने इस संदर्भ में राज्यों  के लिये निर्देश जारी किये हैं। 
  • इस संदर्भ में उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत किये गए आँकड़े जन शिकायतों की ठीक-ठीक तस्वीर प्रस्तुत नहीं करते हैं, क्योंकि व्यावहारिक रूप से देखें तो वर्ष 2016 में खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लाभार्थियों द्वारा 1106 शिकायतें दर्ज की गईं।

खाद्य सुरक्षा अधिनियम और इसके मुख्य उद्देश्य

  • संसद द्वारा 2013 में पारित खाद्य सुरक्षा अधिनयम, 2013 का मुख्य उद्देश्य गरीबी की स्थिति में जीवन-यापन कर रही आबादी को वहनीय कीमत (affordaple price) पर सरकारी सहायता प्राप्त (subsidized) अच्छी गुणवत्ता वाले खाद्यान्न की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
  • इस कार्यक्रम में तीन घटक शामिल हैं- मिड-डे मील कार्यक्रम, एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS) और लक्षित सार्वजानिक वितरण प्रणाली (TPDS)।
  • कार्यक्रम के अंतर्गत 75 फीसदी तक ग्रामीण जनसंख्या और 50 फीसदी तक शहरी जनसंख्या को लक्षित सार्वजानिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सरकारी सहायता प्राप्त अनाज उपलब्ध कराया जाता है। 

कहाँ हुई कमी ?
खाद्य सुरक्षा अधिनियम में यह प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य में इस अधिनियम के क्रियान्वयन की निगरानी और समय-समय पर इसकी समीक्षा करने के उद्देश्य से एक ‘राज्य खाद्य आयोग’ (State Food Commission) और ज़िला स्तर पर‘ शिकायत निवारण प्रणाली’ (Grievance redress mechanism) का गठन करेगी। हालाँकि, व्यवहार में ऐसा देखा गया है कि केवल कुछेक राज्यों ने ही ऐसा किया है।  

न्यायालय की पहल 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 256 के हवाले से स्पष्ट किया कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करना केंद्र और राज्य दोनों की ज़िम्मेदारी है।
  • इसी आलोक में न्यायालय ने केंद्र सरकार से इस दिशा में प्रभावी पहल करने का आह्वान किया है।
  • न्यायालय ने उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय को इस बात के विशिष्ट निर्देश दिये हैं कि मंत्रालय इस साल के अंत तक अपने सभी अधूरे कार्य पूरे कर ले, जिससे अब तक बर्वाद हुए समय की भरपाई हो सके।

क्या हो आगे की राह ?

  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत लाभार्थियों तक अनाज की आपूर्ति के लिये कार्य कर रही प्रणाली में यह व्यवस्था होनी चाहिये कि इसमें लाभार्थियों के रूप ऐसे नए लोगों को जोड़ा जा सके जो किसी करण से अचानक आर्थिक तंगहाली की स्थिति में आ गए हों।
  • साथ ही, ऐसे लोग लाभार्थी की श्रेणी से बाहर भी हो सकें जिनकी स्थिति में सुधार हुआ हो।

हालाँकि उपरोक्त व्यवस्था तभी संभव हो सकती है जब इस कार्यक्रम के अंतर्गत सामाजिक अंकेक्षण (social audit) के साथ-साथ राज्य खाद्य आयोग और ज़िला स्तर पर शिकायत निवारण प्रणाली के रूप में एक स्वतंत्र व्यवस्था कार्य कर रही हो। वैसे तो खाद्य सुरक्षा अधिनियम में इस पूरी व्यवस्था का प्रावधान किया गया है लेकिन व्यावहारिक रूप से यह तभी हो सकेगा जब सूचना तकनीक के बेहतर इस्तेमाल से सार्वजनिक वितरण प्रणाली का आधुनिकीकरण किया जाए।

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