MSP और उसकी वैधानिकता | 21 Oct 2024

प्रिलिम्स के लिये:

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA), रबी फसलें, कृषि मूल्य आयोग (APC), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा, भारतीय खाद्य निगम (FCI) 

मेन्स के लिये:

MSP के वैधानीकरण का मुद्दा, किसानों पर MSP के वैधानीकरण का प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने अगले विपणन सीज़न (वर्ष 2025-26) के लिये छह रबी फसलों (गेहूँ, जौ, चना, मसूर, रेपसीड, सरसों और कुसुम) के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की है।

  • MSP में वृद्धि से MSP को वैधानिक बनाने की किसानों की मांग के साथ कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके प्रभाव को लेकर विमर्श को बढ़ावा मिला है।

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) 

  • इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और यह सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश के लिये प्राथमिकताएँ निर्धारित करती है।
  • यह एक एकीकृत आर्थिक नीति ढाँचा विकसित करने के लिये आर्थिक रुझानों की निरंतर समीक्षा करती है तथा विदेशी निवेश सहित आर्थिक क्षेत्र में नीतियों एवं गतिविधियों (जिसके लिये उच्च स्तरीय निर्णय लेने की आवश्यकता होती है) की देखरेख करती है

न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है?

  • परिचय:
    • MSP की शुरुआत वर्ष 1965 में कृषि मूल्य आयोग (APC), जिसे बाद में CACP नाम दिया गया, की स्थापना के साथ की गई थी। यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने और किसानों को बाज़ार मूल्यों में गिरावट से बचाने के लिये बाज़ार हस्तक्षेप का एक रूप था।
  • MSP की गणना:
    • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs & Prices- CACP) प्रत्येक फसल के लिये राज्य और अखिल भारतीय औसत स्तर पर तीन प्रकार की उत्पादन लागत की गणना करता है।
      • A2: इसमें किसान द्वारा बीज, उर्वरक, कीटनाशक, मज़दूरी, पट्टे पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि पर नकद एवं वस्तु के रूप में सीधे तौर पर किये गए सभी भुगतेय लागत शामिल हैं।
      • A2+FL: इसमें A2 के साथ अवैतनिक पारिवारिक श्रम (Family Labour) का अनुमानित मूल्य शामिल है।
      • C2: यह एक व्यापक लागत है जिसमें A2+FL लागत के साथ स्वामित्व वाली भूमि का अनुमानित किराया मूल्य, स्थायी पूंजी पर ब्याज, पट्टे पर दी गई भूमि के लिये भुगतान किया गया किराया शामिल है
    • सरकार का कहना है कि MSP को अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत (CoP) के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर तय किया गया है, लेकिन इसकी इस लागत की A2+FL लागत के 1.5 गुना के रूप में गणना की जाती है।

भारत में MSP से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • सीमित कवरेज: शांता कुमार समिति की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 6% किसान ही MSP से लाभान्वित होते हैं। मुख्य रूप से ऐसे किसान जो बेहतर बुनियादी ढाँचे तक पहुँच वाले क्षेत्रों (जैसे पंजाब और हरियाणा) में रहते हैं, जबकि अन्य राज्यों के किसान बड़ी संख्या में इससे वंचित रह जाते हैं।
  • फसलों पर असंतुलित ध्यान: MSP प्रणाली मुख्य रूप से कुछ फसलों (विशेष रूप से चावल और गेहूँ) पर केंद्रित है जिससे किसानों को अन्य फसलों को उगाने के लिये प्रोत्साहन नहीं मिलता है, जिससे फसल विविधीकरण प्रभावित होने के साथ इन फसलों के अतिउत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है।
  • खरीद प्रणाली पर अत्यधिक भार: MSP के कारण प्रायः बड़े पैमाने पर सरकारी खरीद (विशेष रूप से चावल और गेहूँ की) करनी होती है जिससे भंडारण संबंधी चुनौतियों के साथ अनाज की बर्बादी होती है तथा भारतीय खाद्य निगम (FCI) के संसाधनों पर दबाव पड़ता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: चावल (MSP द्वारा समर्थित) जैसी कुछ जल-गहन फसलों पर ध्यान केंद्रित करने से पर्यावरणीय चिंताएँ (जैसे भूजल का कम होना- विशेष रूप से पंजाब जैसे क्षेत्रों में) उत्पन्न होती हैं
  • बिचौलियों पर निर्भरता: कुछ मामलों में जब MSP घोषित किया जाता है, तब भी किसानों को खरीद एजेंसियों तक सीधे पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी बिचौलियों पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिससे उनका शोषण होता है।

भारत में MSP को वैध बनाने की आवश्यकताएँ और चुनौतियाँ क्या हैं?

  • आवश्यकताएँ:
    • किसानों के लिये आय सुरक्षा: MSP को वैध बनाने से किसानों के लिये आय की गारंटी सुनिश्चित होगी तथा उन्हें बाज़ार मूल्यों में उतार-चढ़ाव से सुरक्षा मिलेगी।
      • सुनिश्चित आय बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कई किसान मूल्यों में गिरावट के कारण संकट का सामना करते हैं, विशेष रूप से फसल की अधिक उपज़ के दौरान।
    • कृषि निवेश को बढ़ावा: विधिक रूप से गारंटीकृत MSP किसानों को कृषि आगतों, आधुनिक प्रौद्योगिकी और संधारणीय कृषि पद्धतियों में अधिक निवेश करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है। 
      • सुनिश्चित रिटर्न के साथ, किसानों द्वारा उत्पादकता और स्थिरता में सुधार लाने वाले उपायों को अपनाने की अधिक संभावना होती है।
    • ग्रामीण निर्धनता में कमी: स्थिर मूल्य की पेशकश करके, कानूनी एमएसपी ग्रामीण निर्धनता को कम कर सकता है और लघु एवं सीमांत किसानों के जीवन स्तर में सुधार कर सकता है।

    • कृषि बाज़ारों को स्थिर करना: MSP एक मूल्य स्थिरीकरण उपकरण के रूप में कार्य करता है, जो खुले बाज़ारों में फसल की कीमतों की अस्थिरता को रोकता है और उपभोक्ता पर मुद्रास्फीति के बोझ को कम करता है।

      • MSP को कानूनी समर्थन मिलने से आपूर्ति शृंखला सुचारू हो सकती है और फसल की निरंतर खरीद सुनिश्चित हो सकती है।
    • संकटकालीन बिक्री में कमी: लाभकारी मूल्य न मिलने के कारण किसान प्रायः संकटकालीन बिक्री का सहारा लेते हैं। MSP को कानूनी रूप से लागू करने से संकटकालीन बिक्री को रोका जा सकता है।
  • चुनौतियाँ:
    • सरकार पर राजकोषीय बोझ: सभी फसलों पर MSP को वैध बनाने से सरकार को सुनिश्चित मूल्यों पर बड़ी मात्रा में खरीद करनी होगी, जिससे राजकोषीय बोझ काफी बढ़ जाएगा। 
      • सरकार के अनुसार, सभी किसानों और फसलों को MSP प्रदान करने पर वार्षिक रूप से 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक का खर्च आएगा, जो सरकार के लिये वित्तीय रूप से अव्यवहारिक है।
    • बाज़ार विकृति: कानूनी MSP निज़ी व्यापारियों और व्यवसायों को कृषि बाज़ार में भाग लेने से हतोत्साहित करके मुक्त बाज़ार तंत्र को विकृत कर सकता है। 
      • MSP पर अत्यधिक निर्भरता घरेलू और निर्यात बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बाधित कर सकती है, इससे भारत के लिये विश्व व्यापार संगठन में वैधानिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • भंडारण और बुनियादी ढाँचा संबंधी बाधाएँ: MSP को वैध बनाने के लिये बड़े पैमाने पर खरीद की आवश्यकता होगी, जिसके लिये भंडारण और रसद बुनियादी ढाँचे में पर्याप्त सुधार की आवश्यकता होगी। 
      • सरकार को भंडारण संबंधी सीमाओं का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि मौजूदा बुनियादी ढाँचा सभी फसलों के लिये विस्तारित खरीद प्रणाली को संभालने के लिये अपर्याप्त है।
    • कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: विविध कृषि पद्धतियों और जलवायु के कारण संपूर्ण भारत में समान रूप से MSP को लागू करना चुनौतीपूर्ण है, जिससे सभी किसानों को लाभ पहुँचाने वाले MSP स्तर निर्धारित करना कठिन हो जाता है।
      • राज्यों में उत्पादन लागत में अंतर के कारण एक समान MSP लागू करना और भी जटिल हो जाता है।
    • अतिउत्पादन और पर्यावरणीय प्रभाव: MSP को वैधानिक बनाने से गेहूँ और चावल जैसी कुछ फसलों के अतिउत्पादन को प्रोत्साहन मिल सकता है, जिन्हें पूर्व से ही MSP प्रणाली के तहत बड़े पैमाने पर खरीदा जाता है। 

      • इससे पर्यावरण को नुकसान पहुँच सकता है, जिसमें भूजल का क्षरण और मृदा प्रदूषण भी शामिल है।

आगे की राह

  • MSP कार्यान्वयन में सुधार: MSP में सुधार करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह क्षेत्रीय आवश्यकताओं और बाज़ार की मांग के आधार पर फसलों को लक्षित करता है।
    • गेहूँ और चावल जैसी विशिष्ट फसलों पर अत्यधिक निर्भरता कम करने के लिये खरीद संबंधी बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ करना और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना।
  • फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना: सरकार को पर्यावरणीय और आर्थिक मुद्दों के समाधान के लिये फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना चाहिये। 
    • संधारणीय कृषि को बढ़ावा देने और जल संसाधनों पर दबाव कम करने के लिये दालों, तिलहनों और बाज़रा सहित अन्य फसलों के लिये MSP शुरू किया जाना चाहिये या इसका विस्तार किया जाना चाहिये।
  • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT): अकुशलता को कम करने और बिचौलियों पर निर्भरता को कम करने के लिये, सरकार किसानों के लिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण पर विचार कर सकती है। 
    • इससे किसानों को MSP और बाज़ार मूल्य के बीच का अंतर सीधे उनके बैंक खातों में प्राप्त हो सकेगा, यदि वे MSP पर अपनी उपज नहीं बेच पाते हैं।
  • किसानों के लिये संबद्ध गतिविधियाँ: किसानों को अतिरिक्त आय स्रोत प्रदान करने के लिये बागवानी, डेयरी फार्मिंग और मत्स्य पालन जैसी संबद्ध कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देना, जिससे कृषि अधिक सतत् बनेगी और MSP पर निर्भरता कम होगी।
  • विनिर्माण रोज़गार के लिये कौशल विकास: ग्रामीण आबादी, विशेषकर युवाओं और महिलाओं को विनिर्माण और तकनीकी कौशल से लैस करने के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार करना। 
    • इससे कृषि के अतिरिक्त रोज़गार के अवसर उत्पन्न होंगे और गैर-कृषि आय में बदलाव को समर्थन मिलेगा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली के वैधानीकरण से संबंधित चिंताओं का आलोचनात्मक विश्लेषण करते हुए आगे की राह सुझाइये

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. सभी अनाजों, दालों और तिलहनों के मामले में भारत के किसी भी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद असीमित है।
  2. अनाज और दालों के मामले में MSP किसी भी राज्य / केंद्रशासित प्रदेश में उस स्तर पर तय किया जाता है जहाँ बाज़ार मूल्य कभी नहीं बढ़ेगा। 

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 व 2 दोनों
(d) न तो 1 न ही 2

उत्तर: (d)

मुख्य परीक्षा:

प्रश्न खाद्यान्न वितरण प्रणाली को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये सरकार द्वारा कौन से सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं? (2019)