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जैव विविधता और पर्यावरण

नई सेंटीपीड प्रजातियाँ

  • 12 Feb 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रजातियों के बीच संबंधों का अध्ययन करने के लिये जीवाश्म और उन्नत आनुवंशिक विधियों (Fossils and Advanced Genetic Methods) का प्रयोग किया गया जिसमें यह तथ्य सामने आया कि महाद्वीपीय विस्थापन (Continental Drift) के कारण उष्णकटिबंधीय सेंटीपीड/कनखजूरा की नई प्रजातियों का जन्म हुआ है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • जीवाश्म एवं उन्नत आनुवंशिक विधि (Fossils and Advanced Genetic Method) से किये गए अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 100 मिलियन वर्ष पहले महाद्वीपीय विस्थापन (Continental Drift) ने दुनिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली एथेस्टिग्मस सेंटीपीड्स (Ethmostigmus Centipedes) की कई प्रजातियों की उत्पत्ति की।
  • BMC इवोल्यूशनरी बायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय प्रायद्वीप में ये सेंटीपीड्स प्रजातियाँ सबसे पहले दक्षिणी और मध्य पश्चिमी घाट में उत्पन्न हुई और फिर धीरे-धीरे यहाँ की सीमाओं में फैल गई।

प्रजातियों की विविधता

  • भारत में मूलतः 6 प्रकार के बड़े आकार वाले एथेस्टिगमस सेंटीपीड्स की प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें पश्चिमी घाट में चार, पूर्वी घाट में एक और उत्तर-पूर्व भारत में एक पाया जाता है।
  • एथेस्टिग्मस सेंटीपीड की अन्य प्रजातियाँ अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं।

प्रायद्वीपीय भारत और महाद्वीपों में प्रजातियों की विविधता में वितरण क्या बताता है?

  • प्रायद्वीपीय भारत और महाद्वीपों में प्रजातियों की विविधता के वितरण का पता लगाने के लिये वैज्ञानिकों ने इनकी आनुवंशिकी पर अध्ययन किया।
  • इन्होंने पहले के प्रकाशित अध्ययनों से एथेस्टिग्मस सेंटीपीड के आनुवंशिक आँकड़ों का उपयोग करते हुए इन प्रजातियों के लिये एक 'टाइम-ट्री' (Time-Tree) का निर्माण किया जो प्रजातियों के एक-दूसरे के साथ संबंधों को दर्शाता है।
  • इस अध्ययन में अन्य नई प्रजातियाँ सामने आईं जिसमें से नौ प्रजातियाँ प्रायद्वीपीय भारत के बाहर अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाई जाती हैं।
  • वैज्ञानिकों ने सेंटीपीड के डीएनए की जाँच करने के लिये तीन जीवाश्म सेंटीपीड का इस्तेमाल किया, जिससे इन्हें सेंटीपीड के पाए जाने के अनुमानित स्थान का पता चला, जो कि प्रजाति की उत्पत्ति के बारे में बतलाता है।

सेंटीपीड की उत्पत्ति

  • आनुवंशिक अध्ययन से पता चलता है कि सेंटीपीड के एक पूर्वज द्वारा गोंडवाना (एक बड़ा महाद्वीप जिसमें ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और प्रायद्वीपीय भारत सहित एकल भूभाग शामिल है) में सभी एथेस्टिगमस सेंटीपीड की उत्पत्ति हुई।
  • बाद में गोंडवाना में विस्थापन के कारण इसके अलग होकर कई भूखंडो के रूप में अलग-अलग दिशाओं में जाने से एथेस्टिग्मस के प्रारंभिक विकासवादी इतिहास को आकार मिला।

भारतीय सेंटीपीड

Centipede

  • प्रायद्वीपीय भारत में अद्भुत प्रकार का एथेस्टिगमस पाया गया है।
  • इसका विकास उस समय शुरू हुआ जब प्रायद्वीपीय भारत दक्षिण एशिया की ओर विस्थापित हो रहा था।
  • लगभग 72 मिलियन साल पहले एथेस्टिग्मस (ई. ट्रिस्टिस) का विस्तार दक्षिणी और मध्य पश्चिमी घाटों में शुरू हुआ था। इसके बाद इसका विस्तार पूर्वी घाटों एवं दक्षिणी पश्चिमी घाटों तक फैल गया। एथेस्टिग्मस सेंटीपीड्स दक्षिण-मध्य घाटों से भी उत्तरी घाटों तक पहुँचे और बाद में फिर से वहाँ से वापस केंद्रीय घाटों में पहुंच गए।
  • वर्तमान में सभी भारतीय एथेस्टिग्मस सेंटीपीड केवल दलदली भूमि वाले जंगलों में रहते हैं। इन जंगलों का निर्माण इनके फैलाव को बढ़ा सकता है।

BMC इवोल्यूशनरी बायोलॉजी

  • 2001 में स्थापित BMC इवोल्यूशनरी बायोलॉजी, बायोमेड सेंट्रल द्वारा प्रकाशित BMC पत्रिकाओं की एक श्रृंखला का हिस्सा है।
  • BMC इवोल्यूशनरी बायोलॉजी सहकर्मियों की एक समीक्षात्मक वैज्ञानिक पत्रिका है, जिसमें विकासवादी जीवविज्ञान के सभी क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
  • इसमें वर्गानुवंशिकी (Phylogenetics) और जीवाश्मिकी (Palaeontology) शामिल हैं।

स्रोत – द हिंदू

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