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स्थानीय निकायों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की नीति को मिलती गति

  • 29 May 2017
  • 5 min read

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि राज्य नीति को आगे बढ़ाते हुए केरल के स्थानीय स्वशासन में एलजीबीटी क्यूआई (Lesbian Gay Bisexual Transgender Queer Intersex (LGBTQI) समुदाय के अधिकारों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक बैठक का आयोजन किया जा रहा है। 

प्रमुख बिंदु

  • तिरुवनंतपुरम स्थित सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज़ (Centre for Development Studies - CDS) के स्थानीय स्वशासन की शोध इकाई इस बैठक की मेजबानी करेगी ताकि ‘मानव विविधता-मित्रवत स्थानीय स्वशासन’(Human Diversity-Friendly Local Self-Government) से संबंधित प्रारूप को अंतिम रूप दिया जा सके। 
  • विदित हो कि केरल ने नवम्बर 2015 में ट्रांसजेंडर नीति को पारित किया था और इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में संशोधन करके संवेदी समलैंगिक कृत्यों को कानूनी रूप से स्वीकार्य घोषित कर दिया था।
  • सी.डी.एस. के इस प्रारूप से पता चलता है कि राज्य सरकार एलजीबीटी समुदाय के प्रति बेहद संवेदनशील हो गई है। सरकार एलजीबीटीक्यूआई समुदाय को राज्य के पंचायती राज के दायरे में लाने का प्रयास कर रही है। यह नोट इस समूह की मांग को प्रदर्शित करता है। 
  • इस समूह की मांग यह है कि उनके समुदाय में भी जागरूकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, उनकी पहुँच वहनीय स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक होनी चाहिये, उनमें आर्थिक सशक्तीकारण को बढ़ावा मिलना चाहिये तथा उन्हें सार्वजानिक वितरण प्रणाली का लाभ मिलने के साथ-साथ उन्हें आवास भी मुहैया कराए जाने चाहियें।
  • दरअसल, पिछली सरकार द्वारा पारित की गई केरल की ट्रांसजेंडर नीति को वर्तमान अनुदानों के तहत नहीं लाया गया है। सरकार का यह प्रयास है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की नीति का क्रियान्वयन राज्य में प्रभावशाली तरीके से किया जाए। 
  • वस्तुतः केरल राज्य में ट्रांसजेंडर पहले से ही समाज की मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं। अब उन्हें कौशल में प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। उनके लिये घरों की व्यवस्था भी अतिशीघ्र ही की जाएगी। तिरुवनंतपुरम निगम एक शरणस्थल का निर्माण कर रहा है जिसमें 10 ट्रांसजेंडरों को आवास उपलब्ध कराया जा सकता है।
  • भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के एक सदस्य ने अपने वार्ड में ट्रांसजेंडरों के लिये तीन कुदुमबशरी इकाइयों (Kudumbashree units) की शुरुआत की है। उन्होंने नगर निगम के वर्ष 2017-18 के बजट में इन समूहों के लिये आवंटित 20 लाख रुपयों को प्राप्त कर उनका प्रबंध किया था।
  • पिछले वर्ष कन्नूर और कोल्लम की ज़िला पंचायतों ने अपने बजट में ट्रांसजेंडरों के कल्याण हेतु धन का आवंटन किया था। टीजीआई नीति इस संदर्भ में बेहद प्रभावशाली है।
  • गौरतलब है कि स्थानीय स्तर पर ट्रांसजेंडरों के कल्याण हेतु होने वाले आवंटन से समाज के इस कमज़ोर वर्ग की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।

धारा 377 क्या है?

  • धारा 377 को ब्रिटिश काल के दौरान वर्ष 1860 में भारतीय दंड संहिता में शामिल किया गया था। यह धारा प्रकृति के विरुद्ध यौन गतिविधियों में संलग्न व्यक्तियों को अपराधी घोषित करती है। 
  • इस धारा को जुलाई 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा कानूनी रूप से अस्वीकार कर दिया गया, परन्तु 11 दिसम्बर, 2013 को दिल्ली न्यायालय के निर्णय को खारिज़ करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया कि धारा 377 में संशोधन करना अथवा उसे समाप्त करना संसद पर निर्भर करता है। इसका निर्णय करना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
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