सुपरकंप्यूटिंग अवसंरचना के लिये समझौता ज्ञापन | 14 Oct 2020
प्रिलिम्स के लिये:सुपरकंप्यूटिंग, राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन, C-DAC मेन्स के लिये:राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन के प्रमुख घटक, इसकी उपयोगिता, सुचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ और प्रयास आदि |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग' (C-DAC) ने भारत में सुपरकंप्यूटिंग अवसंरचना की स्थापना तथा विकास के लिये भारत के प्रमुख शैक्षणिक और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के साथ कुल 13 समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु:
- समझौता ज्ञापनों के तहत असेम्बलिंग और विनिर्माण सुपरकंप्यूटिंग अवसंरचना के अलावा 'राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन' (National Supercomputing Mission) के महत्त्वपूर्ण घटक (Critical Components) की स्थापना की जाएगी।
- प्रमुख संस्थानों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करना 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' की दिशा में एक पहल है।
- समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जाने का मुख्य लक्ष्य स्वदेशी हार्डवेयर का उपयोग करके एक्सैस्केल पैमाने पर चिप का निर्माण करना, सिलिकॉन-फोटोनिक्स सहित एक्सैस्केल सर्वर बोर्ड, एक्सैस्केल इंटरकनेक्टस और स्टोरेज के निर्माण में पूर्ण आत्म-निर्भरता प्राप्त करना है।
- एक्सैस्केल (Exascale) कंप्यूटिंग कम-से-कम 10 ^ 18 फ्लोटिंग पॉइंट ऑपरेशंस प्रति सेकंड (FLOPS) की गणना करने में सक्षम कंप्यूटिंग सिस्टम को संदर्भित करता है।
सुपरकंप्यूटिंग (Supercomputing):
- सुपरकंप्यूटर उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग (High-performance Computing- HPC) का भौतिक मूर्त रूप हैं, जो संगठनों को उन समस्याओं को हल करने में सक्षम बनाता है, जिन्हें नियमित कंप्यूटर के साथ हल किया जाना असंभव है।
राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन
(National Supercomputing Mission- NSM):
- मार्च 2015 में सात वर्षों की अवधि के लिये 4,500 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से ‘राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन’ की घोषणा की गई थी।
- मिशन के तहत 70 से अधिक उच्च प्रदर्शन वाले सुपरकंप्यूटरों के माध्यम से एक विशाल सुपरकंप्यूटिंग ग्रिड स्थापित कर देश भर के राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों और आर एंड डी संस्थानों को सशक्त बनाने की परिकल्पना की गई है।
- यह मिशन सरकार के 'डिजिटल इंडिया', 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' दृष्टिकोण का समर्थन करता है।
- मिशन को 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' (विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय) तथा 'इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय' (MeitY) द्वारा 'सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग' (C-DAC) और 'भारतीय विज्ञान संस्थान' (IISc) बंगलूरू के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है।
- इन सुपरकंप्यूटरों को 'राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क' (National Knowledge Network- NKN) के विस्तार के माध्यम से 'राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटर ग्रिड’ के साथ जोड़ा जाएगा।
- NKN एक उच्च गति के नेटवर्क के माध्यम से शैक्षणिक संस्थानों और आर एंड डी प्रयोगशालाओं को जोड़ता है।
- अगले पाँच वर्षों में 20,000 कुशल व्यक्तियों का एक मज़बूत आधार बनाया जाएगा, जो सुपरकंप्यूटरों की जटिलताओं के समाधान तथा उन्हें प्रबंधित करने में सक्षम होंगे।
सुपरकंप्यूटिंग का महत्त्व:
- ये सुपरकंप्यूटर देश में वैज्ञानिक और अकादमिक समुदाय की बढ़ती कंप्यूटिंग मांग को पूरा करने में मदद करेंगे।
- सुपरकंप्यूटर, देश को वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के क्षेत्र में एक अंतर्राष्ट्रीय बेंचमार्क के रूप में स्थापित करने में मदद करेंगे।
- मिशन के कार्यान्वयन से देश में बड़े वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी समुदाय की पहुँच सुपरकंप्यूटरों तक हो पाएगी जिससे बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं को हल करने की क्षमता के निर्माण में मदद मिलेगी।
अनुप्रयोग के क्षेत्र:
- सुपरकंप्यूटिंग कंप्यूटेशनल बायोलॉजी;
- आणविक गतिशीलता/मॉलिक्यूलर डायनेमिक्स;
- राष्ट्रीय सुरक्षा
- कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री;
- साइबर फिज़िकल सिस्टम;
- बिग डेटा एनालिटिक्स;
- सरकारी सूचना प्रणाली;
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता;
- मशीन लर्निंग;
- जलवायु मॉडलिंग।
वैश्विक परिदृश्य:
- विश्व स्तर पर अधिकतम सुपरकंप्यूटरों के साथ चीन दुनिया में शीर्ष स्थान रखता है।
- चीन के बाद अमेरिका, जापान, फ्रांँस, जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों का स्थान है।
भारत की स्थिति:
- NSM के तहत प्रथम सुपरकंप्यूटर ‘परम शिवाय’ (Param Shivay) IIT-BHU, वाराणसी में वर्ष 2019 में स्थापित किया गया है। इसमें 837 टेराफ्लॉप की उच्च-प्रदर्शन कम्प्यूटिंग (HPC) क्षमता है।
- टेराफ्लॉप्स, 10 ^ 12 फ्लोटिंग-पॉइंट ऑपरेशंस प्रति सेकंड (FLOPS) के बराबर कंप्यूटिंग गति की इकाई है।
- दूसरा सुपरकंप्यूटर ‘परम शक्ति’ (Param Shakti) आईआईटी-खड़गपुर में 1.66 पेटाफ्लॉप की क्षमता के साथ स्थापित किया गया है।
- पेटाफ्लॉप्स, 10 ^ 15 फ्लोटिंग-पॉइंट ऑपरेशंस प्रति सेकंड (FLOPS) के बराबर कंप्यूटिंग गति की इकाई है।
- तीसरी प्रणाली, ‘परम ब्रह्म’ (Param Brahma) को ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च’ (IISER)- पुणे में स्थापित किया गया है, जिसकी क्षमता 797 टेराफ्लॉप है।
निष्कर्ष:
- राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन का प्रारंभिक चरण समाप्त हो चुका है और इस संबंध में समग्र तकनीक विकसित की जा चुकी है तथा यह मिशन प्रधानमंत्री द्वारा दिये गए 'आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण को पूरा करने में मदद करेगा
‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग’ (C-DAC):
- यह 'इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय' (MeitY) का प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संगठन है, जो सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक और संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास की दिशा में कार्य करता है।
- C-DAC की स्थापना वर्ष 1988 में सुपरकंप्यूटरों का निर्माण करने के लिये की गई थी। C-DAC तब से सुपरकंप्यूटर की कई पीढ़ियों के निर्माण का कार्य कर रहा है, वर्ष 1988 में प्रथम सुपरकंप्यूटर 'परम' (जिसकी गति 1 गीगाफ्लॉप थी) का निर्माण किया गया था।