अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अनुसूचित जातियों के हस्तशिल्प कारीगरों के कल्याण के लिये समझौता ज्ञापन
- 22 Feb 2017
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सन्दर्भ
- हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि अंग्रेज़ों की आर्थिक नीतियों के कारण जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुँच चुका भारतीय हस्तशिल्प उद्योग अब तक पटरी पर नहीं लाया जा सका है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी हमारी नीतियाँ हस्तशिल्प उद्योगों की दयनीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार लाने में असफल रही हैं। बात जब अनुसूचित जातियों द्वारा संचालित हस्तशिल्प उद्योग की हो तो यह स्थिति और भी दयनीय नज़र आती है। हालाँकिइस समस्या का निपटान करने के लिये अब कपड़ा मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय एक साथ मिलकर कारीगरों के आर्थिक विकास के लिये कार्य करेंगे।
- एक अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम में कपड़ा मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने आपस में हाथ मिलाया है, ताकि अनुसूचित जातियों के अनुमानित 12 लाख कारीगरों के आर्थिक विकास के लिये और भी अधिक आवश्यक कदम उठाए जा सकें।
- इसका उद्देश्य देश भर में कार्यरत उन कारीगरों की आमदनी बढ़ाने के लिये आपस में मिल-जुलकर काम करना है जो अनुसूचित जातियों से जुड़ी श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं। गौरतलब है कि इस समझौता ज्ञापन (एमओयू) के तहत विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) के कार्यालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के बीच निरंतर एवं विस्तृत सहयोग सुनिश्चित किया जाएगा।
समझौता ज्ञापन के तहत उठाए जाने वाले कदम
- कपड़ा मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय जागरूकता शिविर लगाकर विभिन्न योजनाओं के बारे में प्रचार-प्रसार करके ज़रूरतों का आकलन करने के साथ-साथ संबंधित कमियों की पहचान करेंगे।
- अनूठे एवं बाज़ार अनुकूल डिज़ाइनों के क्षेत्र में और आधुनिक उपकरणों एवं तकनीकों को अपनाने के लिये इन कारीगरों के कौशल का उन्नयन किया जाएगा।
- घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय विपणन कार्यक्रमों में अनुसूचित जातियों के कारीगरों और उनके उत्पादक समूहों की भागीदारी बढ़ाई जायेगी।
- कपड़ा मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय कारीगरों को दिये जाने वाले लाभों को आपस में मिलाते हुए अनुसूचित जातियों के कारीगरों को रियायती दरों पर कार्यशील पूंजी से संबंधित ऋण भी मुहैया कराएंगे।
- एमओयू में इस बात पर भी सहमति जताई गई है कि विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) का कार्यालय विभिन्न योजनाओं के लिये परियोजना संबंधी रिपोर्टों को तैयार करने, अनुसूचित जातियों के कारीगरों की ज़रूरतों को चिन्हित करने तथा क्षेत्र संबंधी अध्ययन करने के लिये सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की सहायता करेगा।
निष्कर्ष
गौरतलब है कि कृषि क्षेत्र के बाद हस्तशिल्प क्षेत्र को ही दूसरी सर्वाधिक बड़ी आर्थिक गतिविधि माना जाता है। देश में अनुसूचित जातियों के लगभग 12 लाख कारीगर हैं। अनुसूचित जातियों के ज़्यादातर कारीगर विभिन्न हस्तशिल्प उत्पादों के उत्पादन में संलग्न हैं। असम में बेंत एवं बांस, गुजरात एवं पंजाब में वस्त्र (हस्त मुद्रित), उत्तर प्रदेश में धातुओं के बर्तन, कर्नाटक में गुड़िया एवं खिलौने, आंध्र प्रदेश में रंगमंच संबंधी वेशभूषा एवं कठपुतलियाँ इत्यादि इनमें शामिल हैं। इन सभी बातों के मद्देनज़र दो मंत्रालयों का एक साथ आना निश्चित रूप से एक सराहनीय कदम है।