मोतिहारी-अमलेखगंज (नेपाल) पाइपलाइन | 11 Sep 2019
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली ने 10 सितंबर, 2019 को दक्षिण एशिया की पहली सीमा पार जाने वाली पेट्रोलियम उत्पादों की पाइपलाइन का उद्घाटन किया।
प्रमुख बिंदु
- यह पाइपलाइन बिहार के मोतिहारी से नेपाल के अमलेखगंज को जोड़ती है।
- यह परियोजना निर्धारित समयसीमा से काफी पहले पूरी हो गई है।
- 69 किलोमीटर लंबी मोतिहारी-अमलेखगंज पाइपलाइन नेपाल के लोगों को किफायती लागत पर स्वच्छ पेट्रोलियम उत्पाद उपलब्ध कराएगी।
- इस पाइपलाइन की क्षमता दो मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष है।
बरौनी से नेपाल तक
- यह पाइपलाइन बिहार के बेगूसराय ज़िले की बरौनी रिफाइनरी से दक्षिण-पूर्वी नेपाल के अमलेखगंज तक ईंधन का परिवहन करेगी। अमलेखगंज पूर्वी चंपारण ज़िले के रक्सौल सीमा पर स्थित है।
- यह पाइपलाइन नेपाल के लिये एक गेम चेंजर साबित होगी।
- अमलेखगंज ईंधन डिपो (Amalekhgunj Fuel Depot) की भंडारण क्षमता 16,000 किलोलीटर पेट्रोलियम उत्पादों को स्टोर करने की हो जाएगी।
- मोतिहारी-अमलेखगंज पाइपलाइन (Motihari-Amalekhgunj Pipeline) नेपाल में तेल भंडारण और टैंकरों के माध्यम से पेट्रोलियम उत्पादों के परिवहन की समस्या से निपटने में मदद करेगी। यह नेपाल को पेट्रोलियम उत्पादों की सुगम, लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल आपूर्ति सुनिश्चित करेगी।
इसके निर्माण की अवधि
- मोतिहारी-अमलेखगंज पाइपलाइन परियोजना पहली बार वर्ष 1996 में प्रस्तावित की गई थी, लेकिन इसके कार्य की प्रगति काफी धीमी रही। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काठमांडू दौरे के बाद परिस्थितियाँ बदलने लगी।
- वर्ष 2015 में दोनों सरकारों ने परियोजना को निष्पादित करने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। हालाँकि नेपाल के साथ राजनीतिक तनाव से इस परियोजना में थोड़ी रुकावट आई।
- वर्ष 2017 में राज्य के स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (Indian Oil Corporation-IOC) ने नेपाल को सालाना 1.3 मिलियन टन ईंधन की आपूर्ति करने के लिये एक पेट्रोलियम व्यापार समझौते (Petroleum Trade Agreement) पर हस्ताक्षर किये, जिसमें वर्ष 2020 तक ईंधन की आपूर्ति मात्रा को दोगुना करने का वादा किया गया।
- जुलाई में दोनों देशों ने सफलतापूर्वक ऑयल पाइपलाइन के ज़रिये ट्रांसफर का परीक्षण भी किया था।
लागत और लाभ
- परियोजना की शुरुआत में 275 करोड़ रुपए की लागत का अनुमान लगाया गया था, जिसमें से भारत को 200 करोड़ रुपए का खर्च वहन करना था। इसके बाद NOC (National Oil Company) के अनुसार परियोजना की कुल लागत बढ़ गई है और करीब 325 करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
- सीमा पार से ईंधन परियोजना के वाणिज्यिक संचालन से ईंधन की कीमत में प्रति लीटर कम-से-कम एक रुपए की कमी आएगी।