मोरारजी देसाई | 02 Mar 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की 125वीं जयंती मनाई गई।
- वह भारत के चौथे प्रधानमंत्री (1977-79) थे। उल्लेखनीय है कि वह प्रधानमंत्री बनने वाले पहले गैर-कॉन्ग्रेसी थे।
प्रमुख बिंदु
- आरंभिक जीवन:
- मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी, 1896 को भदेली गाँव में हुआ था जो वर्तमान में गुजरात के बुलसार ज़िले में है।
- वर्ष 1918 में विल्सन सिविल सर्विस, बॉम्बे से स्नातक करने के बाद उन्होंने 12 वर्षों तक डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्य किया।
- स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
- वर्ष 1930 में जब भारत महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए सविनय अवज्ञा आंदोलन के मध्य चरण में था, उस समय ब्रिटिश सरकार की न्याय व्यवस्था के प्रति मोरारजी देसाई का विश्वास खत्म हो गया था और उन्होंने सरकारी सेवा से इस्तीफा देने तथा स्वतंत्रता के लिये जारी संघर्ष में शामिल होने का फैसला किया।
- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वह तीन बार जेल गए। वर्ष 1931 में वह अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस समिति के सदस्य बने तथा वर्ष 1937 तक गुजरात प्रदेश कॉन्ग्रेस समिति के सचिव रहे।
- महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा अक्तूबर 1941 में छोड़ दिया गया एवं अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया।
- राजनीतिक जीवन:
- वर्ष 1952 में वह बॉम्बे के मुख्यमंत्री बने।
- नवंबर 1956 में वह वाणिज्य और उद्योग मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए, इसके बाद मार्च 1958 में उन्हें वित्त विभाग का कार्यभार सौंपा गया।
- वर्ष 1963 में कामराज योजना/प्लान के तहत उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। पंडित नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें प्रशासनिक व्यवस्था के पुनर्गठन के लिये गठित प्रशासनिक सुधार आयोग का अध्यक्ष बनने के लिये राजी किया।
- कामराज प्लान के अनुसार, यह प्रस्ताव किया गया कि कॉन्ग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिये और अपनी सारी ऊर्जा कॉन्ग्रेस के पुनरुद्धार हेतु समर्पित कर देनी चाहिये।
- आपातकाल की घोषणा के दौरान 26 जून, 1975 को मोरारजी देसाई को गिरफ्तार कर लिया गया। गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन के समर्थन के लिये उन्होंने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की।
- नवनिर्माण अंदोलन आर्थिक संकट और सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन था जिसे वर्ष 1974 में गुजरात के छात्रों और मध्यम वर्ग के लोगों द्वारा शुरू किया गया।
- बाद में सर्वसम्मति से उन्हें संसद में जनता पार्टी के नेता के रूप में चुना गया और 24 मार्च, 1977 को उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
- उनकी विचारधारा:
- असमानता के खिलाफ: वह मानते थे कि जब तक गाँवों और कस्बों में रहने वाले गरीब लोग सामान्य जीवन जीने में सक्षम नहीं हैं, तब तक समाजवाद का कोई मतलब नहीं है। मोरारजी देसाई ने किसानों एवं किरायेदारों की कठिनाइयों के समाधान की दिशा में प्रगतिशील कानून बनाकर अपनी इस सोच को कार्यान्वित करने का ठोस कदम उठाया।
- मितव्ययिता का समर्थन: उन्होंने अपनी सोच को आर्थिक नियोजन एवं वित्तीय प्रशासन से संबंधित मामलों में कार्यान्वित किया। रक्षा एवं विकास संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये उन्होंने राजस्व में वृद्धि की, अपव्यय को कम किया एवं प्रशासन पर होने वाले सरकारी खर्च में मितव्ययिता को बढ़ावा दिया। उन्होंने वित्तीय अनुशासन को लागू कर वित्तीय घाटे को अत्यंत निम्न स्तर पर रखा। उन्होंने समाज के उच्च वर्गों द्वारा किये जाने वाले फिज़ूलखर्च को प्रतिबंधित कर उसे नियंत्रित करने का प्रयास किया।
- विधि का शासन: प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई यह चाहते थे कि भारत के लोगों को इस हद तक निडर बनाया जाए कि देश में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह सर्वोच्च पद पर ही आसीन क्यों न हो, अगर कुछ गलत करता है तो कोई भी उसे उसकी गलती का अहसास करा सके। उन्होंने बार-बार यह कहा, “कोई भी, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री भी देश के कानून से ऊपर नहीं होना चाहिये”।
- सख्त अनुशासन: उनके लिये सच्चाई एक अवसर नहीं बल्कि विश्वास के एक मानक के रूप में थी। उन्होंने शायद ही कभी अपने सिद्धांतों को स्थिति की बाध्यता के आगे दबने दिया।