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भारतीय अर्थव्यवस्था

तेल की कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये सबसे बड़ा खतरा

  • 06 Jul 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मूडीज़ इनवेस्टर्स सर्विस द्वारा किये गए निवेशक सर्वेक्षण (investor survey) के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये तेल की कीमतें, बैंकों की बैलेंस-शीटों के क्लीन-अप की गति और निवेश महत्त्वपूर्ण क्रेडिट जोखिम हैं।

प्रमुख बिंदु

  • रेटिंग एजेंसी के मुताबिक, जहाँ एक ओर कच्चे तेल की ऊँची कीमतों को सिंगापुर और मुंबई में बाज़ार प्रतिभागियों ने सर्वसम्मति से भारत की अर्थव्यवस्था के लिये मुख्य जोखिम माना, वहीं दूसरे सबसे बड़े जोखिम के संदर्भ में इनके बीच समान राय नहीं थी।
  • मूडीज़ के वरिष्ठ विश्लेषक के अनुसार, जहाँ सिंगापुर में 30.3% उत्तरदाताओं ने बढ़ती ब्याज दरों को तेल की कीमतों के बाद दूसरा बड़ा खतरा माना, वहीं मुंबई में 23.1% लोगों ने घरेलू राजनीतिक खतरों को दूसरा शीर्ष जोखिम माना।
  • जून 2018 में मुंबई और सिंगापुर में मूडीज़ और इसकी भारतीय सहयोगी कंपनी आईसीआरए लिमिटेड ने चौथे वार्षिक ‘भारत क्रेडिट सम्मेलन’ का आयोजन किया।
  • इस सम्मेलन में भारत द्वारा झेले जा रहे कुछ महत्त्वपूर्ण क्रेडिट संबंधी मुद्दों पर मतदान कराया गया।
  • इस सम्मेलन में 100 से अधिक स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 175 लोगों ने भाग लिया।
  • दोनों स्थानों पर उपस्थित लोगों में से अधिकांश का कहना था कि भारत मार्च 2019 में खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष के लिये केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित जीडीपी के 3.3% राजकोषीय घाटे संबंधी लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगा।
  • सिंगापुर में केवल 23.3% और मुंबई में 13.6% उत्तरदाताओं का मानना था कि राजकोषीय लक्ष्य हासिल हो पाएंगे, जबकि मुंबई में 84.7% और सिंगापुर में 76.7% का मानना था कि ऐसा हो पाना मुश्किल है।
  • सिंगापुर और मुंबई दोनों जगह मतदान करने वाले प्रतिभागियों का मानना था कि बैंकों के पुनर्पूंजीकरण हेतु सरकार द्वारा जारी किया गया पैकेज सॉल्वेंसी चुनौतियों को हल करने के लिये अपर्याप्त है।
  • मूडीज़ द्वारा अपनी एक रिपोर्ट में कहा गया है, हालाँकि पुनर्पूंजीकरण पैकेज न्यूनतम नियामक पूंजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त है, लेकिन यह क्रेडिट ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिये अपर्याप्त होगा।
  • रिपोर्ट का मानना है कि बैंक इक्विटी बाज़ारों से नई पूंजी जुटाने में सक्षम नहीं हैं, जैसा कि सरकार के पुनर्पूंजीकरण उपायों के अंतर्गत प्लान किया गया था।
  • संयोगवश, मुंबई में उपस्थित 59.6%  लोगों ने माना कि बैंक योजनाबद्ध रूप से बाजारों से पूंजी जुटाने में असमर्थ होंगे, जबकि सिंगापुर में मतदान करने वालों में से 32.1% का भी यही मानना था।
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