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मॉब लिंचिंग

  • 23 Dec 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मॉब लिंचिंग, पूनावाला केस, मॉब लिंचिंग से संबंधित कानूनी प्रावधान।

मेन्स के लिये:

मॉब लिंचिंग का कारण और इसे दूर करने के लिये किये गए उपाय।

चर्चा में क्यों?

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री ने अमृतसर और कपूरथला में लिंचिंग की हालिया घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • मॉब लिंचिंग एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल लोगों के एक बड़े समूह द्वारा लक्षित हिंसा के कृत्यों का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • भीड़ मानती ​​है कि वह पीड़ित को गलत कार्य (ज़रूरी नहीं कि अवैध हो) करने के लिये दंडित कर रही है और किसी कानून का पालन किये बिना कथित आरोपी को दंडित करने हेतु कानून अपने हाथ में लेती है।
  • मॉब लिंचिंग का कारण:
    • असहिष्णुता:
      • लोग कानून के कृत्यों को स्वीकार करने में असहिष्णु हैं और कथित व्यक्ति को अनैतिक मानते हुए दंडित करने के लिये आगे बढ़ते हैं।
    • पूर्वाग्रह:
      • जाति, वर्ग, धर्म आदि जैसी विभिन्न पहचानों पर आधारित पूर्वाग्रह: मॉब लिंचिंग एक घृणित अपराध है जो विभिन्न जातियों, लोगों और धर्मों के बीच पूर्वाग्रहों के कारण बढ़ रहा है।
    • गौ हत्या के आरोप में लिंचिंग: 
      • यह उन महत्त्वपूर्ण कारणों में से एक है जो मॉब लिंचिंग की गतिविधियों में तेज़ी से वृद्धि करता है। 
    • शीघ्र न्याय का अभाव: 
      • न्याय प्रदान करने वाले अधिकारियों का अकुशल कार्य ही प्राथमिक कारण है कि लोग कानून को अपने हाथ में लेते हैं तथा परिणामों से डरते नहीं हैं। 
    • पुलिस प्रशासन की अक्षमता: 
      • पुलिस अधिकारी लोगों के जीवन की रक्षा करने और लोगों के बीच सद्भाव बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन उनकी अप्रभावी जाँच प्रक्रिया के कारण यह घृणित अपराध दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है।
  • मॉब लिंचिंग के प्रकार: कारणों के आधार पर मॉब लिंचिंग को छह प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:    
    • सांप्रदायिक आधारित
    • जादू-टोना
    • सम्मान की रक्षा हेतु हत्या
    • गोजातीय-संबंधी मॉब लिंचिंग
    • बच्चा चोरी का शक
    • चोरी के मामले
  • संबंधित मुद्दे:
    • मॉब लिंचिंग मानव गरिमा का उल्लंघन है, साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद-21 और ‘मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा’ का भी उल्लंघन है।
    • ऐसी घटनाएँ ‘समानता के अधिकार और ‘भेदभाव के निषेध’ संबंधी मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करती हैं, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 और 15 में निहित हैं।
    • हालाँकि देश के कानून में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है और इसलिये इसे केवल हत्या के रूप में रखा गया है, क्योंकि इसे अभी तक भारतीय दंड संहिता के तहत शामिल नहीं किया गया है।
  • उठाए गए संबंधित कदम:
    • निवारक उपाय: 
      • जुलाई 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने तहसीन एस. पूनावाला बनाम यूओआई मामले में  लिंचिंग और भीड़ की हिंसा से निपटने के लिये कई निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपाय निर्धारित किये थे।
        • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मॉब लिंचिंग को 'भीड़ तंत्र का एक भयानक कृत्य' कहा।
    • नामित फास्ट ट्रैक कोर्ट:
      • राज्यों को हर ज़िले में विशेष रूप से मॉब लिंचिंग से जुड़े मामलों से निपटने के लिये नामित फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का निर्देश दिया गया था।
    • स्पेशल टास्क फोर्स:
      • न्यायालय ने नफरत भरे भाषणों, भड़काऊ बयानों और फेक न्यूज़ फैलाने में शामिल लोगों के बारे में खुफिया रिपोर्ट हासिल करने के उद्देश्य से एक विशेष टास्क फोर्स के गठन पर भी विचार किया था, जिसके कारण मॉब लिंचिंग हो सकती है।
    • पीड़ित मुआवज़ा योजना:
      • पीड़ितों के राहत और पुनर्वास हेतु पीड़ित मुआवज़ा योजनाओं (Victim compensation schemes) को स्थापित करने के लिये भी निर्देश जारी किये  गए।
      • एक साल बाद जुलाई 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और कई राज्यों को नोटिस जारी कर कहा कि वे उपायों को लागू करने की दिशा में उनके द्वारा उठाए गए कदमों को प्रस्तुत करें और अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करें।
      • अब तक केवल तीन राज्यों मणिपुर, पश्चिम बंगाल और राजस्थान ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाए हैं।
        • हाल ही में झारखंड विधानसभा ने  'झारखंड मॉब वायलेंस एंड मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक 2021 को पारित किया है।

आगे की राह 

  • लिंचिंग एक ऐसी घृणित घटना है जिसका उस लोकतांत्रिक समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिये, जिस पर भारत को गर्व है।
  • लिंचिंग की घटना शासन को विशेष रूप से अस्थिर करती है, जबकि भीड़ द्वारा की गई हिंसा का कार्य स्वयं कानून प्रवर्तन की विफलता का संकेत है, यह एक स्पष्ट विचार के रूप में प्रतिबद्ध होती है जिसमें कानून की सहायता नहीं ली जाती है।
  • भीड़ की हिंसा के मामलों में पुलिस की निष्क्रियता सिद्धांतों को विकृत रूप से तोड़मरोड़, पुलिस द्वारा न्यायेतर दंड की स्पष्ट सार्वजनिक स्वीकृति न दिये जाने के कारण देखी जाती है।
  • यह देश के लिये घातक है। भीड़ की हिंसक घटनाओं के कारण वास्तव में देश की बदनामी होती है और इसे समाप्त करने के लिये पुलिस को सख्ती के साथ हस्तक्षेप करना चाहिये।
  • भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसक कार्यवाहियों को अनुमति देने वाली सामाजिक सहमति पर सवाल उठाने में राजनीतिक नेतृत्व की भी भूमिका होती है।

स्रोत: द हिंदू  

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