मॉब लिंचिंग | 18 Feb 2025
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023, NCB, तहसीन पूनावाला बनाम भारत संघ मामला 2018 मेन्स के लिये:मॉब लिंचिंग और धार्मिक कट्टरवाद: चुनौतियाँ और आगे की राह |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवहार्यता संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) और गौ-रक्षा के नाम पर हिंसा के मामलों में मुआवजे के रूप में एक समान राशि तथा निगरानी के लिये राष्ट्रव्यापी निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया है।
- हालाँकि, इसने पुनः पुष्टि की कि उसके वर्ष 2018 के तहसीन पूनावाला दिशा-निर्देश संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सभी राज्यों के लिये बाध्यकारी हैं।
मॉब लिंचिंग क्या है?
- परिचय:
- मॉब लिंचिंग एक सामूहिक हिंसा है, जिसमें एक समूह कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए, कथित गलत कार्य के आधार पर व्यक्तियों को गैरकानूनी रूप से दंडित करता है।
- मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) सामूहिक हिंसा का एक रूप है, जिसमें एक समूह द्वारा कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए कथित अपराधों के लिये लोगों को अवैध रूप से दंडित किया जाता है।
- गौ-रक्षा के नाम पर की जाने वाली हिंसा, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सद्भाव के लिये खतरा है, जो प्रायः संदेह से प्रेरित होती है।
- मॉब लिंचिंग के कारण:
- संस्कृति या पहचान के लिये कथित खतरा: लिंचिंग तब होती है जब किसी व्यक्ति या समूह को सांस्कृतिक, धार्मिक या पारंपरिक मूल्यों के लिये खतरा माना जाता है।
- सामान्य कारणों में अंतर्जातीय/अंतरधार्मिक संबंध, खान-पान की आदतें, या सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने वाले रीति-रिवाज शामिल हैं।
- फेक न्यूज़: फेक न्यूज़, जो अक्सर सोशल मीडिया और मौखिक रूप से फैलाई जाती हैं, मॉब लिंचिंग में योगदान दे सकती हैं।
- सामाजिक-राजनीतिक तनाव: भूमि विवाद, संसाधन प्रतिस्पर्द्धा और आर्थिक असमानताओं से उत्पन्न तनाव हिंसा में बदल सकता है, जिसका अक्सर राजनीतिक लाभ के लिये शोषण किया जाता है।
- सांप्रदायिक विभाजन: ऐतिहासिक धार्मिक, जातीय या सांप्रदायिक तनाव अक्सर लिंचिंग की घटनाओं के लिये उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।
- नैतिक सतर्कता: स्वघोषित संगठन सामाजिक मूल्यों के प्रति अपनी धारणा को कायम रखने के लिये हिंसा का प्रयोग करते हैं, विशेष रूप से उन लोगों को निशाना बनाते हैं जिनके बारे में उनका मानना है कि वे उनका उल्लंघन कर रहे हैं।
- संस्कृति या पहचान के लिये कथित खतरा: लिंचिंग तब होती है जब किसी व्यक्ति या समूह को सांस्कृतिक, धार्मिक या पारंपरिक मूल्यों के लिये खतरा माना जाता है।
भारत में मॉब लिंचिंग से संबंधित विधिक प्रावधान क्या हैं?
- भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023:
- धारा 103(2): मॉब लिंचिंग
- जब 5 या अधिक व्यक्तियों का समूह मिलकर नस्ल, जाति, समुदाय, लैंगिक हिंसा, जन्म स्थान, भाषा या व्यक्तिगत विश्वास के आधार पर हत्या करता है।
- सज़ा: मृत्युदंड या आजीवन कारावास और ज़ुर्माना।
- धारा 117(4): भीड़ द्वारा गंभीर चोट पहुँचाना
- जब 5 या अधिक व्यक्तियों का समूह मिलकर समान भेदभावपूर्ण आधार पर गंभीर चोट पहुँचाता है।
- सज़ा: 7 वर्ष तक का कारावास और ज़ुर्माना।
- धारा 103(2): मॉब लिंचिंग
- तहसीन पूनावाला मामला, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:
- सर्वोच्च न्यायालय ने मॉब लिंचिंग की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति या समूह कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता।
- न्यायालय ने चेतावनी दी कि अनियंत्रित लिंचिंग "नई सामान्य बात" बन सकती है और इस बात पर ज़ोर दिया कि सभ्य समाज में भीड़ द्वारा न्याय का कोई स्थान नहीं है।
- इसमें कहा गया कि नागरिकों की सुरक्षा करना तथा लक्षित हिंसा को रोकना राज्य का कर्त्तव्य है।
- इसने अमेरिकी कानूनी उदाहरणों का हवाला देते हुए इस बात पर बल दिया कि भीड़ द्वारा न्याय, विधि के शासन को कमज़ोर करता है।
- मॉब लिंचिंग के लिये सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:
- उकसावे के खिलाफ सख्त कार्रवाई: घृणास्पद भाषण या फर्जी खबरें फैलाने वालों के खिलाफ IPC की धारा 153A (BNS में धारा 196) के तहत (विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य बढ़ाने के लिये) स्वतः FIR दर्ज़ की जाएगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मॉब लिंचिंग की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति या समूह कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता।
- निवारक उपाय: राज्य प्रत्येक ज़िले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को नोडल अधिकारी के रूप में नियुक्त करेंगे। इसमें
- संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करना और पुलिस गश्त बढाना, एवं
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को अभद्र भाषा तथा फर्जी खबरों पर अंकुश लगाना शामिल है।
- दंडात्मक और उपचारात्मक उपाय: प्रत्येक ज़िले में फास्ट-ट्रैक अदालतें 6 माह के भीतर मामलों का निपटारा करेंगी।
- भीड़ द्वारा हत्या जैसे अपराधों के लिये आजीवन कारावास सहित कठोर सज़ा का प्रावधान।
- लापरवाह अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई।
- पीड़ितों को मुआवज़ा: राज्यों को चोट की गंभीरता, आजीविका की हानि और चिकित्सा व्यय के आधार पर मुआवज़ा हेतु योजना विकसित करनी होगी।
- अधिकारियों की जवाबदेही: लिंचिंग को रोकने में विफल रहने वाले अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई।
- निगरानी और विधायी उपाय: राज्यों को मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर समय-समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
- संसद से राष्ट्रीय स्तर पर लिंचिंग विरोधी कानून बनाने का आग्रह किया गया (यह लंबित है), हालाँकि राजस्थान और मणिपुर ने राज्य स्तर पर कानून बना लिये हैं।
माॅब लिंचिंग को रोकने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- विधिक खामियाँ और विधियों का अप्रभावी प्रवर्तन: भारत में लिंचिंग विरोधी कोई विशिष्ट कानून नहीं है जिसके कारण ऐसे अपराधों के विरुद्ध कार्रवाई में बाधा आती है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने माॅब लिंचिंग को रोकने के लिये दिशा-निर्देश तय किये हैं लेकिन इनका प्रवर्तन कमज़ोर बना हुआ है।
- सांप्रदायिक भेदभाव और पक्षपात: लिंचिंग की घटनाओं से कमज़ोर समुदाय अधिक प्रभावित होते हैं। इससे सांप्रदायिक विभाजन के साथ व्यवस्थागत भेदभाव एवं पक्षपातपूर्ण कानून प्रवर्तन के बारे में चिंताएँ बढ़ती हैं।
- आँकड़ों की कमी और नीतिगत खामियाँ: NCRB ने वर्ष 2017 के बाद से माॅब लिंचिंग और हेट क्राइम पर अलग-अलग आँकड़े दर्ज करना बंद कर दिया, जिससे इस मुद्दे की सीमा का आकलन करना जटिल हो गया और इस तरह की हिंसा को रोकने के लिये प्रभावी उपाय तैयार करने में चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं।
- सोशल मीडिया और भ्रामक सूचना: डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भ्रामक खबरों से हिंसा को बढ़ावा मिलता है, जिससे इनका विनियमन और जवाबदेहिता मुश्किल हो जाती है।
आगे की राह
- राष्ट्रीय कानून: एकरूपता और निवारण के क्रम में कठोर दंड एवं त्वरित सुनवाई के साथ एक समर्पित लिंचिंग विरोधी कानून आवश्यक है।
- मज़बूत कानून प्रवर्तन और न्यायपालिका: माॅब लिंचिंग को रोकने के साथ उसके संबंध में जवाबदेहिता सुनिश्चित करनी चाहिये।
- पीड़ितों के लिये त्वरित सुनवाई एवं न्याय सुनिश्चित करने के क्रम में विशेष जाँच दल (SIT) और फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की सुविधा प्रदान करनी चाहिये।
- जन जागरूकता एवं मीडिया: सरकार एवं नागरिक समाज को जागरूकता तथा नैतिक पत्रकारिता के साथ फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाकर माॅब लिंचिंग को रोकने में भागीदारी करनी चाहिये।
- प्रौद्योगिकी विनियमन एवं साइबर सुरक्षा: डिजिटल निगरानी को मज़बूत करना, हेट स्पीच पर अंकुश लगाना तथा डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देते हुए सोशल मीडिया को जवाबदेह बनाना आवश्यक है।
- सामुदायिक सहभागिता: सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने तथा अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा देने के साथ माॅब लिंचिंग पर अंकुश लगाने के लिये शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: Q. भारत में मॉब लिंचिंग, विधि के शासन तथा सामाजिक सद्भाव के लिये खतरा है। इसके कारणों का विश्लेषण करने के साथ इस मुद्दे को हल करने हेतु विधिक एवं नीतिगत उपाय बताइये। |