भारतीय अर्थव्यवस्था
पवन ऊर्जा परियोजनाओं हेतु निविदा संबंधी दिशा-निर्देशों में संशोधन
- 26 Jul 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy-MNRE) ने पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये निविदा संबंधी दिशा-निर्देशों में संशोधन किये हैं।
क्या है पवन उर्जा?
- गतिमान वायु से उत्पन्न की गई ऊर्जा को पवन उर्जा कहते हैं।
- पवन उर्जा के उत्पादन के लिये हवादार स्थानों पर पवन चक्कियों की स्थापना की जाती है। इन चक्कियों द्वारा वायु की गतिज ऊर्जा यांत्रिक उर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
- इस यांत्रिक उर्जा को जनित्र (Dynamo) की मदद से विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
- इसका उपयोग पहली बार स्कॉटलैंड में 1887 में किया गया था।
पूर्व के नियम
- भारत सरकार द्वारा वर्ष 2017 में विद्युत अधिनियम (Electricity Act) 2003 की धारा 63 के तहत पवन ऊर्जा की खरीद के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये गए थे।
- इन दिशा-निर्देशों के तहत पवन ऊर्जा की खरीद हेतु लगने वाली बोली की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की रूपरेखा तैयार करने की बात कही गई थी। साथ ही इसमें प्रक्रिया के मानकीकरण, भूमिका निर्धारण तथा विभिन्न हितधारकों की ज़िम्मेदारियों जैसे पहलुओं को भी शामिल किया गया था।
- इन दिशा-निर्देशों को ग्रिड से जुड़ी पवन ऊर्जा परियोजना से पवन ऊर्जा खरीदने हेतु लगने वाली ऐसी बोलियों पर लागू करने की बात भी कही गई थी।
नवीनतम संशोधन
- पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण की समय-सीमा सात महीने से बढ़ाकर निर्धारित कमीशनिंग तिथि, यानी 18 महीने तक कर दी गई है। यह उन राज्यों में पवन ऊर्जा परियोजना डेवलपर्स को मदद करेगा, जहाँ भूमि अधिग्रहण में अधिक समय लगता है।
- पवन ऊर्जा परियोजना की घोषित क्षमता उपयोग घटक (Capacity Utilisation Factor-CUF) के संशोधन की समीक्षा के लिये अवधि को बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है।
- घोषित CUF को अब वाणिज्यिक संचालन की तारीख के तीन साल के भीतर एक बार संशोधित करने की अनुमति है, जिसे पहले केवल एक वर्ष के भीतर अनुमति दी गई थी।
- न्यूनतम CUF के अनुरूप ऊर्जा में कमी पर जुर्माना, अब PPA शुल्क का 50 प्रतिशत तय किया गया है, जो कि पावर जेनरेटर द्वारा खरीदकर्ता को भुगतान की जाने वाली ऊर्जा शर्तों में कमी के लिये PPA शुल्क है।
- इसके अलावा, मध्यस्थ खरीदकर्ता द्वारा मध्यस्थ के घाटे को घटाने के बाद अंतिम खरीदकर्ता के लिये जुर्माना निर्धारित किया जाएगा।
- प्रारंभिक भाग के कमीशनिंग के मामलों में, खरीदकर्ता पूर्ण PPA शुल्क पर बिजली उत्पादन की खरीद कर सकता है।
- पवन ऊर्जा परियोजना की कमीशनिंग कार्यक्रम को PPA या PSA के कार्यान्वयन की तारीख (जो भी बाद में है) से 18 महीने की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है।
- दंड प्रावधानों में शर्तों को हटा दिया गया है और दंड की दर तय कर दी गई है। PPA या PSA पर हस्ताक्षर करने की तारीख से, परियोजना के कार्यान्वयन की समय सीमा शुरू करने तक, जो भी बाद में हो, पवन ऊर्जा डेवलपर्स के जोखिम को कम कर दिया गया है।
उद्देश्य
- संशोधन का उद्देश्य न केवल भूमि अधिग्रहण और CUF से संबंधित निवेश जोखिमों को कम करना है, बल्कि परियोजना की जल्द शुरूआत के लिये प्रोत्साहन प्रदान करना भी है।
यह निर्णय महत्त्वपूर्ण क्यों है?
- सरकार का यह निर्णय विकास का महत्व इसलिए है चूँकि सरकार ने 2022 तक 175 गीगावॉट स्वच्छ ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, जिसमें 100 गीगावॉट सौर तथा 60 गीगावॉट पवन ऊर्जा शामिल है। अतः इस लक्ष्य की प्राप्ति के संदर्भ में सरकार का यह निर्णय महत्त्वपूर्ण है।
- 8 दिसंबर, 2017 को ग्रिड से जुड़ी पवन ऊर्जा परियोजनाओं (Grid Connected Wind Power Projects) से बिजली की खरीद के लिये शुल्क आधारित प्रतिस्पर्द्धी निविदा (Competitive Bidding) प्रक्रिया दिशा-निर्देश अधिसूचित किये गए थे।
- निविदा के अनुभव के आधार पर और हितधारकों के साथ परामर्श के बाद, पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये इन मानक निविदा-प्रक्रिया के दिशा-निर्देशों में संशोधन किये गए।
भारत में पवन ऊर्जा की स्थिति
- भारत में पवन ऊर्जा उद्योग की स्थापना 1980 के दशक के अंत में हुई थी। स्थापना के कई वर्षों तक यह केवल तमिलनाडु राज्य में कार्यरत रही। परंतु, पिछले एक दशक से यह देश के तकरीबन आठ अन्य राज्यों में भी प्रसारित हो गई है।
- वर्तमान में पवन ऊर्जा क्षेत्र के कुल आठ राज्यों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात के साथ-साथ राजस्थान जैस पश्चिमी राज्य भी शामिल है।
- इस क्षेत्र में बढ़ती आशावादिता की मुख्य वज़ह यह है कि केंद्र सरकार पवन ऊर्जा उत्पादकों से विद्युत की खरीद करके इसे अन्य विद्युत आपूर्तिकर्ता कंपनियों को बेचना चाहती है, ताकि देश के ऐसे गरीब क्षेत्रों तक भी विद्युत की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके जिन्हें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये महँगे संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- वस्तुतः देश के प्रत्येक कोने को प्रकाशमयी बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार इस दिशा में एक वास्तविक व्यापारी की भूमिका का निर्वाह कर रही है।
- गौरतलब है कि पवन ऊर्जा के क्षेत्र में 32,280 मेगावाट की क्षमता के साथ भारत का चीन, अमेरिका तथा जर्मनी के बाद विश्व में चौथा स्थान है।
- इतना ही नहीं वरन् वर्ष 2022 तक भारत की पवन ऊर्जा क्षमता को वर्तमान के स्तर से बढ़ाकर 60 गीगावाट तक लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- ध्यातव्य है कि भारत की संपूर्ण ऊर्जा क्षमता में 3.2 लाख मेगावाट ऊर्जा के साथ पवन ऊर्जा का योगदान तकरीबन 10 फीसदी का है।
इन दिशा-निर्देशों के अनुपालन से न केवल पवन ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि इससे ऊर्जा के स्रोतों में भी वृद्धि होगी। इससे वे राज्य जहाँ तेज हवाएँ चलती हैं स्वयं पवन ऊर्जा खरीद के लिये बोली में भाग लेने की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्त पवन ऊर्जा परियोजनाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये एक ऐसे विस्तृत दस्तावेज की जरूरत है, जिसमें हितधारकों यानी OEM, स्वतंत्र बिजली उत्पादकों, पवन कृषि डेवलपरों, वित्तीय संस्थानों आदि द्वारा सुरक्षित और विश्वसनीय संचालन के लिये पवन टरबाइन द्वारा संकलित संपूर्ण तकनीकी आवश्यकताओं का प्रावधान हो।