डेयरी क्षेत्र में एंटीबायोटिक का दुरुपयोग | 31 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये:

एंटीबायोटिक प्रतिरोध, ‘राष्ट्रीय दुग्ध सुरक्षा और गुणवत्ता सर्वेक्षण’,

मेन्स के लिये:

डेयरी क्षेत्र में दवाओं के दुरुपयोग और इसके विनियमन से जुड़ी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment- CSE) द्वारा जारी एक सर्वेक्षण में डेयरी (दुग्ध उत्पादन) क्षेत्र में एंटीबायोटिक के अनियंत्रित प्रयोग पर चिंता ज़ाहिर की गई है।

प्रमुख बिंदु :

भारतीय डेयरी क्षेत्र:

  • भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, वर्ष 2018-19 में भारत में लगभग 188 मिलियन टन दूध का उत्पादन किया गया था।
  • भारत में उत्पादित 52% दूध की खपत शहरी क्षेत्रों में होती है।
  • भारतीय बाज़ार में दूध की कुल मांग में से 60% की आपूर्ति असंगठित क्षेत्र के छोटे दूध विक्रेताओं और ठेकेदारों द्वारा की जाती है तथा शेष मांग की आपूर्ति संगठित क्षेत्र की डेयरी सहकारी समितियों (Dairy Cooperatives) और निजी डेयरियों द्वारा की जाती है।

एंटीबायोटिक का दुरुपयोग:

उपलब्धता:

  • एंटीबायोटिक के दुरुपयोग पर प्रतिबंध होने के बावज़ूद भी एंटीबायोटिक दवाएँ किसी पंजीकृत पशु चिकित्सक के परामर्श के बगैर भी बाज़ार में बहुत ही आसानी से उपलब्ध होती हैं।

चिंता का कारण:

  • CSE की रिपोर्ट के अनुसार, किसान अक्सर किसी पशु चिकित्सक का परामर्श लिये बगैर अनुमान के आधार पर पशुओं को एंटीबायोटिक दवाएँ दे देते हैं।
  • किसानों द्वारा पशुओं में ‘स्तन संक्रमण/सूजन’ या ‘मास्टिटिस’ (Mastitis) जैसे रोगों के मामलों में बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है।
  • इनमें कुछ ऐसी एंटीबायोटिक दवाएँ भी शामिल हैं जिन्हें मनुष्यों के लिये ‘अतिमहत्त्वपूर्ण एंटीबायोटिक’ [Critically Important Antibiotics (CIAs) for humans] की श्रेणी में रखा गया है।
  • WHO के अनुसार, CIA के निर्धारण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है-
    • ऐसी एंटीबायोटिक दवाओं से है जो मनुष्यों में होने वाले किसी गंभीर जीवाणु संक्रमण के सीमित (या एकमात्र) विकल्पों में से एक हैं।
    • साथ ही ऐसा जीवाणु संक्रमण मनुष्यों में गैर-मानव स्रोत (जैसे-पशु) से हुआ हो या वह गैर-मानव स्रोत से प्रतिरोधी जीन प्राप्त कर सकता हो।
  • ऐसा अक्सर देखा गया है कि जब किसी पशु का इलाज चल रहा होता है तब भी किसान उससे प्राप्त दूध की बिक्री जारी रखते हैं। इससे दूध में एंटीबायोटिक अवशेषों की उपस्थिति की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

अपर्याप्त परीक्षण:

  • किसानों से सीधे ग्राहकों को प्राप्त होने वाले दूध के साथ पैकेट में मिलने वाले प्रसंस्कृत दूध में भी अधिकांशतः एंटीबायोटिक अवशेषों की कोई जाँच नहीं होती है।
  • राज्य दुग्ध संघों द्वारा इकट्ठा किये गए दूध में उपस्थित एंटीबायोटिक अवशेषों की जाँच पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।

दुष्परिणाम:

  • हाल के वर्षों में खाद्य पदार्थों के उत्पादन में रसायनों के उपयोग में भारी वृद्धि देखी गई है।
  • खाद्य पदार्थों (जैसे-दूध आदि) में एंटीबायोटिक अवशेषों की उपस्थित से ‘एंटीबायोटिक प्रतिरोध’ (Antibiotic Resistance) जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

समाधान:

  • सरकार को डेयरी क्षेत्र में CIA और ‘सर्वाधिक प्राथमिकता वाले अति महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक’ (Highest Priority Critically Important Antimicrobials- HPCIA) के उपयोग को कम करने का प्रयास करना चाहिये।
  • दूध में एंटीबायोटिक अवशेषों के वर्तमान मानकों को संशोधित किया जाना चाहिये।
  • बगैर चिकित्सीय परामर्श के एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध के साथ बेहतर पशु प्रबंधन और किसानों में एंटीबायोटिक दवाओं के दुष्परिणामों के प्रति जागरूकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू