पंचायत चुनाओं हेतु न्यूनतम शिक्षा मानदंड | 02 Jan 2019

चर्चा में क्यों?


हाल ही में राजस्थान की नवनिर्वाचित कॉन्ग्रेस सरकार ने पंचायतों और नगरीय निकायों के चुनाव लड़ने हेतु आवश्यक न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के मानदंड को खत्म करने का फैसला लिया है। भारत जैसे देश में ऐसे फैसले का विशेष रूप से स्वागत किया जा रहा है क्योंकि विश्व की कुल निरक्षर आबादी का 35% हिस्सा भारत में है।

क्या थे मानदंड?

  • पंचायतों और नगरीय निकायों के चुनाव लड़ने हेतु आवश्यक न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के मानदंड पिछली सरकार द्वारा पेश किये गए थे। इन मानदंडों के अनुसार-

♦ ज़िला परिषद या पंचायत चुनाव में भाग लेने वाले उम्मीदवार की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता माध्यमिक स्तर की (दसवीं कक्षा) होनी चाहिये।
♦ सरपंच का चुनाव लड़ने के लिये सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार को आठवीं कक्षा उत्तीर्ण होना चाहिये।
♦ जबकि सरपंच का चुनाव लड़ने के लिये एससी/एसटी श्रेणी के उम्मीदवार को पाँचवीं कक्षा उत्तीर्ण होना चाहिये।

क्या रही है बहस?

  • 1928 में साइमन कमीशन को दिये गए ज्ञापन में भारतीय संविधान के जनक बी.आर. अंबेडकर ने कहा था, “जो लोग साक्षरता को मताधिकार हेतु परीक्षण के रूप में देखते हैं और इसे एक शर्त के रूप में लागू करने पर ज़ोर देते हैं, मेरी राय में वे दो गलतियाँ करते हैं। पहली गलती, उनका यह विश्वास कि एक अनपढ़ व्यक्ति आवश्यक रूप से मूर्ख होता है। उनकी दूसरी गलती यह मानने में है कि साक्षरता किसी व्यक्ति को आवश्यक रूप से निरक्षर व्यक्ति की तुलना में उच्च स्तर का बुद्धिमान या ज्ञानी बनाती है।”
  • किसी अच्छे राजनेता की परिभाषा अत्यधिक व्यक्तिपरक होती है और किसी व्यक्ति से अपेक्षित गुण भी बहुत अस्पष्ट होते हैं।
  • यदि विभिन्न लोगों से राजनेताओं के अंदर अपेक्षित गुणों के बारे में पूछा जाए तो विभिन्न उत्तर प्राप्त होते हैं। इन उत्तरों में से ईमानदारी, विश्वसनीयता, आम लोगों के साथ जुड़ने की क्षमता और संकटों से निपटने की ताकत सबसे अधिक अपेक्षित उत्तर हैं। हालाँकि, क्या यह मानने का कोई कारण है कि आधुनिक, शिक्षित राजनेता बेहतर नेता होंगे, खासकर स्थानीय स्तर पर?

आगे की राह


एक तरफ कई लोगों का यह मानना कि हालिया निर्णय कई मायनों में स्वागत योग्य निर्णय है। जबकि वहीं दूसरी तरफ, कई लोग पंचायत चुनावों हेतु न्यूनतम शैक्षिक मानदंड जैसे नियमों के साथ खड़े होते दिखाई देते हैं। किसी भी देश के राजनेता उस देश के समाज के प्रतिबिंब होते हैं। जैसा कि ‘व्हेन क्राइम पे: मनी एंड मसल इन इंडियन पॉलिटिक्स’ (When Crime Pays: Money And Muscle In Indian Politics by Milan Vaishnav) नामक पुस्तक कहती है, “किसी ऐसे देश में जहाँ आपराधिकता को एक चुनावी संपत्ति के रूप में देखा जाता हो, वहाँ लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का खंडन करने की बजाय अपराधियों द्वारा शासित होने से इनकार किया जाना चाहिये।

स्रोत- लाइव मिंट