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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

माली में सैन्य तख्तापलट

  • 26 Aug 2020
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

माली की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये:

माली में सैन्य तख्तापलट से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में माली में सेना ने तख्तापलट करते हुए राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर कीता (Ibrahim Boubacar Keita) और प्रधानमंत्री बुबौ सिसे (Boubou Cisse) को राजधानी बामको में गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद राष्ट्रपति ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि: वर्ष 2011 के लीबियाई संकट ने माली को अराजकता की ओर अग्रसर किया।
    • लीबिया से सहारा रेगिस्तान में हथियारों की आपूर्ति की गई जिससे उत्तरी माली में अलगाववादी संघर्ष को हवा मिली। इसका परिणाम यह हुआ कि यह संघर्ष एक इस्लामी जंग में परिवर्तित हो गया जिसने राजधानी बमाको (माली) में तख्तापलट कर दिया।
  • कारण: माली की समस्याओं के तीन निम्न अतिव्यापी समूह हैं:
    • मार्च 2020 के विवादित विधायी चुनावों से राजनीतिक संकट बढ़ गया।
    • आर्थिक ठहराव, भ्रष्टाचार और फिर COVID-19 महामारी द्वारा उत्पन्न जटिलताओं के कारण उपजे आर्थिक संकट से अत्यधिक कम भुगतान के कारण सैनिकों में पहले से असंतोष व्याप्त था।
    • आतंकवाद और जिहादियों एवं नागरिकों के खिलाफ होने वाली सैन्य कार्रवाईयों को नियंत्रित करने में हाथ लगी विफलता के कारण उपजा सुरक्षा संकट
  • सैन्य तख्तापलट:
    • यह पहले के सभी समझौतों का सम्मान करते हुए उन्हें लागू रखेगा, इसमें क्षेत्र में जिहाद विरोधी अभियानों को दिये गए माली के समर्थन के साथ-साथ देश के उत्तर में सशस्त्र समूहों और मालियन सरकार के बीच हुए वर्ष 2015 के शांति समझौते, जिसे अल्जीयर्स प्रक्रिया का नाम दिया गया है, का भी सम्मान करेगा।
      • माली में संयुक्त राष्ट्र के बहुआयामी एकीकृत स्थिरीकरण अभियान (United Nations Multidimensional Integrated Stabilization Mission in Mali- MINUSMA), फ्राँस का बर्कहेन बल, G5 साहेल (बुर्किना फासो, चाड, माली, मॉरिटानिया और नाइजर का संस्थागत ढाँचा), ताकुबा (एक यूरोपीयन स्पेशल फोर्स इनिशिएटिव) माली के भागीदार बने रहेंगे।
  • प्रतिक्रिया:
    • फ्राँस ने माली से नागरिक शासन को लागू करने का आग्रह करते हुए कहा है कि आतंकवादी समूहों के खिलाफ लड़ाई और लोकतंत्र की रक्षा एवं कानून का शासन अविभाज्य है।
      • माली के पूर्व औपनिवेशिक शासक फ्राँस के माली में कई हज़ार सैनिक तैनात हैं जो इस्लामी आतंकवादी समूहों से लड़ रहे हैं।
      • माली में प्रभावी विभिन्न जिहादी समूह अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट समूह से जुड़े हुए हैं, जो उत्तरी माली के रेगिस्तान में स्थित हैं, यहाँ से वे पड़ोसी देशों, खासकर बुर्किना फासो और नाइजर में फैले हुए हैं।
    • अफ्रीकी संघ ने माली को यह कहते हुए पहले ही निलंबित कर दिया था कि सैन्य तख्तापलट के मुद्दे अतीत का विषय हुआ करते थे इन्हें वर्तमान समय में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
    • पश्चिम अफ्रीकी राज्यों (Economic Community of West African States-ECOWAS) के 15-सदस्यीय आर्थिक समुदाय ने भी अपनी-अपनी सीमाओं को बंद करके, माली के साथ होने वाले वित्तीय लेन-देन को निलंबित करते हुए इसे निर्णायक निकायों से बाहर निकालते हुए माली के खिलाफ तीव्र कार्रवाई की है।
    • संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने सभी सरकारी अधिकारियों की तत्काल रिहाई और संवैधानिक व्यवस्था की बहाली की मांग की है।

माली गणराज्य

  • माली पश्चिमी अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में फैला एक विशाल देश है।
  • एक समय कई पूर्व-औपनिवेशिक साम्राज्यों का निवास स्थान रहा यह स्थलाबद्ध अफ्रीकी देश इस महाद्वीप के सबसे बड़े देशों में से एक है। यह दुनिया के सबसे गरीब राष्ट्रों में से एक है।
  • वर्ष 1960 में फ्राँस से स्वतंत्रता मिलने के बाद माली ने वर्ष 1992 के लोकतांत्रिक चुनावों तक सूखा, विद्रोह, तख्तापलट और 23 साल की सैन्य तानाशाही का कष्ट सहा है।
    • इसने कई सैन्य शासनों का भी अनुभव किया है, वर्तमान में यह जिहादी हमलों और जातीय हिंसा से जूझ रहा है।
  • राजधानी: बमाको।
  • जनसंख्या: लगभग 19 मिलियन।
  • क्षेत्रफल: 1.25 मिलियन वर्ग किमी।
  • प्रमुख भाषाएँ: फ्रेंच, बाम्बारा, बर्बर और अरबी।
  • धर्म: इस्लाम और स्वदेशी मान्यताएँ।
  • मुद्रा: कम्यूनायट फाइनेंसियर अफ्रीका (Communaute Financiere Africaine) फ्रैंक।

आगे की राह

  • स्पष्ट रूप से नवीनतम सैन्य तख्तापलट सुरक्षा चुनौतियों के संदर्भ में ही नहीं बल्कि भ्रष्टाचार, विवादित चुनावों और राजनीतिक धारा के प्रति एक प्रतिक्रिया है। हालाँकि सैन्य तख्तापलट से इनमें से किसी भी समस्या का समाधान संभव नहीं है।
  • माली की इस स्थिति से एक चिर-परिचित सच्चाई अवश्य उजागर होती है कि भले ही विदेशी हस्तक्षेप के अपने लाभ हों, लेकिन माली जैसे राष्ट्र की स्थिति में सुधार करने की क्षमता इसके अपने हाथों में है, देश की बिगड़ती स्थिति को ठीक करने का एक मात्र विकल्प देश के लड़खड़ाते लोकतांत्रिक संस्थानों को साथ लेकर चलने में ही है।

स्रोत: द हिंदू

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