माइक्रोक्रेडिट मॉडल | 28 Aug 2019

चर्चा में क्यों?

माइक्रोक्रेडिट (Microcredit) ने समाज में गरीबों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिये एक उपकरण के रूप में बहुत अधिक ख्याति प्राप्त की है, परंतु विशेषज्ञों के अनुसार इस मॉडल की कुछ खामियाँ भी हैं, जिन्हें दूर कर इसे और बेहतर बनाया जा सकता है।

माइक्रोक्रेडिट का अर्थ

  • माइक्रोक्रेडिट का तात्पर्य छोटे उधारकर्त्ताओं को कम मात्रा में ऋण उपलब्ध कराना है ताकि वे उस पूँजी का उपयोग स्व-रोज़गार करने तथा अपने व्यवसाय को और अधिक मज़बूत करने के लिये कर सकें।
  • माइक्रोक्रेडिट के रूप में दिया जाने वाला ऋण अक्सर ऐसे लोगों को दिया जाता है जिनके पास या तो गिरवी रखने के लिये कुछ नहीं होता है या आय का कोई स्थिर स्रोत नहीं होता है।
  • माइक्रोक्रेडिट का मुख्य विचार यह है कि एक छोटा ऋण उन लोगों को बड़ी अर्थव्यवस्था तक पहुँच प्रदान करेगा जो आम तौर पर उन संस्थानों के दायरे से बाहर रहते हैं जिन पर मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है।
  • छोटे उत्पादकों को उत्पादन गतिविधियों को शुरू करने हेतु सक्षम बनाने के उद्देश्य से ऐसा ऋण दिया जाता है, जिसके बाद उत्पादक स्वयं को स्थापित करने में सक्षम होगा और धीरे-धीरे ऋण को चुका देगा।
  • कभी-कभी माइक्रोक्रेडिट लेते समय लिखित समझौता भी नहीं किया जाता है, क्योंकि इस प्रकार का ऋण लेने वाले अधिकतर लोग निरक्षर होते हैं।

माइक्रोफाइनेंस का ही है हिस्सा

  • माइक्रोक्रेडिट, माइक्रोफाइनेंस का ही हिस्सा है। माइक्रोफाइनेंस का अर्थ है ऐसे व्यक्तियों तक वित्तीय सेवाएँ पहुँचाना, जिनके पास पारंपरिक रूप से वित्त तक पहुँच नहीं है।
  • माइक्रोफाइनेंस गतिविधियाँ आमतौर पर कम आय वाले व्यक्तियों को लक्षित करती हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद करती हैं। इस तरह माइक्रोफाइनेंस गतिविधियों का एक उद्देश्य गरीबी उन्मूलन भी है।
  • माइक्रोक्रेडिट संस्था का एक उदाहरण बांग्लादेश स्थित ग्रामीण बैंक (Grameen Bank) है, जिसकी स्थापना वर्ष 1976 में मोहम्मद यूनुस ने की थी। इस बांग्लादेशी बैंक ने अब तक 8.4 मिलियन लोगों को माइक्रोक्रेडिट उपलब्ध कराया है और इनमें से 97 प्रतिशत महिलाएँ हैं।

भारत में क्यों असफल हो रही हैं माइक्रोक्रेडिट संस्थाएँ?

  • एक अध्ययन में 6 संकेतकों (घरेलू व्यापार लाभ, व्यापार व्यय, व्यापार राजस्व, उपभोग, उपभोक्ता द्वारा किये जाने वाला खर्चा और प्रलोभन के सामान पर खर्च) के आधार पर यह कहा गया था कि माइक्रोक्रेडिट तक पहुँच के बाद भी उधारकर्त्ताओं के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि माइक्रोक्रेडिट का भारत में असफल होने का मुख्य कारण भारतीय माइक्रोक्रेडिट संस्थाओं द्वारा बनाए गए कड़े पुनर्भुगतान नियम हैं।
  • चूँकि माइक्रोक्रेडिट संस्थाएँ जिन लोगों को ऋण देती हैं उनमें से अधिकतर के पास न तो कोई ऋण भुगतान संबंधी इतिहास होता है और न ही आय का कोई स्थिर स्रोत होता है, इसीलिये माइक्रोक्रेडिट संस्थाओं के समक्ष जोखिम को पहचानने की बड़ी चुनौती होती है।
  • डिफॉल्ट के जोखिम से बचने के लिये माइक्रोक्रेडिट संस्थाओं ने ऐसी नीति का निर्माण किया है, जिसके तहत भुगतान की कुछ राशि की तत्काल मांग की जाती है। इसका प्रभाव यह होता है कि उधारकर्त्ता पूर्ण रूप से अपनी राशि का निवेश नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण उनकी आय में भी अल्प वृद्धि होती है।

निष्कर्ष

  • माइक्रोक्रेडिट गरीबी उन्मूलन का एक प्रमुख साधन है और इसकी सहायता से आर्थिक विकास की रफ्तार को काफी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है, परंतु मौजूदा प्रणाली में कई खामियाँ हैं जिनकी वजह से अब तक इस मॉडल का पूर्ण लाभ नहीं प्राप्त हुआ है। अतः हमें इस प्रणाली में सुधारों की आवश्यकता है ताकि इस मॉडल का पूरा लाभ प्राप्त किया जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस