श्रम पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा मनरेगा की प्रशंसा | 13 Feb 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा और कल्याण के उपाय’ संबंधी अपनी रिपोर्ट में श्रम पर संसदीय स्थायी समिति ने अंतर-राज्य प्रवासी मज़दूरों समेत सभी ग्रामीण अकुशल श्रमिकों को स्थायी आजीविका प्रदान करने के लिये ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) की प्रशंसा की है।
प्रमुख बिंदु
स्थायी समिति का अवलोकन
- मनरेगा
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 के तहत विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण कल्याणकारी प्रावधान किये गए हैं।
- मनरेगा के अतिरिक्त अकुशल श्रमिकों को ‘स्थायी आजीविका’ प्रदान करने के लिये कोई ‘बेहतर योजना’ नहीं हो सकती है।
- 7 करोड़ से अधिक परिवार (10.43 करोड़ व्यक्ति) पहले ही इस योजना का लाभ प्राप्त कर चुके हैं और चालू वित्त वर्ष के दौरान फरवरी 2021 तक कुल 330 करोड़ मानव दिवस सृजित किये गए हैं।
- प्रवासी श्रमिक
- महामारी के दौरान 1.08 करोड़ प्रवासी श्रमिक अपने गृह राज्य वापस लौटे हैं।
- प्रवासी श्रमिकों की संख्या पर विश्वसनीय और प्रामाणिक डेटा की अनुपलब्धता के कारण महामारी के प्रकोप के बाद उनके गृह राज्यों में वापस जाने से उनके राहत और पुनर्वास उपायों पर प्रभाव पड़ा है।
- सरकार द्वारा महामारी के दौरान कई सराहनीय पहलों (जैसे- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना) की शुरुआत की गई, जिनका उद्देश्य प्रवासी श्रमिकों को लाभ पहुँचाना है।
- हालाँकि फँसे हुए प्रवासी मज़दूरों को राहत सामग्री के वितरण के लिये कोई विशिष्ट दिशा-निर्देश नहीं जारी किये गए।
- सोशल ऑडिट की कोई व्यवस्था नही की गई है।
स्थायी समिति के सुझाव
- तात्कालिक राहत
- कोरोना वायरस महामारी, उसके कारण उत्पन्न चुनौतियों और स्वास्थ्य प्रणाली में मौजूद खामियों को जल्द-से-जल्द दूर किया जाना चाहिये, ताकि भविष्य में ऐसी किसी भी परिस्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये तैयारियों को मज़बूती के साथ किया जा सके।
- तत्परता के लिये विश्वसनीय डेटाबेस की आवश्यकता
- असंगठित श्रमिकों का विश्वसनीय डेटाबेस विशेष रूप से प्रवासी मज़दूरों से संबंधित डेटाबेस राहत संकट के समय राहत पैकेजों के वितरण की व्यवस्था को सुगम बनाने में महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
- दिसंबर 2020 में सरकार ने अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से संबंधित श्रमिकों सहित प्रवासी श्रमिकों का एक डेटाबेस बनाने का निर्णय लिया था।
- असंगठित श्रमिकों का विश्वसनीय डेटाबेस विशेष रूप से प्रवासी मज़दूरों से संबंधित डेटाबेस राहत संकट के समय राहत पैकेजों के वितरण की व्यवस्था को सुगम बनाने में महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS)
- यह विश्व में सबसे बड़े रोज़गार गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
लॉन्च
- इसे 2 फरवरी, 2006 को लॉन्च किया गया था।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम को 23 अगस्त, 2005 को पारित किया गया था।
उद्देश्य
- योजना का प्राथमिक उद्देश्य प्रत्येक वित्तीय वर्ष में ग्रामीण परिवार के ऐसे वयस्क सदस्यों को सार्वजनिक अकुशल कार्य के लिये 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देना है।
कार्य का कानूनी अधिकार
- पूर्व की रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत इस अधिनियम का उद्देश्य अधिकार आधारित ढाँचे के माध्यम से गरीबी जैसे गंभीर विषयों को संबोधित करना है।
- इसमें कम-से-कम एक-तिहाई महिला लाभार्थी होना अनिवार्य है।
- न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के तहत राज्य में खेतिहर मज़दूरों के लिये निर्दिष्ट वैधानिक न्यूनतम मज़दूरी के अनुसार, मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिये।
मांग-संचालित योजना
- मनरेगा के डिज़ाइन का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा किसी भी ग्रामीण वयस्क को मांग के 15 दिनों के भीतर काम पाने की कानूनी रूप से समर्थित गारंटी प्रदान करना है, इसमें विफल रहने पर 'बेरोज़गारी भत्ता' दिये जाने का भी प्रावधान है।
- यह मांग-संचालित योजना श्रमिकों के आत्म-चयन को सक्षम बनाती है।
विकेंद्रित नियोजन
- कार्यों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में पंचायती राज संस्थानों (PRI) को महत्त्वपूर्ण भूमिका देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया गया है।
- यह अधिनियम ग्राम सभाओं को उन कार्यों की सिफारिश करने के लिये बाध्य करता है जिन्हें किया जाना शेष है, साथ ही कम-से-कम 50% कार्यों को उनके द्वारा निष्पादित किया जाना अनिवार्य है।
आगे की राह
- महामारी ने विकेंद्रीकृत शासन के महत्त्व को प्रदर्शित किया है।
- कार्यों को मंज़ूरी, मांग के अनुसार काम देने और समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिये ग्राम पंचायतों को पर्याप्त संसाधन, शक्ति व उत्तरदायित्त्व प्रदान किया जाने की आवश्यकता है।
- सामाजिक ऑडिट प्रदर्शन की जवाबदेही तय करता है, विशेष तौर पर तात्कालिक हितधारकों के प्रति। इसलिये ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी नीतियों और उपायों के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।