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भारत की मेथनॉल अर्थव्यवस्था : विकास का नया रूप

  • 29 Dec 2017
  • 13 min read

चर्चा में क्यों ?

परंपरागत रूप से उच्च तापमान पर मीथेन को हाइड्रोजन गैस एवं कार्बन मोनोऑक्साइड के रूप में परिवर्तित करके मेथनॉल का निर्माण किया जाता है। इसके पश्चात् इन सभी को दूसरी अत्यधिक दबाव वाली प्रक्रिया में एक अलग क्रम में पुन: संयोजित किया जाता है। इस अत्यधिक ऊर्जा गहन (Energy Intensive) एवं महँगी प्रक्रिया को 'स्टीम रिफॉर्मिंग' (Steam Reforming) प्रक्रिया तथा ‘मेथनॉल सिंथेसिस’ (Methanol Synthesis) प्रक्रिया कहा जाता है। इसे पेट्रोल के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। इस संबंध में ऐसा माना जा रहा है कि मेथनॉल बनाने की इस नई प्रणाली का इस्तेमाल रसायनों और प्लास्टिक बनाने के लिये भी किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • यह न केवल लागत में बहुत सस्ता है, बल्कि इसका पेट्रोल की अपेक्षा पर्यावरण के अनुकूल होने का भी वादा किया जा रहा है। 
  • वर्तमान में मीथेन को सर्वप्रथम तरल प्राकृतिक गैस (Liquid Natural Gas) के रुप में संघनित किया जाता है, तत्पश्चात् इसे दबाव वाले कंटेनरों (Pressurised Containers) में भरा जाता है। 
  • इस नई खोज ने इस संबंध में एक नए मार्ग को प्रशस्त किया है। वह स्थान जहाँ इसे सबसे पहले खोजा जाता है, वहीं पर प्राकृतिक गैस को मेथनॉल में परिवर्तित करते हुए सामान्य वायुमंडलीय स्थितियों में इसे तरल रूप में पाइप में भरा जा सकता है।
  • वर्तमान में भारत को प्रतिवर्ष तकरीबन 2900 करोड़ लीटर पेट्रोल और 9000 करोड़ लीटर डीज़ल की आवश्‍यकता है। 
  • ईंधन खपत के संदर्भ में भारत विश्‍व में छठा सबसे बड़ा उपभोक्‍ता देश है। 
  • एक अनुमान के अनुसार, यह खपत वर्ष 2030 तक दोगुनी हो जाएगी और भारत तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्‍ता बन जाएगा।  
  • हाइड्रोकार्बन ईंधन ने ग्रीनहाउस गैस उत्‍सर्जन (जीएचजी) सहित पर्यावरण को भी विपरीत रूप से प्रभावित किया है। दिल्‍ली जैसे शहरों में लगभग 30% प्रदूषण ऑटोमोबाइल से उत्सर्जित होता है। सड़कों पर ऑटोमोबाइलों की बढ़ती संख्‍या प्रदूषण को और भी विकृत रूप प्रदान कर रही है। 

मेथनॉल का निर्माण कैसे किया जाता है? 

  • सर्वप्रथम मीथेन, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन पेरोक्साइड (Hydrogen Peroxide) के बीच रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू करने के लिये सोने के नैनो-कणों का उपयोग कर मेथनॉल का निर्माण किया गया था। 
  • इसके लिये 50 डिग्री सेल्सियस (122 डिग्री फारेनहाइट) से अधिक तापमान की आवश्यकता नहीं होती है।
  • हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा मेथनॉल (Methanol) के निर्माण का एक नया तरीका खोजा गया है। मेथनॉल का इस्तेमाल वाहनों में ईंधन के रूप में किया जाता है। 
  • वैज्ञानिकों द्वारा हवा में ऑक्सीजन का उपयोग करते हुए एक ऐसी तकनीक का निर्माण किया गया है, जिसका प्रयोग हरित औद्योगिक प्रक्रियाओं (Greener Industrial Processes) के संबंध में किया जा सकता है।

मेथनॉल की विशेषताएँ

  • मेथनॉल एक हल्का, वाष्पशील, रंगहीन, ज्वलनशील द्रव होता  है। 
  • यह सबसे सरल अल्कोहल होता  है। 
  • यह जैव ईंधन के उत्पादन में बेहद उपयोगी होता है। 
  • यह एक कार्बनिक यौगिक है, इसे काष्ठ अल्कोहल भी कहते हैं। 
  • यह प्राकृतिक गैस, कोयला एवं विभिन्न प्रकार के पदार्थों से बनता है।  इसके दहन से कार्बन का उत्सर्जन कम होता है, इसलिये यह बेहद पर्यावरण हितेषी होता है।
  • यह स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होने वाला पदार्थ होता है।  मेथनॉल का निर्माण कृषि उत्पादों, कोयला एवं नगरपालिका के कचरे से भी किया जा सकता है।  
  • यह जल परिवहन के लिये एक भरोसेमंद ईंधन है क्योंकि यह स्वच्छ, जीवाश्म ईंधन की तुलना में सस्ता तथा भारी ईंधन का एक अच्छा विकल्प है।

मेथनॉल ही क्‍यों?

  • मेथनॉल ईंधन में विशुद्ध ज्‍वलन कण विद्यमान होते हैं जो परिवहन में पेट्रोल और डीज़ल दोनों और रसोई ईंधन में एलपीजी, लकड़ी एवं मिट्टी तेल का स्थान ले सकता है। 
  • यह रेलवे, समुद्री क्षेत्र, जेनसेट्स, पावर जेनरेशन में डीज़ल को भी प्रतिस्‍थापित कर सकता है और मेथनॉल आधारित संशोधक हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लिये आदर्श पूरक हो सकते हैं।
  • मेथनॉल अर्थव्‍यवस्‍था संपूर्ण ‘हाइड्राजेन आधारित ईंधन प्रणालियों’ के सपने के लिये ‘सेतु’ है।
  • मेथनॉल का गैसीय रूप-डीएमई को एलपीजी के साथ मिलाया जा सकता है और यह बड़ी बसों और ट्रकों में डीज़ल के लिये बेहतर पर्याय हो सकता है।
  • पेट्रोल में मेथनॉल 15 (एम 15) प्रदूषण को 33% तक कम करेगा और मेथनॉल द्वारा डीज़ल प्रतिस्‍थान 80% से अधिक प्रदूषण कम करेगा।
  • मेथनॉल को प्राकृतिक गैस, इंडियन हाई ऐश कोल, बायो-मास, स्‍ट्रैंडेड और फ्लेर्ड गैसों से बनाया जा सकता है और भारतीय कोयले और सभी अन्‍य फीडस्‍टोक से 19 रु. प्रति लीटर की दर से मेथनॉल के उत्‍पादन (उचित प्रौद्योगिकी संयोजन के माध्‍यम से) को प्राप्‍त किया जा सकता है। 
  • विश्‍व का बेहतर हिस्‍सा कार्बन-डाइआक्‍साइड से नवीकरणीय मेथनॉल की दिशा में पहले ही जा रहा है।

मेथनॉल के संदर्भ में वैश्विक परिदृश्‍य

  • पिछले कुछ वर्षों के दौरान, ईंधन के रूप में मेथनॉल और डीएमई का उपयोग काफी बढ़ा है। मेथनॉल मांग में  सालाना रूप से तकरीबन 6 से 8% तक की वृद्धि हो रही है। 
  • विश्‍व ने मेथनॉल की 120 एमटी की क्षमता संस्‍थापित की है और वर्ष 2025 तक इसके लगभग 200 एमटी होने की संभावना है।
  • वर्तमान में चीन के परिवहन ईंधन का लगभग 9 प्रतिशत भाग मेथनॉल से कवर होता है। चीन ने अपने लाखों वाहनों को मेथनॉल आधारित वाहनों के रूप में परिवर्तित किया है। अकेला चीन विश्‍व मेथनॉल के 65 प्रतिशत हिस्से का उत्‍पादन करता है। 
  • इज़रायल और इटली ने भी पेट्रोल के साथ मेथनॉल के 15 प्रतिशत के मिश्रण कार्यक्रम को अपनाया है और यह तेज़ी से एम 85 और एम 100 की ओर बढ़ रहा है। 
  • जापान और कोरिया भी मेथनॉल और डीएमई का उपयोग कर रहे हैं।
  • इसके अलावा आस्‍ट्रेलिया द्वारा जीईएम ईंधन (गैसोलीन, एथेनॉल और मेथनॉल को अपनाया है) को अपनाया गया है। इसमें 50 प्रतिशत से अधिक मेथनॉल मिश्रित किया जाता हैं।
  • 1500 से ज़्यादा लोगों को ढोने वाले बड़े यात्री जहाज़ पहले ही 100 प्रतिशत मेथनॉल पर कार्य कर रहे हैं।
  • इसके अतिरिक्त 11 अफ्रीकी और कई कैरेबियन देशों द्वारा भी मेथनॉल को रसोई ईंधन के रूप में अपनाया गया है। 
  • पूरे विश्‍व में जेनसेट और औद्योगिक बॉयलर भी डीज़ल की बजाए मेथनॉल पर कार्य कर रहे हैं।

भारत के संदर्भ में

  • भारत ने 2 एमटी प्रतिवर्ष की मेथनॉल उत्‍पादन क्षमता संस्‍थापित की है। नीति आयोग द्वारा तैयार की गई योजना के अनुसार, इंडियन हाई ऐश कोल, स्‍ट्रैंडेड गैस और बायो-मास का उपयोग करके वर्ष 2025 तक वार्षिक रूप से 20 एमटी मेथनॉल का उत्‍पादन किया जा सकता है। 
  • नीति आयोग ने वर्ष 2030 तक अकेले मेथनॉल द्वारा 10 प्रतिशत कच्चे तेल के आयात के प्रतिस्थापन के लिये एक योजना (रोड मैप) तैयार की है। इसके लिये लगभग 30 एमटी मेथनॉल की आवश्‍यकता होगी। 
  • मेथनॉल और डीएमई पेट्रोल और डीज़ल से काफी हद तक सस्‍ते होते हैं।

नीति आयोग की योजना (रोड मैप) में निम्‍नलिखित मुद्दों को शामिल किया गया है:-

  • देशी प्रौद्योगिकी से इंडियन हाई ऐश कोल से बड़ी मात्रा में मेथनॉल का उत्‍पादन और क्षेत्रीय उत्‍पादन कार्य-नीतियों को अपनाना और बड़ी मात्रा में 19 रुपए प्रति लीटर की दर से मेथनॉल का उत्‍पादन। 
  • भारत कोयले के उपयोग को पूर्णत: पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिये और सीओपी 21 के प्रति हमारी प्रतिबद्धताओं के लिये कार्बन डाइआक्‍साइड को पकड़ने की प्रौद्योगिकी को अपनाएगा।
  • मेथनॉल उत्‍पादन के लिये बायो-मास, स्‍ट्रैंडेड गैस और एमएसडब्‍ल्‍यू फीडस्‍टोकों से लगभग 40% मेथनॉल उत्‍पादन हो सकता है। 
  • मेथनॉल और डीएमई का परिवहन - रेल, सड़क, समुद्री और रक्षा में मेथनॉल का उपयोग।
  • औद्योगिक बॉयलर, डीजल जेनसेट्स और पावर जेनरेशन और मोबाइल टावर अन्‍य अनुप्रयोग हैं।
  • मेथनॉल और डीएमई का घरेलू रसोई ईंधन – रसोई स्टोव के रूप में उपयोग। 
  • एलपीजी = डीएमई मिश्रण कार्यक्रम।
  • मैरीन, जेनसेट्स और परिवहन में फ्यूल सेल एप्‍लीकेशंस में मेथनॉल का उपयोग।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश के समक्ष वर्ष 2022 तक कच्‍चे तेल के आयात बिल को 10% तक कम करने का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, साथ ही इसके कारण विश्‍व के साथ हमारी मोल-भाव की शक्‍ति पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मेथनॉल अर्थव्यवस्था आयात प्रतिस्थापन के साथ-साथ भारत को उसके कोयले के विशाल भंडार का उपयोग करने में मदद करेगी। भारत वर्तमान में सऊदी अरब और ईरान से मेथनॉल आयात करता है। मेथनॉल दुनिया के कई हिस्सों में इस्तेमाल होने वाला एक अच्छा ईंधन है। अधिकांश देशों में यह प्राकृतिक गैस से बनता है, जबकि भारत में यह स्थानीय रूप से उपलब्ध कोयले से प्राप्त हो सकता है। कार्बन डाइऑक्साइड को मेथनॉल में परिवर्तित करने का अनुसंधान आशाजनक है और यह मेथनॉल अर्थव्यवस्था के लिये खेल-परिवर्तक (गेम चेंजर) हो सकता है। कोयले से एथनॉल बनाया जा सकता है, इस बारे में ओडिशा के तालचर में एक पायलट परियोजना पहले से ही चलाई जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक भारत कच्चे तेल के आयात पर प्रत्येक वर्ष 6 लाख करोड़ रुपए खर्च करता है।

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