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जैव विविधता और पर्यावरण

मीथेन शमन और मूल्यवर्द्धन

  • 13 Mar 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

मीथेन-ऑक्सीकारक बैक्टीरिया

मेन्स के लिये:

मेथनोट्राॅफिक बैक्टीरिया

चर्चा में क्यों?

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology- DST) के स्वायत्त संस्थान अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (Scientists at Agharkar Research Institute- ARI) पुणे के वैज्ञानिकों ने मेथनोट्राॅफिक बैक्टीरिया (Methanotrophic Bacteria) के विभिन्न प्रकार के 45 स्ट्रेंस (Strains) का पता लगाया है जो चावल के पौधों से उत्सर्जन मीथेन को कम करने में सक्षम हैं।

मुख्य बिंदु:

  • वैज्ञानिकों ने मेथनोट्राॅफ के 45 अलग-अलग स्ट्रेंस (यह जीव विज्ञान में निम्न स्तर की प्रजातीय-वर्गीकरण श्रेणी है जिसका उपयोग एक ही प्रजाति के वर्गीकरण में किया जाता है ) को पृथक एवं संवर्द्धित कर पहली स्वदेशी मेथनोट्राॅफ-कल्चर का निर्माण किया है।

Value-Addition

  • वैज्ञानिकों ने पाया कि इन स्ट्रेंस की उपस्थिति से पौधों द्वारा मीथेन उत्सर्जन में कमी आई तथा पौधे के विकास में इसका सकारात्मक या निष्क्रिय प्रभाव पड़ा है। इन सूक्ष्म जीवों को धान के पौधों में स्थापित किया जा सकता है तथा ये सूक्ष्म जीव मिथेन उत्सर्जन को कम करने में सहायक हो सकते हैं।

बैक्टीरिया की क्रिया-विधि:

  • मेथनोट्राॅफिक बैक्टीरिया उपापचयन की क्रिया द्वारा मीथेन को कार्बन-डाइऑक्साइड में परिवर्तित करते हैं तथा प्रभावी रूप से मीथेन के उत्सर्जन में कमी लाते हैं। ये मेथनोट्राॅफ धान के खेतों में पौधे की जड़ों तथा जल युक्त क्षेत्रों में सक्रिय रहते हैं।
  • इससे चावल के खेतों से मीथेन शमन के लिये माइक्रोबियल इनोकुलेंट्स का विकास किया जा सकता है।

माइक्रोबियल इनोकुलेंट्स (Microbial Inoculants):

  • वर्तमान कृषि पद्धतियाँ रासायनिक आगतों जैसे- उर्वरक, कीटनाशक, शाकनाशी आदि पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।
  • माइक्रोबियल इनोकुलेंट्स का तात्पर्य उन लाभदायक सूक्ष्मजीवों से है जो सतत् कृषि की दिशा में मिट्टी के पारिस्थितिक तंत्र को सुधारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • माइक्रोबियल इनोकुलेंट्स पर्यावरण के अनुकूल होते हैं तथा रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के संभावित विकल्प हो सकते हैं।
  • ये सूक्ष्मजीव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से माइक्रोबियल गतिविधि को बढ़ाकर मिट्टी की पोषकता में वृद्धि करते हैं।
  • ये पादप-वृद्धिकारक (Phyto-Stimulants), जैव-उर्वरक (Bio-Fertilizers), सूक्ष्मजीवीय (Microbial Bio-Control) जैव-नियंत्रक हो सकते हैं।
  • ये विभिन्न रोगजनकों से फसल को सुरक्षा प्रदान करते हैं तथा प्रभावी जैव-उर्वरक हैं ।

धान की फसल एवं मीथेन:

  • धान के खेतों में लंबे समय तक जल जमाव के कारण कार्बनिक तत्त्वों के अवायवीय विघटन होता है तथा मीथेन गैस बनती है।
  • धान के खेत ‘वैश्विक मीथेन उत्सर्जन’ में 10 प्रतिशत का योगदान करते है। मीथेन दूसरी प्रमुख ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas- GHG) है तथा कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 26 गुना अधिक खतरनाक होती है।

शोध का महत्त्व:

  • मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने की दिशा में मेथेनोट्रॉप्स उत्कृष्ट मॉडल साबित हो सकता है।
  • अपशिष्ट से प्राप्त बायो-मीथेन को मेथेनोट्रॉप्स द्वारा बायो-डीज़ल जैसे उपयोगी उत्पादों में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • इस शोध से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने में सहायता मिलेगी।

स्रोत: PIB

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