मणिपुर और त्रिपुरा का विलय | 17 Oct 2019
प्रीलिम्स के लिये:
मणिपुर और त्रिपुरा राज्य की अवस्थिति और भौगोलिक विशेषताएँ
मेन्स के लिये:
भारत का एकीकरण और उनसे संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
15 अक्तूबर, 2019 को भारत के दो उत्तर-पूर्वी राज्यों (मणिपुर और त्रिपुरा) में यह तर्क देते हुए बंद का आह्वान किया गया कि भारत में इन राज्यों का विलय राज्य के प्रतिनिधियों से परामर्श किये बिना ही कर दिया गया था।
मुख्य बिंदु
- गैरकानूनी विद्रोही समूहों, अलायंस फॉर सोशलिस्ट यूनिटी कंगलिपक (Alliance for Socialist Unity Kangleipak- ASUK) और नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (National Liberation Front of Tripura- NLFT) ने त्रिपुरा और मणिपुर में 15 अक्तूबर, 2019 को दो उत्तर-पूर्वी राज्यों को बंद का आह्वान इस तर्क के साथ किया था कि इन दोनों राज्यों को "विलय के तहत" भारतीय संघ में मिला दिया गया था।
- NLFT पर वर्ष 1997 में गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम और फिर आतंकवाद निरोधक अधिनियम (Prevention of Terrorism Act- POTA) 2002 के तहत प्रतिबंध लगाया गया था।
भारत में मणिपुर का विलय
- 15 अगस्त, 1947 से पहले शांतिपूर्ण वार्ता के ज़रिये ऐसे लगभग सभी राज्यों, जिनकी सीमाएँ भारतीय संघ के साथ लगती थीं, को एकजुट कर लिया गया था।
- अधिकांश राज्यों के शासकों ने ‘परिग्रहण के साधन (Instrument of Accession)’ नामक एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किये, जिसका अर्थ था कि उनका राज्य भारत संघ का हिस्सा बनने के लिये सहमत हो गया था।
- आज़ादी के समय मणिपुर के महाराजा बोधचंद्र सिंह ने मणिपुर की आंतरिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिये विलयपत्र पर हस्ताक्षर किये थे।
- जनमत के दबाव में, महाराजा ने जून 1948 में मणिपुर में चुनाव कराए और राज्य एक संवैधानिक राजतंत्र बन गया। इस प्रकार मणिपुर चुनाव कराने वाला भारत का पहला भाग था।
- मणिपुर की विधान सभा में विलय को लेकर अत्यधिक मतभेद थे। भारत सरकार ने सितंबर 1949 में मणिपुर की विधान सभा के परामर्श के बिना एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर कराने में सफलता प्राप्त की थी।
भारत में त्रिपुरा का विलय
- 15 नवंबर, 1949 को भारतीय संघ में विलय होने तक त्रिपुरा एक रियासत थी।
- 17 मई, 1947 को त्रिपुरा के अंतिम महाराजा बीर बिक्रम सिंह के निधन के पश्चात् महारानी कंचनप्रभा (महाराजा बीर बिक्रम की पत्नी) ने त्रिपुरा राज्य का प्रतिनिधित्व संभाला।
- भारतीय संघ में त्रिपुरा राज्य के विलय में उन्होंने सहायक की भूमिका निभाई थी।
गैरकानूनी समूहों के तर्क
- दोनों राज्यों के अक्षम अधिकारियों द्वारा ड्यूरेस के तहत विलय समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- एक निर्वाचित विधायिका और सरकार की स्थापना के बाद मणिपुर का राजा राज्य में नाममात्र का शासक रह गया था।
- एकपक्षीय विलय के बाद त्रिपुरा रियासत में महारानी कंचनप्रभा की भूमिका हमेशा संदेहास्पद रही।
- कुछ समूहों द्वारा यह तर्क भी दिया जाता है कि इन दोनों राज्यों का विलय अनुचित तरीके से किया गया था।