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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सिरेमिक फिल्टर (Ceramic filters) और झिल्ली

  • 21 Jun 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-उत्तर पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (Council of Scientific & Industrial Research-North East Institute of Science and Technology-CSIR-NEIST), जोरहाट के वैज्ञानिकों ने मिट्टी, धूल (Stone Dust) और चायपत्ती (अपशिष्ट) के मिश्रण से एक सिरेमिक झिल्ली विकसित की है जो कपड़ा उद्योग में रंगाई के उपरांत निकलने वाले अपशिष्ट रंगीन जल से रंगों को हटा सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • यह अध्ययन बुलेटिन ऑफ मैटेरियल साइंस (Bulletin of Material Science) में प्रकाशित हुआ।
  • सिरेमिक फिल्टर (Ceramic filters) और झिल्ली का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जाता है जैसे-खाद्य और पेय, दवा व रसायन, अपशिष्ट पुनर्चक्रण उद्योग आदि।
  • सेरेमिक झिल्लियाँ सतत् सफाई, कठोर ऑपरेटिंग वातावरण (Harsh Operating Environments) और जहाँ अपशिष्ट के निरंतर प्रवाह वाली परिस्थितियों में सुचारू रूप से कार्य करती है।
  • उन्हें पुनर्चक्रित भी किया जा सकता है एवं जलीय और गैर-जलीय दोनों प्रकार के विलयनों के पृथक्करण में इनका उपयोग किया जा सकता है।
  • ये फिल्टर पेट्रोकेमिकल संबंधी प्रक्रियाओं (Petrochemical Processing) में विशेष रूप से प्रयुक्त होते हैं, जहाँ कार्बनिक झिल्ली का उपयोग करना संभव नहीं है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस नई झिल्ली में उच्च ताप और रासायनिक प्रभावों को झेलने की क्षमता है। यह झिल्ली मुख्य रूप से पानी में घुले दो रंगों- मिथाइलीन ब्लू (Methylene Blue) और कांगो रेड (Congo Red) को अलग करने में सक्षम है। इसमें मिथाइलीन ब्लू एक विषैला डाई/रंजक है, जबकि कांगो रेड एक कैंसरकारक पदार्थ है।
  • इस्तेमाल की जा चुकी झिल्ली को उच्च ताप पर 30 मिनट तक पर गर्म करके पुनः उपयोग में लाया जा सकता है इस परिस्थिति में इसकी दक्षता थोड़ी-सी कम हो जाती है।
  • इस झिल्ली का आधार बनाने में असम के गोलाघाट ज़िले के ढेकियाल क्षेत्र की मिट्टी का उपयोग किया गया है (पारंपरिक रूप से इस मिटटी का उपयोग ग्रामीण कुम्हारों द्वारा गन्ने से निर्मित गुड़ के भंडारण हेतु घड़े बनाने में किया जाता है) जो इसको सुनम्यता (Plasticity) प्रदान करती है। धूल (Stone Dust) को सुदृढीकरण सामग्री के रूप में तथा अपशिष्ट चायपत्ती का प्रयोग संरंध्रता प्रदान करने के लिये किया गया है।
  • वैज्ञानिकों का उद्देश्य लागत कम करने के लिये यथासंभव आस-पास फैले अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग कर उनका यथासंभव इष्टतम प्रयोग सुनिश्चित करना था।

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-उत्तर पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान

(Council of Scientific & Industrial Research-North East Institute of Science and Technology-CSIR-NEIST)

  • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में जोरहाट में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की बहु-विषयक प्रयोगशाला के रूप में हुई थी।
  • इसकी अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का प्रमुख उद्देश्य स्वदेशी तकनीक द्वारा भारत की अपार प्राकृतिक संपदा का महत्तम उपयोग करना है।
  • विगत वर्षों में, प्रयोगशाला ने एग्रोटेक्नोलाजी, जैविक और तेल क्षेत्र रसायन के क्षेत्रों में 100 से अधिक प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं, जिनमें से लगभग 40% प्रौद्योगिकियों ने विभिन्न उद्योगों की स्थापना करने एवं उनकी व्यावसायिक सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

CSIR की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ

  • भारत में सबसे पहले DNA फिंगरप्रिंटिंग की शुरुआत।
  • हंसा विमान की अभिकल्पना और विकास।
  • भारत के पहले 14-सीटों वाले विमान सरस ’SARAS’ का विकास।
  • देश में सबसे पहले भैंस के दूध से निर्मित अमूलस्प्रे नामक शिशु आहार का निर्माण।
  • देश में चुनावों में इस्तेमाल होने वाली अमिट स्याही का सर्वप्रथम उत्पादन।
  • एक भारतीय की पहली पूरी जीनोम सीक्वेंसिंग पूरी की।
  • विषाक्त धुएँ का पता लगाने के लिये देश में सर्वप्रथम "इलेक्ट्रॉनिक नोज"का विकास।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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